जी हां दुनिया के सबसे बुलंद और सबसे खतरनाक मैदान जंग का नाम है सियाचिन इतिहास की जरा सी चूक ने भारत की सीमा से लग एक बर्फीले और दूर दराज इलाके को दुनिया के सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्र में बदल दिया था यह कहानी है सियाचिन की जो भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष का एक केंद्र है यह कहानी है उन भारतीय सैनिकों की जिन्होंने अपने देश के लिए सब कुछ कुर्बान कर ऑपरेशन मेघदूत को कामयाब बनाया
दोस्तों साल 1984 में भारतीय सैनिकों द्वारा ऑपरेशन मेघदूत सिया चन ग्लेशियर से पाकिस्तानियों को हटाने के लिए शुरू किया गया था शह और मात के इस खेल में भारत ने पाकिस्तान के नापाक मंसूबों को बर्फ में मिला दिया था 21000 फीट पर चला यह युद्ध दुनिया में अद्वितीय युद्ध है। युद्ध के इतिहास में यह सबसे ऊंचाई पर लड़े जाने वाला युद्ध है
आज के इस आर्मेंटिकल हम बात करेंगे ऑपरेशन मेघ दूध के बारे में साथ ही इसके और पहलुओं को भी जानने की कोशिश करेंगे तो चलिए शुरू करते हैं ऑपरेशन मेघदूत की वह अद्भुत कहानी व्हाई इज सियाचिन इंपॉर्टेंट
दोस्तों ऑपरेशन मेग दूध के बारे में बताने से पहले हम आपको सिया चन की जियोग्राफिक लोकेशन के बारे में थोड़ा समझा देते हैं हिमालय के पूर्वी काराकोरम पर्वत श्रृंखला में सिया चन ग्लेशियर को पृथ्वी पर सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्र के साथ-साथ अधु क्षेत्रों में दूसरे सबसे लंबे ग्लेशियर के रूप में जाना जाता है यह पश्चिम में साल्टोरो रिज और पूर्व में काराकोरम पर्वत श्रृंखला से लगे चीनी प्रांत शिंजियांग गगर स्वायत क्षेत्र के करीब पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू कश्मीर इलाके यानी पीओके के पास स्थित है यह ग्लेशियर मैप में एक कोऑर्डिनेट पॉइंट से शुरू होता है जिसे एनजे 9842 कहा जाता है एनजे 9842 उत्तर में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम रेखा का सबसे डिमार्केट पॉइंट है जिसे लाइन ऑफ कंट्रोल के नाम से भी जाना जाता है
यह नियंत्रण रेखा केंद्र शासित क्षेत्र लद्दाख के मुहाने पर है सियाचिन शब्द का अर्थ गुलाब का स्थान या गुलाबों का बगीचा है लेकिन सियाचिन कोई गुलाब का बगीचा नहीं है बल्कि यह एक सफेद बर्फ का रेगिस्तान है समुद्र तल से लगभग 20000 फुट की ऊंचाई पर स्थित इस 76 किलोमीटर लंबे ग्लेशियर में औसतन बर्फबारी लगभग 35 फुट होती है तापमान हमेशा -10 डिग्री सेल्सियस से नीचे रहता है और ठंड में तो यहां का तापमान -70 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है यह इलाका ब्रिटिश सर्वेयर्स की नजरों से बच गया था बाद में भारतीय सशस्त्र बलों के प्रयासों से सियाचिन और नुब्रा घाटी दुनिया के नक्शे में दिखाई पड़े
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर इस तरह मौत की गोद में जाकर यह जवान अपने देश की रक्षा क्यों करते हैं दिन रात बर्फ की चादर से ढके रहने वाला बंजर सियाचिन आखिर भारत के लिए इतना महत्त्वपूर्ण स्थान क्यों है आइए हम आपको बताते हैं इस स्थान की सुरक्षा आखिर किस लिए की जाती है
