जिसको आने वाले समय में चार डायनेस्टीज संगम, सालुआ, तुलुवा और अरविडू रूल करती हैं। विजयनगर एंपायर जब अपने चरम सीमा पर था तब उसका एक्सटेंट नॉर्थ में कृष्णा तुंगभद्रा बेसिन से लेकर पूरे सदर्न पेनिनसुला तक था। यह बात इसलिए इंपॉर्टेंट है क्योंकि मेडिवल इंडिया की पॉलिटी को 11th सेंचुरी के बाद से लार्जली मुस्लिम डायनेस्टीज ने डोमिनेट किया था और ऐसी सिचुएशन में विजयनगर जैसे बड़े हिंदू किंगडम का राइज करना और उसका लगभग 300 साल तक एकिस्ट करना एक हिस्टोरिकल अचीवमेंट से कम नहीं था।
वैसे पोर्चुगीस ट्रैवलर बारबोसा के हिसाब से विजयनगर रूलर्स हिंदू होने के बावजूद पब्लिक पॉलिसी में काफी सेकुलर अप्रोच रखते थे और उनके किंगडम में कई तरह के रिलीजियस को रिलीजियस फ्रीडम थी। खैर विजयनगर एंपायर की कैपिटल ईस्टर्न कर्नाटका में लोकेटेड हम्पी थी जो आज एक यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट है और अपने आर्किटेक्चरल ग्रैंडर के लिए फेमस है। पोर्चुगीज़ ट्रैवलर डोमिंगो पेस के हिसाब से हम्पी शहर ऑलमोस्ट रोम जितना बड़ा था। परर्शियन एंबेसडर अब्दुल रजाक तो यह तक कहते हैं कि पूरी दुनिया में उन्होंने हम्पी जैसा दूसरा शहर देखा ही नहीं।
इस आर्टिकल में हम देखेंगे विजयनगर एंपायर के 300 साल का ग्लोरियस इतिहास और उसके डाउनफॉल की कहानी। हम देखेंगे कि जब नॉर्थ इंडिया तमूर और बाबर के इन्वेशन से केओस में था तब कैसे विजयनगर हर रोज नई हाइट्स को छूते हुए साउथ इंडिया का अनडिस्प्यूटेड किंगडम बना हुआ था। यह उस विजयनगर की कहानी है जिसके एक राजा कृष्णदेव राय को खुद मुगल एपरर बाबर अपने दौर के इंडिया का सबसे पावरफुल राजा बताते हैं।
पॉलिटिकल हिस्ट्री हरिहरा इस किंगडम के फर्स्ट रूलर बने। जिन्होंने होयासला टेरिटरी को एनेक्स किया। 1356 में बुक्का राया ने उन्हें सक्सीड करते हुए मदुराई सल्तनत का डिस्ट्रक्शन और विजयनगर का पूरे सदर्न पेनिनसुला में एक्सपेंशन किया। लेकिन विजयनगर के लिए यह सब इजी नहीं था। तुगलक्स के बाद दिल्ली सल्तनत का डिक्लाइन तो हुआ लेकिन डेक्कन में बहामनीज सल्तनत ने अपना इंडिपेंडेंस डिक्लेअर कर दिया और काफी तेजी से पावरफुल होने लगा। बहामनीज विजयनगर के नॉर्दन एंबिशंस के सामने सबसे बड़ा ऑब्सकल थे।
इनकी राइवलरी बुक्का के दौर में शुरू हुई जो एक सेंचुरी तक चलती रही। राइवलरी फर्टाइल तुंगभद्राआब, कृष्णा गोदावरी डेल्टा और कुंकण को लेकर थी। दुआब और डेल्टा की लड़ाई उनकी फर्टिलिटी की वजह से थी। लेकिन कुंकण की लड़ाई हॉेज को लेकर थी जो कैवलरी के लिए इंपॉर्टेंट थे। बहामनीज ने नॉर्थ से आने वाले हॉेज को ब्लॉक कर दिया और इसलिए वेस्ट एशिया के साथ होने वाले हॉर्स ट्रेड के लिए फेमस कोंकण का गोवा पोर्ट विजयनगर के लिए काफी क्रूशियल हो गया। कई सालों के इनकंक्लूसिव राइवलरी के बाद जैसे ही देवराया वन 144 में पावर में आए तुंगभद्रा दुआब को लेकर स्ट्रगल एक नए विगर के साथ स्टार्ट हुआ।
