जिस पर उनके साथी अंतिम नींद सो रहे थे लेकिन यह चोटी पाकिस्तान के कब्जे में आती थी इसी कारण अपने नेक्स्ट एंड फाइनल असोल्ट को शाम में ना करके तय किया गया कि अगला असल्ट दिन में ही किया जाएगा पर यह आसान नहीं होने वाला था क्योंकि उस चोटी तक पहुंचने के लिए भारतीय वीरों को बर्फीली हवाओं के बीच सुई की नोक सी पैनी 1500 फुट से भी ऊंची बर्फ की दीवार पर चढ़ना था
पर अपने साहस और विश्वास के साथ भारतीय वीर इस बार चालाकी का भी इस्तेमाल करते हैं और क्लिफ तक पहुंचने के लिए एक ऐसी डायरेक्शन का इस्तेमाल करते हैं जिसके बारे में कभी पाकिस्तान सोच ही नहीं सकता था क्योंकि इस डायरेक्शन से उस पोस्ट तक पहुंचना मौत को गले लगाने जैसा था, लेकिन भारतीय सैनिक पीछे नहीं हटते और लगभग 90 डिग्री के एक स्टीप और लंबे आइस वॉल को क्लाइंब करके उस पाकिस्तानी पोस्ट तक पहुंच जाते हैं जिसका नाम पाकिस्तान ने बड़े फक्र से मोहम्मद अली जिन्ना के नाम पर कायद रखा था
कायद पोस्ट पर पहुंचकर भारतीय सैनिक अपने अदम्य साहस के साथ लड़ते हैं और उस चोटी को अपने देश के नाम कर लेते हैं पाकिस्तान की कायद पोस्ट को कैप्चर करने के लिए 23 जून 1987 को भारत ने ऑपरेशन राजीव को अंजाम दिया था
हालांकि सोचने वाली बात यह है कि ऑपरेशन मेघदूत को जीतने के बाद भी भारत को ऑपरेशन राजीव की जरूरत क्यों पड़ी ?
एक बार फिर भारत सियाचिन पर ऑपरेशन मेघदूत को लॉन्च करता है और साल्टोरो रिच के सभी मेन पीक्स को कैप्चर कर पाकिस्तान को मुंह तोड़ जवाब देता है कई दिनों तक चले इस ऑपरेशन में भारत ना केवल सियाचिन पर कब्जा करता है बल्कि पाकिस्तान और चाइना के बीच सीधी कनेक्टिविटी को भी हमेशा के लिए तोड़ देता है, भारत के सियाचिन को कैप्चर करने के कारण पाकिस्तान के सैनिक तानाशाह और प्रेसिडेंट जियाउल हक को यह हार बर्दाश्त नहीं हुई जिस वजह से वो एक नहीं बल्कि कई बार सियाचिन की अलग-अलग पोस्ट पर कब्जा करने की कोशिश करवाते हैं
लेकिन भारत हर बार पाकिस्तान को अपने आगे पानी भरने के लिए मजबूर कर देता है हालांकि सीरीज ऑफ फेल अटैक्स के बाद अर्ली 1987 में पाकिस्तान फाइनली ब्रिगेडियर परवेज मुशर्रफ के नेतृत्व में बिला फॉन ला के पास मौजूद एक 22000 फीट ऊंची पीक को अपने कब्जे में ले लेता है और वहां अपनी एक पोस्ट बनाता है जिसका नाम पाकिस्तान बड़े फक्र से अपने देश के फाउंडिंग फादर मोहम्मद अली जिन्ना के नाम पर कायद पोस्ट रखता है
वैसे पाकिस्तान के द्वारा ऑक्यूपाइड साल्टोरो रिच की हाईएस्ट पीक्स में से एक नहीं थी लेकिन फिर भी भारत के लिए सियाचिन की हर एक पीक जरूरी थी क्योंकि जब भी सियाचिन के एरिया में किसी हाइट पर कोई पोस्ट बनाई जाती है तो उससे आसपास के एरिया को डोमिनेट करना आसान हो जाता है पाकिस्तान की कायद पोस्ट के साथ भी यही परेशानी थी यह सी लेवल से करीब 22000 फीट की ऊंचाई पर है जिस कारण अगर इस पर पाकिस्तान का कंट्रोल रहता तो भारत के लिए एक बड़ी परेशानी आन पड़ती
