Operation Khukri: GORKHA Regiment And PARA SF Saved Indians in Foreign Land

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साल 1990 अफ्रीका के सिरा लियोन देश में कायलाहून नाम की जगह आतंकियों का गढ़ बन चुकी थी। यूएन मिशन पर पोस्टेड भारत के मेजर पुनिया अपने दो साथियों के साथ लगातार कायलाहून की तरफ आगे बढ़ते जा रहे थे।

वह अपने 223 साथियों को पीछे बेस पर ही छोड़ चुके थे और आतंकियों के साथ एक शांति बैठक करने जा रहे थे। पुनिया और उनके साथी अफ्रीका के घने जंगलों में स्थित आतंकियों के कैंप तक पहुंच जाते हैं। कैंप में घुसने से पहले उनके हथियार ले लिए जाते हैं और बंदूकबंद आतंकी उनके आसपास एक घेरा बना लेते हैं। इसके बाद उन्हें अंदर ले जाया जाता है और कुछ देर चलने के बाद उन्हें उन आतंकियों के सरदार के सामने खड़ा कर दिया जाता है। जहां पुनिया को लग रहा था कि अब बैठक शुरू होगी। 

तभी आतंकी उनके और दोनों साथियों के हाथ बांध देते हैं। कोई और हरकत होती उससे पहले आंखों पर पट्टी लगा देते हैं। इसके बाद इन आतंकियों का सरगना बताता है कि तुम सब अब हमारे होस्टेज हो। इतना ही नहीं इसके बाद यह आतंकी पुनिया के 223 साथियों की तरफ निकल जाते हैं और पूरे कैंप को चारों तरफ से भारी संख्या में घेर लेते हैं। भारत से 10,000 कि.मी. दूर आतंकियों के गढ़ में आज हमारे ये सारे फौजी फंस जाते हैं। 

  • आज की इस आर्मेंटिकल हम जानेंगे आखिर सेरा लियोन में हुआ क्या था? 
  • यह कौन आतंकी हैं जिन्होंने हमारी भारतीय फौज से पंगा लेने की हिम्मत की है? 
  • साथ ही हम यह भी जानेंगे कि आखिर कैसे भारत से आकर हमारी पैरा एसएफ इन आतंकियों के चुंगुल से हमारे फौजियों को छुड़ा के ले जाती है। 

दोस्तों, यह भारतीय सेना का दुश्मन की धरती पर किया हुआ काफी डेंजरस और डेरिंग ऑपरेशन है। इसलिए आर्टिकल को आखिर तक पढ़े। सेरा पश्चिम अफ्रीका का एक छोटा सा अत्यंत सुंदर देश है। इसकी सीमा उत्तर और पूर्व में गिनी से, दक्षिण पूर्व में, लाइबेरिया से और पश्चिम के अटलांटिक महासागर से मिलती है। इस देश को समृद्ध बनाने में कुदरत ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। क्योंकि यहां भर-भर के हीरों की खदान है। 

लेकिन करप्ट सरकारों के चलते आम लोगों को ना शिक्षा मिलती थी और ना ही खाना। अब 1990 के दशक में यही चीजें ऐसा कारण बनने वाली थी जो इस देश को धरती पर जलता नर्क बना के रख देगी। साल था 1991 और सेरा लन के पड़ोसी देश लाइबेरिया का तानाशाह चार्ल्स टेलर अपने आसपास के देशों पर कब्जा करना चाहता था। उसको पता था कि सेरा लियोन में सरकार बहुत करप्ट है और लोग तंग आ चुके हैं। बस इसी बात का फायदा उठाने के लिए वह रेवोल्यूशनरी यूनाइटेड फ्रंट यानी आरयूएफ के नाम से आर्म रेबल ग्रुप बनाता है।

यह ग्रुप सेरा लियोन में घुस जाता है और वहां के लोगों को आजादी का नाम देकर अपने साथ जोड़ने लगता है। जबकि असलियत में यह सेरा लियन और उसके हीरो पे कब्जा चाहते थे। अब जैसे ही कुछ गांव इनके साथ जुड़ते और फिर इलेक्शंस की मांग करते तब आरयूएफ का असली रूप बाहर आता। यह लोगों के हाथ काट देते, जगह-जगह पोस्टर्स लगा देते। वोट एंड डाई। सिर्फ वोटिंग तक नहीं बल्कि इन रेबल्स के लिए पावर की भूख इतनी बढ़ गई थी कि यह इंसानियत की सारी हदें पार कर देते हैं। 