सबसे पहले सियाचिन ग्लेशियर जो सेंट्रल एशिया को इंडियन सबकॉन्टिनेंट से अलग करता है यह जम्मू और कश्मीर के विवादित क्षेत्र में स्थित है जो भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे संघर्ष का एक कारण है सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण भारत को पाकिस्तान के साथ किसी भी संभावित संघर्ष में रणनीतिक रूप से लाभ देगा दूसरा यह क्षेत्र पाकिस्तान और चीन को विभाजित करता है सियाचिन ग्लेशियर का साल्टोरो रिज पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर और चीन के बीच एक बाधा के रूप में कार्य करता है और यह दोनों देश यानी पाकिस्तान और चीन को इस क्षेत्र में सीधे सैन्य संबंध बनाने से रोकता है
दोस्तों भारत के लिए सियाचन एक प्रहरी दुर्ग के रूप में भी कार्य करता है जिससे भारत पाकिस्तान के गिलगित और बाल्टिस्तान क्षेत्र पर कड़ी नजर रखने में सक्षम होता है अगर सियाचिन पर पाकिस्तान का कब्जा होता है तो वे पूर्व के अक्षय चिन से और लद्दाख में पश्चिम से भारत के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है सिया चन पर नियंत्रण खोने का मतलब है पाकिस्तान और चीन सेना का संयुक्त रूप से भारत में प्रवेश आसान हो जाना इन सबके अलावा सीया चन ग्लेशियर भारत के लिए ताजे पानी का एक महत्त्वपूर्ण सोर्स भी है
सियाचीन से निकलने वाली नुब्रा नदी सिंधु नदी में मिलती है जो पाकिस्तान में पानी का एक बड़ा स्रोत है भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु के पानी को लेकर संधि है बार-बार भारत और पाकिस्तान के संबंधों में आते तनाव से अब इस संधि पर भी प्रभाव पड़ सकता है ऐसे में इस नदी के स्रोत पर मौजूद होना भारत को कूटनीतिक बढ़त देता है आज पूरा सियाचिन ग्लेशियर भारत की नियंत्रण में है लेकिन 1984 से पहले सियाचिन में यह स्थिति नहीं थी वहां किसी भी देश की फौज नहीं थी करीब 23000 किलोमीटर की ऊंचाई पर 75 किलोमीटर लंबे और 10000 वर्ग किलोमीटर तक फैले सियाचिन क्लेशर का इलाका इतना दुर्गम है कि करीब 1972 तक भारत और पाकिस्तान ने इसकी सीमा के बारे में एक्सप्लेनेशन देने की जरूरत ही नहीं समझी थी
लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि ऑपरेशन मेघ दूद को शुरू करना पड़ा आइए जानते हैं इसके पीछे की वजह
दरअसल साल 1947 में जब भारत आजाद हुआ इसके कुछ ही समय बाद जम्मू और कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान की लड़ाई प्रारंभ हो गई 1949 कराची एग्रीमेंट के तहत दोनों देशों के बीच सीमा रेखा को लेकर सीज फायर हुआ इस एग्रीमेंट में भारत पाकिस्तान के सुदूर पूर्वी सीमा रेखा नहीं खींची गई थी और इस दुर्गम इलाके में एनजे 9842 आखिरी पॉइंट था इस पॉइंट के आगे की जगह निर्जन थी जहां पर ना कोई आबादी थी और ना ही यहां तक पहुंचना आसान था तात्कालिक राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व को यह विश्वास था कि इस पॉइंट के आगे कभी भी सैन्य विवाद नहीं हो सकता
साल 1972 में शिमला समझौते में भी सियाचिन को एक निर्जन भूमि का टुकड़ा मानते हुए एनजे 9842 के आगे की सीमा के मूल्यांकन को नजरअंदाज कर दिया गया शिमला समझौते के तहत दोनों देशों में यह सहमति बनी थी कि एनजे 9842 से ऊपर जाती हुई नियंत्रण रेखा जिसे इंदिरा कोल कहा जाता है वहां भारत और पाकिस्तान में से कोई देश नियंत्रण नहीं करेगा