लेकिन वारंगल और बहमनी के बीच हुई एक पुरानी ट्रीटी ने सदर्न इंडिया का बैलेंस ऑफ पावर बदल कर रख दिया था। जिसकी वजह से 148 में देवराय को बहामनी सुल्तान फिरोज शाह बहमनी के हाथों एक ह्यूमिलिएटिंग डिफीट फेस करनी पड़ी। देवराय को कंपनसेशन के लिए अपनी बेटी की मैरिज फिरज़ से करनी पड़ी और डरी में बनकापुर की टेरिटरी भी देनी पड़ी। लेकिन कुछ ही सालों बाद देवराय को रिवेंज का मौका मिला। रेड्डी किंगडम में एक्सेशन को लेकर कंफ्यूजन के चलते देवराय ने डिप्लोमेटिक मनवरिंग करके वारंगल के साथ एक ट्रीटी साइन की और रेड्डी किंगडम को आपस में डिवाइड कर लिया।
विजयनगर की इस डिप्लोमेसी की वजह से बैलेंस ऑफ पावर फिर बदल गया और 1420 में देवराय ने फिरोज़ को डिफीट करते हुए पुरानी टेरिटरीज रिकैप्चर कर ली। 1425 में देवराय टू पावर में आए जो संगम डायनेस्टी के सबसे पावरफुल रूलर थे। पोर्चुगीज ट्रैवलर नूनीस बताते हैं कि श्रीलंका, पेगू और मलया के किंग्स भी देवराय 2 को ट्रिब्यूट पे करते थे। इनके रूल में विजयनगर में कई रिफॉर्म्स हुए। बहमनीज की मेन पावर उनके मुस्लिम आर्चरर्स और कैवलरी की वजह से थी। इसलिए देवराय टू ने कई केपेबल मुस्लिम्स को जागीर दी और अपने सोल्जर्स को उनके अंडर आर्चरी की ट्रेनिंग दी।
इसके अलावा स्ट्रांग कैवलरी का ऑर्गेनाइजेशन भी हुआ। अगले और सबसे ज्यादा इंपॉर्टेंट रूलर तुलुवा डायनेस्टी के कृष्णदेव राय हुए जो 159 में थ्रोन पर आए। यह बाबर के कंटेंपररी थे। कृष्णदेव राय के दौर में विजयनगर की प्रोस्पेरिटी अपने जेनेत पर थी और डोमिंगो पेस जब हम्पी का कंपैरिजन रोम से कर रहे थे तब यहां कृष्णदेव का ही रोल था।
पेस बोलते हैं कि कृष्णदेव एक एव्वल मिलिट्री जनरल भी थे जो बैटल को फ्रंट से लीड करते थे और अपने इंजर्ड सोल्जर्स का ध्यान पर्सनली रखते थे। इसलिए कृष्णदेव ने तुंगभद्राब के झगड़े को फिर से जिंदा करते हुए उड़ीसा के गजपति और बहमनीज के सक्सेसर स्टेट बीजापुर सल्तनत पर बड़ी विक्ट्रीज पाई। कृष्णदेव के दौर में पोर्चुगीस की इंडिया में एंट्री हो चुकी थी। जिनके गवर्नर अल्बर्टक्यू कृष्णदेव के काफी अच्छे रिलेशंस थे। पोर्चुगीज ने कृष्णदेव को मिलिट्री एड भी दी जिसके बदले में उन्हें भटकल फोर्ट बनाने की परमिशन मिली।
लेकिन हिस्टोरियंस का ओपिनियन है कि यह कृष्णदेव की सबसे बड़ी वीकनेस थी कि वो पोर्चुगी डेंजर को अंडरएस्टीमेट करते रहे। कृष्णदेव की ग्रेटनेस के कई और रीज़ंस थे। उन्हें हिस्टोरियंस द ग्रेट बिल्डर भी बोलते हैं। उनके द्वारा कंस्ट्रक्टेड इको एक नॉर्मस टैंक को डोमिंगो पेज अपनी बुक क्रॉनिकल ऑफ द विजयनगर किंग्स में अ ग्रेट आर्किटेक्चरल वंडर कहते हैं। उनके रूल में विजयनगर टेंपल आर्किटेक्चर भी अपने मैच्योर फेज में था। जब टावरिंग राया गोपुरम श्री सेलम टेंपल कॉम्प्लेक्स के कुछ पार्ट्स विूपाक्षा टेंपल का पिलर्ड हॉल एटसेट्रा का कंस्ट्रक्शन हुआ। राया गोपुरम विजयनगर का यूनिक इनोवेशन था और यह टेंपल्स का रॉयल्टी गेटवे था। यह इतने मैग्निफिसेंट थे, कि टेंपल्स की मेन शाइन उनके सामने बोनी लगने लगी थी।