यह गांव के छोटे-छोटे बच्चों को अपने ग्रुप में शामिल करके इमोशनली उन्हें तोड़ देते थे। यह उनके सामने उनके माता-पिता को मार देते। उन्हें ड्रग्स का सेवन करवा के भड़काते कि तुम्हारे घरवाले तुम्हारे साथ धोखा कर रहे हैं और उनसे ही उनके करीबियों को गोली मरवा देते। यह बच्चों के मन से इमोशन को ही डिलीट करवा देते और फिर कहते हम तुम्हारी असली फैमिली है। कुछ इस तरह इनके पास सारा दिन नशे में रहने वाली एक राक्षसों की फौज बन जाती है। इतना ही नहीं यह 10-12 साल की छोटी बच्चियों को अपना गुलाम बना के रखते। 
जिसको मन करता उसे जिंदा जला देते। यह अत्याचार इतने भयानक थे कि पूरी दुनिया दहल उठी थी। सेरा की सरकार तो पहले ही करप्थीट थी। इसलिए वह इनसे लड़ नहीं पा रही थी। देखते ही देखते धरती पे स्वर्ग सा यह देश नर्क से आए हैवानों का घर बन गया था। 

चारों तरफ सिर्फ मौत, नशा और तबाही का मंजर था। बात इतनी बिगड़ गई थी इसलिए साल 1999 में यूएन इस मामले में हस्तक्षेप करने का फैसला लेते हैं। 1999 में यूनाइटेड नेशन और सेरा लियोन की पॉलिटिकल पार्टीज के बीच एक पीस एग्रीमेंट साइन होता है। इसके बाद यूनाइटेड नेशन अक्टूबर 1999 में यूनाइटेड नेशन मिशन इन सेरा लियोन यूएनएमएसआईएल शुरू करवाता है। इसका मकसद सेरा लियोन में विद्रोही समूहों को डिसाम करना बंधकों को छुड़ाना और देश में दोबारा लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित करना था। 

इस मिशन में भारत, बांग्लादेश, नाइजीरिया, घाना, कन्या, जमीबिया जैसे कई देशों की सेनाएं शामिल थी। भारत की तरफ से पांच और आठ गोरखा रेजीमेंट की कंबाइन टुकड़ी यानी पांच से आठ गोर्खा, 14 मैकेनाइज्ड इनफेंट्री और 23 मैकेनाइज्ड इनफेंट्री की टुकड़ियों को मिलाकर इन बैट वन यानी कि इंडियन बटालियन वन का गठन किया गया था। इसके साथ दो कंपनियों को क्विक रिएक्शन फोर्स यानी तुरंत एक्शन में जाने वाली टीम के रूप में रखा गया था। जिसमें नौ पैरा स्पेशल फोर्स एसएफ के सैनिक भी शामिल थे। 

दिसंबर 1999 में इंडियन बटालियन वन को भेजा गया था और अप्रैल 2000 तक भारतीय सैनिकों को दो हिस्सों में बांटकर तैनात किया गया था। एक टीम दारू में और दूसरी टीम कायलाहून में तैनात थी। यह वो इलाके थे जहां रेबल्स की पकड़ सबसे ज्यादा मजबूत थी। कायलाहून जो लगभग 10 साल से रेबल्स के कब्जे में था। वहां के लोग खासकर बच्चे बहुत बीमार और कुपोषित पैदा होते थे। भारतीय सेना ने वहां मेडिकल कैंप्स बनाए जिनमें फ्री में ओपीडी सर्विज और बेसिक सर्जरी की जाती थी। बोरवेल खोदे, वाटर टैंक्स बनाए। गांव वालों को पानी साफ करना सिखाया। बच्चों के लिए बेबी फूड और बड़ों के लिए दिनरा चलने वाले लंगर का इंतजाम किया। 

यहां तक कि हमारे फौजियों ने बच्चों को अंग्रेजी और मैथ भी सिखाई। दूर के गांव में जाकर लोगों के इलाज किए। यहां के लोगों ने बंदूकों से महंगा तो पीने का पानी देखा था। लाइफ की ऐसी बेसिक सुविधाएं मिलने से भारतीय सैनिक इनके लिए किसी मसीहा से कम नहीं थे। रेबल्स के इलाके में घुसकर भारतीय सेना का इतना इन्फ्लुएंसर उनसे देखा नहीं जाता और अब रेबल्स अपनी चाल चलते हैं। 