कायद पोस्ट को कैप्चर करने के कारण पाकिस्तान अब भारत के तकरीबन 80 किमी तक के एरिया को आराम से देख सकता था जिस कारण पाकिस्तानी आर्मी को भारत के हर मूवमेंट की खबर आसानी से होती रहती इस पोस्ट से पाकिस्तान सियाचिन ग्लेशियर को भी नेकेड आई से देख सकता था भारत के लिए कायद पोस्ट सबसे बड़ी परेशानी इसलिए भी थी क्योंकि यह बिला फोन ला के एरिया में थी जहां से पाकिस्तान भारत की अमर पोस्ट एंड सोनम पोस्ट पर भी निगरानी रख सकता था
इन दोनों पोस्ट पर भारतीय सैनिकों की जरूरत की हर चीज हेलीकॉप्टर्स के जरिए सप्लाई की जाती थी अमर पोस्ट कायद पोस्ट के साउथ में थी तो वही सोनम पोस्ट कायद पोस्ट के नॉर्थ में थी दोनों ही पोस्ट की हाइट कायद पोस्ट के मुकाबले कम थी जिस कारण पाकिस्तान अब कायद पोस्ट पर बैठकर भारतीय सैनिकों के हर एक कदम पर नजर रखने लगा था कायद पोस्ट को कैप्चर करने के बाद पाकिस्तान कुछ समय तक तो शांत रहा लेकिन एक दिन अचानक पाकिस्तान अपना असली रंग दिखाता है
और 18th अप्रैल 1987 को पाकिस्तानी ट्रूप्स कायद पोस्ट से से भारत की सोनम पोस्ट पर अटैक कर देते हैं इस अटैक में भारत के दो जवान शहीद हो जाते हैं लेकिन बात केवल यही नहीं थमतीकिरा की सोनम पोस्ट पर सैनिकों को जरूरत का सामान भी सप्लाई नहीं करने दे रहे थे सोनम पोस्ट पर आने वाले हर एक हेलीकॉप्टर पर गोलीबारी की जा रही थी जिस कारण भारतीय सैनिकों को बेसिक नीड्स की चीजें भी पहुंचाना डिफिकल्ट हो गया था, पाकिस्तान के ऐसे रवैए को देखकर इंडियन आर्मी ने ठान लिया था कि पाकिस्तान को अब कायद पोस्ट से हटाना ही होगा लेकिन ऐसा करना आसान नहीं था क्योंकि पाकिस्तानी ट्रूप्स कायद पोस्ट पर बैठकर 24 घंटे भारतीय सैनिकों की निगरानी कर रहे थे इसके अलावा कायद पोस्ट करीबन 22000 फीट के एल्टीट्यूड पर मौजूद थी जहां अटैक करना आसान नहीं था
इस पोस्ट की साइड भी करीबन 400 मीटर हाई आइस वॉल्स ने कवर की हुई थी यानी इस पोस्ट पर पहुंचने के लिए तीन साइड से 80 से 90° तक के स्टीप और लंबे आइस वॉल को क्लाइम करना था, इस खड़ी चढ़ाई के दौरान पाकिस्तान आराम से भारतीय सैनिकों को चढ़ता देख उन पर अटैक कर सकता था इसके अलावा ऑक्सीजन की कमी भी एक बड़ी परेशानी थी कम ऑक्सीजन के कारण क्लाइम करने में ज्यादा समय लगता था दिन के समय बर्फ के तूफान आना तो आम बात थी लेकिन रात को विजिबिलिटी एकदम कम हो जाया करती थी साथ ही टेंपरेचर भी गिरता चला जाता था