एकम बारथा टेंपल का 188 फीट टॉल सदर्न गोपुरम सबसे मैसिव है जो कृष्णदेव ने ही बनवाया था। कृष्णदेव के रूल को हिस्टोरियंस गोल्डन एज ऑफ लिटरेचर भी बोलते हैं क्योंकि वह खुद एक नोटेड स्कॉलर थे और उन्होंने अमुक्त मलयादा नाम की तेलुगु पोएट्री का कलेक्शन और जंबवती कल्याणम मदलसा चरिता और सत्यवाणु परिणाया जैसे संस्कृत वक्स प्रोड्यूस किए। इसके अलावा उनके दौर में तेलुगु, कन्नडा और तमिल पोएट्स को काफी सपोर्ट भी मिला।
जिनमें तमिल पोएट हरिदासा और कन्नडा स्कॉलर मल्डन नार्या काफी इंपॉर्टेंट नेम्स हैं। कृष्णदेव लिटरेचर को इतना वैल्यू करते थे कि उनके कोर्ट में एट तेलुगु पोएट्स और स्कॉलर्स थे। जिनको अष्टदिग्गज कहा जाता है। इन अष्टदिग्गजों में साउथ इंडिया के बीरबल कहे जाने वाले तेनाली रामा भी थे। जो अपनी इंटेलिजेंस के लिए फेमस हैं। आर्किटेक्चर ऑफ हमी। विजयनगर के पॉलिटिकल गेंस के अलावा उसका आर्किटेक्चर ग्रैंडर भी उसे एक ग्रेट एंपायर बनाता है। और यही वजह है कि हम्पी आज एक वर्ल्ड हेरिटेज साइट है।
हम्पी के रूइंस में विजयनगर की ग्लोरी और उसके डिस्ट्रक्शन दोनों की स्टोरीज दिखती हैं। यहां पर 1600 से ज्यादा स्ट्रक्चर्स हैं। अब्दुल रजाक जो अर्ली 144ज में इंडिया आए थे। वो यहां के सेवन टियर्ड फर्टिफिकेशन से काफी इंप्रेस्ड थे। फोर्ट के अंदर कैपिटल सिटी के अलावा एग्रीकल्चरल लैंड और कैनाल्स भी थे। जिसका स्ट्रेटेजिक रीजन वॉरफेयर के टाइम फूड सिक्योरिटी को इंश्योर करना था। टेंपल आर्किटेक्चर की बात करें तो मंडपा या लॉन्ग पिलर्ड हॉल्स, राया गोपुरम, चैरियट स्ट्रीट्स और इबोरेट ऑर्नामेंटेशन जैसे फीचर्स डिस्टिंक्टली विजयनगर इनोवेशंस हैं और यह विजयनगर की प्रोस्पेरिटी का एविडेंस हैं।
हम्पी का सबसे इंपॉर्टेंट टेंपल विूपाक्षा टेंपल है। क्योंकि विरूपाक्षा विजयनगर रूलर्स के मेन डेटी थे। जिनके बिहाफ में रूल करने का क्लेम वो करते थे। यहां का मैसिव ईस्टर्न गोपुरम 1510 में कृष्णदेव राय ने बनवाया था जो टेंपल के मेन शाइन से काफी ज्यादा बड़ा है। विट्ठल टेंपल में कल्याण मंडप और हम्पी स्टोन चैरियट जैसे स्ट्रक्चर्स हैं। यह स्टोन चैरियट हमारे ₹50 के नए नोट में भी हैं। इसका कंस्ट्रक्शन भी कृष्णदेव ने कोणार्क के स्टोन चैरियट से इंप्रेस होकर करवाया था।
यहां के डिटेल्ड कार्बिन वाले म्यूजिक पिलर्स भी आर्किटेक्चरल वंडर्स हैं। जिनको हिट करने से 81 टाइप के म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट्स के साउंड आते हैं। एडमिनिस्ट्रेशन विजयनगर की ग्रेटनेस का एक रीजन उनका यूनिक पॉलिटिकल इनोवेशन नायंकारा सिस्टम भी था जो दिल्ली सल्तनत के एकता सिस्टम से इंस्पायर्ड था। इसमें अमरनायका नाम के मिलिट्री कमांडर्स नायकट्टम नाम की कुछ टेरिटरीज को राया के बिहाफ में गवर्न करते हुए एक कंटिंजेंट फोर्स मेंटेन करते थे जो विजयनगर को बैटल्स में हेल्प करती थी।