मई 2000 रेबल्स यूएन के साथ एक शांति समझौते के लिए तैयार हो जाते हैं। इस शांति समझौते के लिए हमारी सेना की एक टुकड़ी को भी भेजा जाना था। इन दिनों रेबल्स ने जमकर की मदद से पूरे इलाके में रेडियो सिग्नल कट कर दिए थे। मेजर पुनिया यह बात जानते थे। लेकिन उन्हें सिर्फ एक बात से फर्क पड़ रहा था कि इस इलाके में शांति हो जाए ताकि यहां के आम लोगों का जीवन सुधर सके। इसी कारण वह रिस्क लेते हुए अपनी जान खतरे में डालकर अपने कुछ साथियों के साथ शांति समझौते के लिए निकल जाते हैं। वो जैसे ही वहां पहुंचते हैं, शांति समझौता तो छोड़ो। 

रेबल्स तो अटैक के लिए तैयारी में जुटे हुए थे और वह तुरंत मेजर पुनिया और उनके साथियों को बंदी बना लेते हैं। असल में शांति समझौता कभी हो ही नहीं रहा था और यह सब एक जाल था। अब हमारी फौज का लीडर रेबल्स के कब्जे में था। रेबल्स भारी मात्रा में कायलाहून में जिस जगह हमारी फौजियों का कैंप था उसकी तरफ निकल जाते हैं। हमारे फौजियों को जब तक इस खतरे की भनक लगती तब तक तो यह पूरा इलाका रेबल्स की गोलियों से गूंज चुका था। रेवल्स हमारे फौजियों पर तो हमला नहीं करते लेकिन उन्हें चारों तरफ से घेर लेते हैं। कैंप में पांच से आठ गोर्खा राइफलल्स के 223 जवानों के साथ कुछ यूएन ऑब्जर्वर भी थे। 

रेवल्स हमारे गोर्खाओं को ऑफर देते हैं कि तुम हथियार डाल दो। हम तुम्हारे लीडर को भी छोड़ देंगे और तुम्हें भी जाने देंगे। मगर रेबल्स को क्या पता था कि यह गोर्खा तो 7-7 फुट के पठानों के सामने नहीं झुके थे। हमारे गोर्खा तिरंगे की शान के लिए हथियार डालने से साफ मना कर देते हैं। अब रेबल्स ने गोर्खाओं का हौसला देख लिया था और वह समझ गए थे कि बेशक इलाका उनका है और संख्या भी उनकी ज्यादा है। लेकिन यह गोर्खा अपनी खुकरी से गर्दन काटने में शर्म नहीं करेंगे। इसी कारण रेवेल्स फायर नहीं करते हैं लेकिन इलाके को घेर कर रखते हैं।

बिजली, पानी, खाने, हर चीज की सप्लाई को कट कर देते हैं। एक तरह से हमारे फौजी 10,000 कि.मी. दूर लॉकडाउन में फंस चुके थे। कुछ ही दिनों में यह खबर यूएन के जरिए भारत तक भी पहुंच जाती है। अब सारे देश भारत का सपोर्ट करते हैं। हमने शुरू में कहा था कि इन रेबल्स को लाइब्रेरिया के तानाशाह चार्ल्स टेलर ने तैयार किया था। अब उस पे इंटरनेशनल प्रेशर बनाया जाता है। उसके कहने पर रेबल्स कुछ फौजियों को तो छोड़ देते हैं, लेकिन उनके लिए भी अब यह इज्जत की बात थी। इसलिए वह चार्ल्स को साफ कह देते हैं कि जब तक यह हथियार नहीं डालेंगे, हम बाकियों को जाने नहीं देंगे। 

बेशक रेबल्स सिरफिरे थे। इसलिए इनमें भारतीय फौज से पंगा लेने की हिम्मत थी। मगर इन्हें नहीं पता था कि भारतीय फौज में पैराएसएफ भी है। जिसको धरती, पानी और आसमान भी एक करना पड़े तो वह करेगी। लेकिन अपने साथियों को नर्क से भी जिंदा निकाल के लाएगी। रेबल्स के सनकीपन को उतारने के लिए भारतीय फौज ऑपरेशन खुखरी शुरू करती है। 

नई दिल्ली में मेजर हरिंद्र सूद के नेतृत्व में दो पैरा एसएफ के 80 कमांडोस को एयरलिफ्ट करके सेरा लन भेजा जाता है। इस ऑपरेशन में इंडियन आर्मी के साथ-साथ एयरफोर्स को भी शामिल किया जाता है। इस मिशन के लिए Mi 35, Mi8 और चिनू को चुना जाता है। सबसे पहले ऑपरेशन खुखरी को चार फेस में बांटा जाता है। फेज वन में सभी कमांडोज़ को रेवेल्स को खबर लगे बिना पूरे जंगल में फैलना था और हेलीकॉप्टर को अलर्ट पे रखा जाना था। फेज टू में हेलीकॉप्टर से बमबारी करके कायलाहून में फंसे गोर्खा सैनिकों को बाहर निकालना था। फज़ थ्री में बाहर निकले गोर्खा सैनिकों को पेंडमू नाम की जगह पे पहुंचना था। आखिरी फेस में सैनिकों को हेलीकॉप्टर से निकालना शुरू किया जाना था। 