पाकिस्तान के लिए भी इस पोस्ट की रखवाली करना कोई मामूली बात नहीं थी इस पोस्ट की सिक्योरिटी के दौरान कई पाकिस्तानी सैनिक मारे गए थे नवंबर 1986 में मौसम खराब होने के कारण एक डेडली बर्फीली तूफान में इस पोस्ट पर मौजूद सभी पाकिस्तानी ट्रूप्स मारे जाते हैं सिवाय लूटने जफर अब्बासी के, हालांकि इस तूफान में लूटने जफर अब्बासी भी अपने दोनों पैर गवा देते हैं कुल मिलाकर कायद पोस्ट को कैप्चर करना काफी जोखिम भरा था लेकिन इंडियन आर्मी हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठ सकती थी जिस कारण कायद पोस्ट को कैप्चर करने के लिए भारत एक प्लान बनाता है
लेकिन प्लान को एग्जीक्यूट करने से पहले भारत एट जम्मू एंड कश्मीर लाइट इन्फेंट्री की एक यूनिट को कैयद पोस्ट तक पेट्रोलिंग के लिए भेजता है जहां इनका काम कैयद पोस्ट तक के एरिया को एनालाइज करना और यह पता लगाना था कि पोस्ट पर असल में कितने पाकिस्तानी ट्रूप्स मौजूद है साथ ही पोस्ट पर मौजूद आर्म्स एंड एम्युनिशन के बारे में जानना भी इस पेट्रोलिंग का एक मेन कारण था एट जम्मू एंड कश्मीर लाइट इन्फेंट्री की ये यूनिट हाल ही में सियाचिन के एरिया में इंडक्ट की गई थी यूनिट को चुनने के बाद सभी सोल्जर्स को प्रॉपर ट्रेनिंग एंड इंस्ट्रक्शंस दिए जाते हैं जिसके बाद मई 29 को एट जम्मू एंड कश्मीर लाइट इन्फेंट्री के 13 मेंबर्स को कायद पोस्ट की ओर भेजा जाता है
इस टास्क को सेकंड लूटने राजीव पांडे के द्वारा लीड किया जाता है राजीव पांडे एक होनहार और यंग ऑफिसर थे जिनके साहस और वीरता की कहानी पूरी यूनिट में फेमस थी राजीव पांडे को ये इंस्ट्रक्शंस दिए जाते हैं कि वह अपने टास्क के दौरान कायद पोस्ट तक पहुंचने के लिए बेस्ट अप्रोच रूट को आइडेंटिफिकेशन हुए खड़ी आइस क्लिफ को क्लाइम करना शुरू कर देते हैं क्लिफ को क्लाइम करते हुए काफी वक्त निकल जाता है और अब सभी भारतीय सैनिक क्लिफ के काफी नजदीक थे लेकिन तभी पाकिस्तानी ट्रूप्स की नजर भारतीय सैनिकों पर पड़ जाती है और वह अंधा धुन फायरिंग शुरू कर देते हैं
पाकिस्तानी ट्रूप्स के लिए ऊपर से हमला करना आसान था जिस कारण नीचे से क्लाइम कर रहे भारत के 10 जवान शहीद हो जाते हैं जिसमें सेकंड लूटने राजीव पांडे भी शामिल थे हालांकि अपनी जान गवाने से पहले भारतीय सैनिकों ने रोप्स की मदद से तो अब तक रास्ता छोड़ दिया था साथ ही सैनिकों ने एक्स की मदद से फुट होल्ड्स भी बना दिए थे जिससे बाद में क्लाइम करने वाले भारतीय सैनिकों को आसानी हो अपने जवानों के शहीद होने की खबर सुनकर भारतीय सैनिक गुस्से से खोल उठते हैं हर जवान के मन में अब रिवेंज की आग भड़क रही होती है हर एक जवान अपने दोस्तों की जान का बदला लेने के लिए तैयार था और इसलिए जब कैयद पोस्ट को कैप्चर करने के लिए नेक्स्ट टास्क फोर्स को बनाया गया तो हर एक जवान इस टास्क का हिस्सा बनने के लिए बेताब दिखाई दे रहा था