अमर नायक को कंट्रोल में रखने के लिए उनके ट्रांसफर की पावर राया के पास थी। लेकिन इनमें से कुछ नायक 17th सेंचुरी में इंडिपेंडेंट किंगडम्स एस्टैब्लिश करने लगे। जो विजयनगर के डिक्लाइन का एक कारण बना। सोसाइटी सोसाइटी की बात करें तो विजयनगर में एक यूनिक सोशल स्ट्रक्चर था। जहां वैष्णवाइड्स को राइट हैंड कास्ट और शेवाइड्स को लेफ्ट हैंड कास्ट में रखा जाता था। वुमेन की पोजीशन रिलेटिवली बेटर थी। क्योंकि कई लर्नड वुमेन अकाउंटेंट और जजेस की पोजीशन होल्ड करती थी। लेकिन नोनीस देवदासी, पॉलीगैमी, चाइल्ड मैरिज और सती के एकिस्टेंस की भी बात करते हैं।
इकॉनमी की बात करें तो किसी भी मेडिवल किंगडम की तरह विजयनगर का भी मेन सोर्स ऑफ रेवेन्यू लैंड रेवेन्यू ही था। लेकिन प्रोफेशनल टैक्स, प्रॉपर्टी टैक्स, इंडस्ट्रीज टैक्स एटसेट्रा भी एकिस्ट करते थे। विजयनगर का मार्केट भी उसकी प्रोस्पेरिटी को दिखाता है। पेस बाजार का एक ब्यूटीफुल डिस्क्रिप्शन देते हुए बोलते हैं कि वहां दुनिया की हर चीज मिलती थी। फ्रॉम प्रेशर स्टोंस टू थिंग्स ऑफ बेसिक नेसेसिटी। इसके अलावा विजयनगर डायमंड एक्सपोर्ट के लिए भी फेमस था।
नूनस यहां की डायमंड माइंस को वर्ल्ड की रिचेस्ट माइंस बताते हैं। डिसइीग्रेशन एंड द फॉल ऑफ एंपायर। विजयनगर की प्रोस्पेरिटी इतनी ज्यादा थी कि शायद ही कोई इसके डाउनफॉल को इमेजिन कर सकता था। बट जस्ट लाइक अदर ग्रेट एंपायर्स विजयनगर का एंड भी इनविटेबल था। कृष्णदेव राय की 1529 में डेथ के बाद अचुत देव राय और अलियाराम राय के बीच सक्सेशन का स्ट्रगल स्टार्ट हुआ। जिसका फायदा उठाकर डेकनी सुल्तान इस पावर स्ट्रगल में इंटरवीन करने लगे और एंपायर को काफी नुकसान हुआ।
अचुता की 1542 में डेथ के बाद राम राय की हेल्प से सदाशिव राय पावर में आया जिसने अरविडू डायनेस्टी को इस्टैब्लिश किया। बट रियल पावर राम राय के पास थी। रामराय ने कई सक्सेसफुल बैटल्स लीड किए और बीजापुर, गोलकोंडा और अहमदनगर को ह्यूमिलिएटिंग डिफीट्स फेस करने पड़े। इन ह्यूमिलिएटिंग डिफीट्स से नाराज 1565 में बीजापुर, गोलकोंडा और अहमदनगर ने एक यूनाइटेड फोर्स के साथ विजयनगर को बैटल ऑफ तालीकोटा में कंप्लीटली डिस्ट्रॉय कर दिया।
और यह बैटल इंडियन हिस्ट्री का एक वाटर शेड इवेंट बन गया। बैटल ऑफ तालीकोटा के बाद विजयनगर की कैपिटल पेनुकोंडा शिफ्ट कर दी गई और किंगडम अगले 100 इयर्स तक एकिस्टेंस में रहा। लेकिन कई अमर नायकों के इंडिपेंडेंट किंगडम्स के इमर्जन से अब राया की पावर इनसिग्निफिकेंट और विजयनगर की ग्लोरी के दिन खत्म हो चुके थे।
विजयनगर की ग्लोरियस हिस्ट्री वैसे तो 1565 में ही खत्म हो जाती है। लेकिन ऑफिशियली इसका एंड 1646 में होता है।