बता दें कि एनजे 9842 से इंदिरा कोल तक और इंदिरा कोल से काराकोरम पास फिर काराकोरम पास से एनज 9842 तक यह पूरा त्रिकोण किसी के अंडर नहीं था लेकिन पाकिस्तान की नियत खराब होती देर नहीं लगी उसने इस इलाके में पर्वतारोही दलों को जाने की इजाजत देनी शुरू कर दी इसकी खबर साल 1975 में भारतीय सेना के कर्नल नरेंद्र कुमार को लगी जब उन्हें जर्मनी पर्वतारोहियों से कुछ ऐसे पाकिस्तानी नक्शे मिले जिसमें एनजे 9842 से आगे के क्षेत्रों और इसके आसपास के लगभग 4000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को पाकिस्तानी अधिकार क्षेत्र के रूप में दिखाया गया था
इस नक्शे के अनुसार नियंत्रण रेखा को एनज 9842 उत्तर में इंदिरा कोल तक ना दिखाकर पूर्वोत्तर में काराकोरम पास तक दिखाया गया था यानी पाकिस्तान ने एनजी 9842 को सीधे काराकोरम पास तक नियंत्रण रेखा मान लिया था और इंदिरा कोल पर अपना दावा कर लिया था इन नक्शों को देखकर तत्कालीन भारतीय सेना प्रमुख जनरल टी एन रेना चौक गए थे भारत सरकार ने इस प्रकार साल्टोरो रिज में भारतीय सैनिकों को तैनात करने का फैसला किया लेकिन इस क्षेत्र में बहुत ज्यादा ठंड और खराब मौसम की वजह से निर्णय लिया गया कि भारतीय सेना गर्मियों से सियाचिन क्षेत्र की पेट्रोलिंग करेगी
इसके बाद साल 1978 में भारतीय सेना ने भी भारत की ओर से सियाचन में पर्वतारोहण अभियान की अनुमति दे दी इन्हीं पर्वतारोही अभियानों के बाद ही सियाचिन ग्लेशियर पर अधिकारों को लेकर विवाद की शुरुआत हो गई साथ ही भारत ने पाकिस्तान के पर्वतारोहण कार्यक्रमों पर रोक लगाने के लिए उत्तरी लद्दाख में सेना और ग्लेशियर के कई अन्य हिस्सों में पैरामिलिट्री फोर्स की तैनाती का फैसला किया इसके लिए 1982 में अंटार्कटिक में हुए एक अभियान में हिस्सा ले चुके सैनिकों का चुनाव किया गया जो ऐसी विषम परिस्थितियों में रहने के लिए अभ्यस्त थे
साल 1983 में भारतीय खुफिया एजेंसियों से कर्नल नरेंद्र कुमार को यह सूचना मिली कि पाकिस्तान ने लंडन की एक कंपनी को पाकिस्तान सैनिकों के लिए विशेष उपकरण और आर्कटिक गियर का ऑर्डर दिया है इससे यह कंफर्म हो गया कि पाकिस्तान सियाचिन पर कब्जा करने की योजना बना रहा है भारत को जब इस बात की खबर लगी तो उसने पाकिस्तान से पहले सियाचिन में सेना भेजने का प्लान तैयार कर लिया इस ऑपरेशन का कोड नेम ऑपरेशन मेघदूत रखा गया
आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से, यह बात 13 अप्रैल 1984 की है जब जनरल पी एन ह ने नॉर्दर्न कमांड और 15 कोर को साल्टोरो रिज पर तैनात किया लदाक स्काउट्स और चार कुमाऊ रेजीमेंट की एक टीम को mi8 यूनिट और एयरफोर्स के चीता हेलीकॉप्टर के साथ तैनात किया गया कई चेन ऑफ कमांड बनाए गए लेफ्टनंट कर्नल पुष्कर चंद को टास्क फोर्स कमांडर बनाया गया और उनके साथ थे कुमाऊ रेजीमेंट के कैप्टन संजय कुलकर्णी जो चार कुमाऊ से बिला फोन ला तक के हेड थे
मेजर ए के बहुगुणा लद्दाख स्काउट से सियाला तक को हेड करने वाले थे और लेफ्टिनेंट कर्नल डी के खन्ना ग्योंग ला से 19 कुमाऊ तक को हेड करने वाले थे ऑपरेशन मेग दूध का मेन टारगेट था इंदिरा कोल सियाला बिला फोला ग्योंगला जो साल्टोरो रिज के सबसे इंपॉर्टेंट पॉइंट्स थे इन पर भारत को नियंत्रण स्थापित करना था
13 अप्रैल को सुबह 5:30 पर कैप्टन संजय कुलकर्णी और उनके साथी सैनिकों को लेकर चीता हेलीकॉप्टर ने बेस कैंप से उड़ान भरी उसके पीछे दो हेलीकॉप्टर और उड़े दोपहर तक स्क्वाड्रन लीडर सुरेंद्र बेंस और रोहित रॉय ने इस तरह की 17 उड़ाने और भरी कैप्टन संजय कुलकर्णी के साथ एक जेसीओ और 27 भारतीय सैनिकों को बिला फोन ला के पास हेलीकप्टर से नीचे उतारा गया शून्य से भी कम विजिबिलिटी और - 30 से भी कम तापमान में यह सारे सैनिक वहां उतरे थे