बेसिकली इस टास्क फोर्स का मकसद अपने शहीद जवानों के पार्थिव शरीर को वापस लेकर आना और पाकिस्तानी ट्रूप्स को कायद पोस्ट से खदेड़ने का था इसलिए देर ना करते हुए एक नया ऑपरेशन लॉन्च किया गया जिसे मेजर वरिंद्र सिंह के द्वारा लीड किया जाना था इस ऑपरेशन का नाम सेकंड लूटने राजीव पांडे को सम्मान देने के लिए ऑपरेशन राजीव रखा गया ऑपरेशन राजीव को लीड करने के लिए कैप्टन अनिल शर्मा को मेजर वरिंदर सिंह के डेप्युटी के तौर पर असाइन किया गया था साथ ही पूरे ऑपरेशन में थ्री जेसीओ और 57 अदर रैंक्स के ऑफिसर्स को भी तैयार किया गया था इन थ्री जेसीओ में सूबेदार हरनाम सिंह सूबेदार संसार चंद एंड नायब सूबेदार बाना सिंह शामिल थे कुल मिलाकर पूरे 62 भारतीय वीरों को कायद पोस्ट को कैप्चर करने के लिए भेजा गया
भारत के इन सभी सोल्जर्स को सबसे पहले 23 जून की रात को सोनम पोस्ट पर असेंबल किया गया जहां सभी सैनिक अपने रहने के लिए एक बेस तैयार करते हैं रात होने के कारण तय होता है कि अगले दिन से कायद पोस्ट के लिए चढ़ाई शुरू की जाए, जिसके बाद 24 जून की रात में करीब 10 लोगों की एक टुकड़ी को सूबेदार हरनाम सिंह की लीडरशिप में आगे भेजा जाता है सूबेदार हरनाम सिंह आगे बढ़ने के लिए वही रास्ता चुनते हैं जो सेकंड लूटने राजीव पांडे ने माग किया था हालांकि ये रूट आसान नहीं था सुई सी पेनी क्लिफ पर क्लाइम करते समय अगर एक भी सैनिक का पैर फिसलता तो वह सीधे मौत के मुंह में गिर जाता इसलिए धीरे-धीरे करके चढ़ाई तय की गई,
चढ़ाई के दौरान सूबेदार हरनाम सिंह और उनकी टीम को काफी परेशानियां हुई क्योंकि दिन बीतने के कारण सेकंड लूटने राजीव पांडे की टीम के द्वारा कैयद पोस्ट तक छोड़ी गई रोप और फुटहिल्स अब बर्फ के नीचे दब गई थी अपने क्लाइम के दौरान सभी सोल्जर्स सेकंड लूटने राजीव और उनकी टुकड़ी की डेड बॉडीज को भी ढूंढ लेते हैं जो अभी भी बर्फ के नीचे दबी हुई थी कायद पोस्ट तक पहुंचने के लिए भारतीय सैनिक चढ़ाई कर ही रहे थे कि एक बार फिर पाकिस्तानी ट्रूप्स भारतीय सैनिकों की मूवमेंट को देख लेते हैं और मशीन गन से नॉन स्टॉप फायरिंग शुरू कर देते हैं सूबेदार हरनाम सिंह और उनके साथ साथ ही पाकिस्तानी फायरिंग का जवाब नहीं दे पाते क्योंकि ठंड के कारण उनके सभी वेपंस फ्रीज हो जाते हैं इस वक्त तक हरनाम सिंह जानते थे कि अगर वो आगे बढ़ते रहे तो पाकिस्तानी सैनिक उन्हें भी मार देंगे इसलिए वह जोखिम नहीं उठाते हैं और अपनी टुकड़ी के साथ सभी सैनिकों की बॉडीज को लेकर वापस लौट जाते हैं
इस पूरे इंसीडेंट में सभी भारतीय सैनिकों को यह समझ नहीं आता कि जब उनकी बंदूकें फ्रीज हो गई तो पाकिस्तानी ट्रूप्स की क्यों नहीं हुई हालांकि बाद में पता चलता है कि पाकिस्तानी सोल्जर्स ने अपनी बंदूकों के नीचे एक जलता हुआ केरोसिन स्टोव रखा हुआ था जिससे उनकी बंदूकें लगातार काम करती रहे सूबेदार हरनाम सिंह के वापस लौटने के बाद मेजर वरिंदर बिल्कुल इंतजार नहीं करते और अगले ही दिन 25th जून को एक और टीम को कायद पोस्ट के लिए रवाना कर देते हैं यह अटैक भी रात के समय लॉन्च किया जाता है इस बार सूबेदार संसार चंद सोल्जर्स की एक टुकड़ी को लेकर कायद पोस्ट के लिए रवाना होते हैं
जिससे प्रॉपर कवर फायर दिया जाता है सोनम पोस्ट से लगातार कायद पोस्ट पर फायरिंग की जाती है जिससे सूबेदार संसार चंद और उनके साथी सेफली कायद पोस्ट तक पहुंच जाए हैवी कवर फायर के साथ सूबेदार संसार चंद और उनके साथी कायद पोस्ट के टॉप तक पहुंच जाते हैं लेकिन यहां उन्हें और भारतीय सैनिकों की जरूरत पड़ती है जिसके लिए जैसे ही वह अपने रेडियो के जरिए कैम से कनेक्ट करने जाते हैं तो व देखते हैं कि उनका रेडियो काम नहीं कर रहा है और उसकी बैटरीज फ्रीज हो गई हैं बैटरीज फ्रीज होने के कारण संसार चंद मेजर वरिंदर से कनेक्ट नहीं कर पाते जो केवल उनसे 100 मीटर के डिस्टेंस पर थे कनेक्शन ना कर पाने के कारण एक बार फिर मिशन को अबोर्ड कर दिया जाता है और यह अटैक भी फेल हो जाता है मिशन को शुरू किए भी अब बहुत दिन बीत चुके थे,
भारतीय सैनिक अब तक पूरी तरह से एग्जॉस्ट हो चुके थे इतनी ऊंचाई पर उनके पास ना रहने के लिए प्रॉपर शेल्टर था और ना ही खाना भूख प्यास से परेशान भारतीय सैनिक अब प्यास लगने पर बर्फ को चाट कर अपनी प्यास बुजा रहे थे लेकिन उनके मन में कैयद पोस्ट को कैप्चर करने के लिए एक जिद बैठ गई थी अब चाहे उसके लिए उन्हें बर्फ में खुद को दबाकर ही क्यों ना दुश्मन से बचना पड़े अपनी टीम का यह जज्बा देखकर मेजर वरिंदर हैरान थे लेकिन फिर भी इस हाइट पर लुसने शंस एंड मेंटल ब्रेकडाउंस आम बात रहती है जिस कारण वो बार-बार अपने सभी साथियों से उनका और उनके दोस्तों का नाम पूछते जिससे उन्हें समझ आता कि अभी तक सभी सैनिक ठीक है
हालांकि जैसे जैसे वक्त बीत रहा था सोल्जर्स की जान को खतरा बढ़ता जा रहा था इसलिए इस बार मेजर वरिंदर ने फैसला किया कि अब वोह रात तक का इंतजार नहीं कर सकते जिस कारण दिन में ही थर्ड एंड फाइनल ऑपरेशन को लॉन्च कर दिया गया लास्ट एंड फाइनल अटैक में कायद पोस्ट को कैप्चर करने के लिए दो टीम्स बनाई गई जिनमें आठ लोगों की एक टीम को मेजर वरिंदर लीड कर रहे थे तो वही पांच लोगों की दूसरी टीम को नायब सूबेदार बाना सिंह लीड कर रहे थे
दोनों टीम्स 26 जून की सुबह अपनी क्लाइंबिंग शुरू कर देती है जिसमें बेशक उन्हें बाकियों की तरह काफी परेशानी झेलनी पड़ती है लेकिन अपनी पूरी कोशिशों के साथ दोनों टीम्स लगातार क्लाइम करती रहती है इस क्लाइम के दौरान मौसम काफी खराब होता है जिस कारण पाकिस्तानी ट्रूप्स को लगता ही नहीं है कि दो बार हारने के बाद इतने खराब मौसम में भारतीय सैनिक एक बार फिर क्लाइम करने की कोशिश करेंगे अपनी इसी सोच के कारण पाकिस्तानी ट्रूप्स इस बार कोई फायरिंग नहीं करते भारतीय सैनिक भी बिना कोई फायरिंग किए आगे बढ़ते रहते हैं दोनों ही टीम कायद पोस्ट की दो अलग-अलग साइड से क्लाइम करती है बाना सिंह की टीम कायद पोस्ट को क्लाइम करने के लिए एक अनएक्सपेक्टेड डायरेक्शन का सहारा लेती है