बिला फॉन ला में हेलीकॉप्टर से उतारे जाने के तीन घंटे के भीतर रेडियो ऑपरेटर मंडल अत्यधिक ऊंचाई पर होने वाली बीमारी एच एपी यानी हाई एल्टीट्यूड पल्मोनरी डीमार्क के पास रेडियो तो था लेकिन रेडियो ऑपरेटर नहीं हो रहा था, रेडियो ऑपरेटर के ना होने से पूरी तरह से रेडियो साइलेंस बढती गई और पाकिस्तानी सैनिकों को भारतीय सैनिकों के आने की भनक तक नहीं लग पाई
बिला फोन ला में उतरने के कुछ समय बाद ही कुलकर्णी और उनकी टीम का बाहरी दुनिया से पूरी तरह से संपर्क टूट गया था क्योंकि उन्हें एक भयावह बर्फीले तूफान ने घेर लिया था सब कुछ मानो रुक गया हो तीन दिनों तक मौसम से जद्दोजहद करने के बाद 16 अप्रैल को जब मौसम साफ हुआ तब जाकर कुछ और सैनिक और मेडिकल सहायता भेजी जा सकी तब तक एक सैनिक की और बचे हुए 28 सैनिकों में से 21 सैनिक फ्रॉस्ट बाइट यानी शीत दंश के शिकार हो चुके थे इस बीच 15 अप्रैल तक बिला फोन ला में छोटे-छोटे तीन कैंप बना लिए गए थे 13 अप्रैल को जहां कैप्टन संजय कुलकर्णी ने बिला फोन ला पर कब्जा कर लिया था वहीं दूसरी तरफ मेजर बहुगुणा ने 17 अप्रैल को सियाला पर जीत हासिल कर ली थी आगे की सैन्य टुकड़ियों ने कैप्टन पीवी यादव की कमान में चार दिनों तक चढ़ाई की और साल्टोरो रिज की बाकी चोटियों पर कब्जा कर कर लिया
17 अप्रैल तक लगभग 300 भारतीय सैनिक ग्लेशियर की महत्त्वपूर्ण चोटियों और दरों में फैल चुके थे इस बीच लेफ्टिनेंट कर्नल डी के खन्ना 19 कुमाऊ के साथ सबसे ऊंचे और सबसे खतरनाक पीक ग्योंग ला के लिए धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे अनुमान था कि वह जून के पहले हफ्ते में उस पर कब्जा कर लेंगे लेकिन अब तक भारतीय सैनिक पाकिस्तान वायु सेना की नजरों में आने लगे थे अब जाहिर सी बात थी कि पाकिस्तानी अटैक भी जरूर करेंगे इस संदर्भ में इंडियन इंटेलिजेंस के पास रिपोर्ट आई कि पाकिस्तानी साइड के 18 इन्फेंट्री ब्रिगेड में बुर्जिल फोर्स बनाई गई थी उन्होंने इंडियन ट्रूप्स को हटाने के लिए ऑपरेशन अबाबील लॉन्च किया था जिसके जरिए वह पश्चिमी साल्टोरो रेंज और बिला फोन ला पर कब्जा करना चाहते थे
23 जून 1984 की सुबह के करीब 5:30 बजे के आसपास पाकिस्तान की तरफ से हमला हुआ इस हमले में लांस नायक चंचल सिंह शहीद हो गए इधर भारतीय सैनिकों ने भी जवाबी कार्रवाई शुरू की इस हमले में 26 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए और भारत ने अपना एक जवान खोया लेकिन यह आखिरी हमला नहीं था जून में पाकिस्तान ने एक और हमला करने की कोशिश की और भारत ने उसका करारा जवाब दिया
अगस्त 1944 में दो और हमले किए गए लेकिन भारतीय सैनिकों के सामने वह टिक नहीं पाए इस दौरान पाकिस्तान के 30 जवान मारे गए इस बीच 5700 मीटर की ऊंचाई पर ग्योंग ला की हाई पॉइंट पर भी कैप्टन डी के खन्ना ने जीत हासिल कर ली थी पूरा सियाचैन अब भारत के नियंत्रण में था ऐसा पहली बार हुआ था कि जब किसी भारतीय रेजिमेंट ने दुनिया के सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्र में इतने बड़े क्षेत्र पर कब्जा किया था