पाकिस्तानी सैनिक बाना सिंह और उनकी टीम के द्वारा किए जाने वाले अटैक से एकदम अनजान अपने बंकर में बैठे होते हैं बाना सिंह अपने साथी राइफल मैन चुन्नी लाल लक्ष्मण दास ओमराज एंड कश्मीर चंद के साथ कायद पोस्ट पर पहुंच जाते हैं मौसम खराब होने के कारण बाना सिंह और उनकी टीम को कोई कवर फायर भी नहीं मिल पाता विजिबिलिटी काफी कम होने के कारण बाना सिंह जब कायद पोस्ट पर पहुंचते हैं तो देखते हैं कि वहां पाकिस्तान का केवल एक बंकर है जिसमें कुछ पाकिस्तानी ट्रूप्स बैठे हैं यह देखकर वह पहले एक ग्रेनेड को पाकिस्तानी बंकर में फेंक देते हैं इस अटैक में कई पाकिस्तानी सोल्जर्स मारे जाते हैं लेकिन बचे हुए पाकिस्तानी सैनिक फौरन अटैक करने के लिए आगे बढ़ते हैं
हालांकि ये हमला करने के लिए जैसे ही बाना सिंह और उनके साथी हथियार उठाते हैं उन्हें पता चलता है कि उनके हथियार ठंड के कारण काम नहीं कर रहे अब बाना सिंह के पास हैंड टू हैंड कॉम्बैट के अलावा कोई और चारा नहीं बचा था बाना सिंह और उनके साथ ही भूखे प्यासे और थके हुए हाथ से ही लड़ने लगते हैं कई दिनों की थकावट ठंड भूख और प्यास को भूलकर बाना सिंह और उनके साथ ही हैंड टू हैंड कॉम्बैट में ऐसी लड़ाई लड़ते हैं कि छह पाकिस्तानी सोल्जर्स मारे जाते हैं बाकी के बचे हुए पाकिस्तानी सैनिक अपनी जान बचाने के लिए क्लिफ से छलांग लगा देते हैं जिसके बाद फाइनली कई दिनों की मेहनत और कई जवानों की शहादत के बाद भारतीय सैनिक कायद पोस को अपने देश के नाम कर लेते हैं
इस पूरे मिशन के दौरान मेजर वरिंदर को भी भारी चोटें आती है आर्टिलरी एयरबस के कारण उनकी चेस्ट एंड टर्सों पर गहरी चोट लगती है लेकिन फिर भी वह अपने साथियों के साथ आगे बढ़ते रहते हैं हालांकि गंभीर चोटें आने के बाद भी मेजर वरिंदर की जान बच जाती है क्योंकि भारी ठंड के के कारण उनका खून जम जाता है और घाव से ज्यादा ब्लड लॉस नहीं होता 1500 फुट से भी ऊंची आइस वॉल को क्लाइम करके 22000 फीट ऊंची पीक को सब जीरो कंडीशंस में हैंड टू हैंड कॉम्बैट करने के बाद भारतीय सैनिक इसे जीत लेती है कायद पोस्ट पर अपना कंट्रोल स्टैब्स करने के बाद भारतीय सैनिक पाकिस्तानी मशीन गंस को पाकिस्तानी पोजीशंस पर ही तान देते हैं
हालांकि पाकिस्तान दोबारा कई बार इस पोस्ट को हासिल करने की कोशिश करता है लेकिन हर बार असफल ही रहता है बाना सिंह के साहस और वीरता को देखते हुए कायद पोस्ट का नाम बदलकर बाना पोस्ट कर दिया जाता है और उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया जाता है सूबेदार हरनाम सिंह और सूबेदार संसार चंद को भी महावीर चक्र से सम्मानित किया जाता है वही मेजर वरिंदर एंड सेकंड लूटने राजीव पांडे को वीर चक्र से सम्मानित किया जाता है इसके अलावा राइफल मैन चुन्नी लाल और ओमराज को उनके साहस के लिए सेना मेडल से नवाजा जाता है