3 साल बाद सन 1987 में भारत के कब्जे वाले क्षेत्रों को दोबारा हासिल करने के लिए पाकिस्तानी सेना ने 22143 फुट की ऊंचाई पर कायद चौकी बनाई और भारतीय सेना के खिलाफ सिलसिलेवार हमले किए यह पोस्ट नजदीक के सभी भारतीय पोस्ट पर हावी थी क्योंकि यह उनसे अधिक ऊंचाई पर स्थित थी हमलोग का नेतृत्व शुरू में परवेज मुशर्रफ ने किया था जो उस समय पाकिस्तानी सेना के ब्रिगेडियर जनरल थे जवाबी कार्रवाई में भारतीय सेना ने 23 जून 1987 को ऑपरेशन राजीव शुरू किया जिसकी जिम्मेदारी नायब सूबेदार बाना सिंह को दी गई
कठिन और प्रतिकूल परिस्थितियों शून्य से 50 डिग्री कम तापमान और बर्फीली तूफानों के बीच भारतीय आठ जम्मूकश्मीर लाइट इन्फेंट्री के जबा सैनिकों ने तीन दिन और तीन रातों तक पाकिस्तानी सेना से भीषण युद्ध किया और 26 जून 1987 को भारतीय जाबाज ने पाकिस्तानी पोस्ट पर अपना कब्जा जमा लिया युद्ध के इतिहास में यह एक अद्वितीय और असाधारण अभियान था, बाद में पोस्ट का नाम बाना टॉप रख दिया गया इस बहादुरी के लिए बाना सिंह को भारत के शीर्ष सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से नवाजा गया था
दोस्तों मेघदूत भारतीय सेना के सबसे कठिन अभियानों में से एक था अगर हम सियाचिन के ज्योग्राफिकल फीचर्स को देखें तो भारत की ओर से सियाचिन की खड़ी चढ़ाई थी और पाकिस्तान की ओर से सियाचिन की चढ़ाई आसान थी वहीं दूसरी ओर भारतीय सैनिकों को -40 से -60 डिग्री के तापमान में फतेह हासिल करनी थी सियाचिन को लेकर हुए संघर्षों में यानी पिछले 39 सालों में दोनों देशों को बहुत भारी जान और माल का नुकसान उठाना पड़ा है आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार दोनों तरफ कुल मिलाकर 2000 से ज्यादा फौजी अपनी जानें गवा चुके हैं और 5000 से ज्यादा जख्मी हो चुके हैं एक बड़ी तादाद ऐसे सैनिकों की भी है जो भीषण सर्दी फेफड़ों की बीमारियों यानी पल्मोनरी एडिमा या एवलांच के कारण मारे जा चुके हैं
कुछ मानसिक समस्याओं जैसे याददाश्त खोने गहरे अवसाद और नींद की कमी से पीड़ित हो चुके हैं कई फौजी भूख कम लगने और एंप्यूटेशन यानी बर्फ की वजह से पैर कटना जैसी परेशानियों में उलझे हुए हैं सियाचिन में दोनों देशों को खर्चा भी बहुत करना पड़ा है यहां कुल मिलाकर एक दिन में लगभग 1 मिलियन डॉलर रकम खर्च की जाती है
इतनी कठिन परिस्थितियों के बावजूद भारतीय सेना के सैन्य पराक्रम और कर्मठता का ही यह नतीजा है कि आज विश्व की सबसे ऊंचे युद्ध स्थल पर हम स्ट्रेटेजिक एडवांटेज की स्थिति में है
तो दोस्तों यह था ऑपरेशन मेघदूत जब भारतीय सेना के वीर जवानों ने अपने प्राणों की परवाह किए बिना दुनिया के सबसे दुर्गम युद्ध स्थल पर पराक्रम और शौर्य की वीर गाथा लिखी भारतीय सेना ने सियाचीन जैसे बीहड़ इलाके में पाकिस्तान को शिकस्त दी और एक बार फिर दुनिया के सामने तिरंगा का सर ऊंचा किया इस ऑपरेशन में जितने भारतीय सैनिक पाकिस्तान की गोली से शहीद नहीं हुए उससे कहीं अधिक सियाचीन के ठंड से शहीद हो गए
-50 डिग्री तापमान और 300 किमी प्रति घंटा से अधिक की रफ्तार से चलने वाली बर्फानी तूफानी हवाएं किसी की जान लेने के लिए काफी हैं इन ऊंचाइयों पर ऑक्सीजन इतनी दुर्लभ है कि हर सांस अस्तित्व के लिए एक दर्दनाक लड़ाई लड़ती है इसी लड़ाई को हमारे सैनिक हर पल लड़ते हैं आज शत्रुता पूर्ण इलाके में उस कड़ाके की ठंड में भारतीय सेना के जाबाज अपनी जान की बाजी लगाकर दुश्मनों से देश की रक्षा कर रहे हैं ऐसे वीर सेना के जवानों को को हमारा शतशत नमन
जय हिंद जय भारत