अब प्लान तो हो गया था लेकिन इतना आसान नहीं था क्योंकि हमारे फौजी जिस इलाके में थे वहां रेवल्स की संख्या और पकड़ सबसे ज्यादा थी। इसी कारण हमारे कमांडोस की एक टुकड़ी को उस इलाके से 100 कि.मी. दूर एयरड्रॉप किया जाता है। वहां से अफ्रीका के घने जंगल से गुजरते हुए यह टुकड़ी उस इलाके में पहुंच जाती है। यह कमांडोस रेबल्स के इलाके में पूरे दो हफ्ते तक सर्विलांस करते हैं। वो वहां रुक कर सारी जरूरी जानकारी जैसे कि उनकी संख्या, उनके हथियार, उनके भागने के रास्ते सब इकट्ठा कर लेते हैं।

इधर रेबल्स को लग रहा था कि कोई इन फौजियों को बचाने की हिम्मत तक नहीं करेगा। वहीं दूसरी तरफ कमांडोज़ इनके घर में घुस के अपने साथियों को ले जाने के लिए निकल जाते हैं। 15 जुलाई 2000, सुबह 6:00 बजे अब ऑपरेशन शुरू होना था और कायलाहून की टुकड़ियों को ऑपरेशन की रणनीति मलयालम भाषा में बताई गई थी और शहर से 500 मीटर पीछे टुकड़ियों ने दो हेलीपैड तैयार किए क्योंकि घुसपैठ चौपर से होनी थी। 

मौसम हमारे कमांडोस की गोलियों से पहले बरसने लगता है और पूरा जंगल कीचड़ का दलदल बन चुका था। हमारी दो पैरा एसएफ के 80 कमांडोज़ को चिकून हेलीकॉप्टर से इस इलाके में उतारा जाता है। रेबल्स रेडियो मैसेज इंटरसेप्ट ना करें। उसके लिए कमांडोज़ आपस में मलयालम में बात करने का फैसला लेते हैं। भारी बारिश के कारण कमांडोज़ को एयर स्पोर्ट नहीं मिलती है। लेकिन फिर भी वह आगे बढ़ जाते हैं। सबसे पहले वह खुद को दो टुकड़ियों में बांटते हैं और कायलाहून की तरफ आगे बढ़ने लगते हैं। बिना रेबल्स को खबर लगे कमांडोस कायलाहून पहुंच जाते हैं और वहां पहुंचते ही सीधा फास्फोरस ग्रेनेड डाकते हैं। 

यह ग्रेनेड दो काम करता है। एक तो दुश्मन को लगभग अंधा कर देता है और दूसरा बहुत बड़े इलाके में आग लगा देता है। सालों से अत्याचार करने वाले रेबल्स के ऊपर आज जब ग्रेनेड फूटे तो उनके ड्रग्स का नशा एक झटके में उतर जाता है। वो समझने की कोशिश कर रहे थे कि उन पे हमला करने की हिम्मत किसने की। बस तभी उन्हें धुएं के पीछे से ऑलिव ग्रीन वर्दियों में उनकी मौत यानी पैरा एसएफ के कमांडोस दिखाई देते हैं। कमांडोस तुरंत अंदर घुस जाते हैं और जिस कैंप में हमारे फौजी थे वहां से उन्हें निकालने लगते हैं। एक-एक करके सारे फौजी वहां से ट्रक में बैठकर निकलने लगते हैं। रेबल्स अपने हाथ ही मसलते रह जाते हैं और 223 फौजी आंखों के सामने से फिर हो जाते हैं। 

अब 6:00 से 9:30 बजने को आए थे और मौसम भी खुल चुका था। इधर हमारे कमांडोज़ अपने साथियों के साथ प्लान के मुताबिक पेंडुंबा की तरफ जाने लगते हैं। पीछे रेबल्स और आगे हमारे फौजी। अब तक दृश्य ऐसा था लेकिन तभी आसमान में जोर की गड़गड़ाहट होने लगती है। रिबल्स आसमान की तरफ देख सोचते हैं कि मौसम तो साफ है। फिर बिजली कैसे गड़गड़ा रही है। उनकी इसी दुविधा को दूर करते हुए आसमान में हमारी इंडियन एयरफोर्स के चिनू प्रकट हो जाते हैं और रेबल्स पे ऐसा लोहा बरसाते हैं कि पूरा रास्ता साफ हो जाता है। इधर यह टुकड़ी अब बिना रुकावट पेंडुंबा की तरफ बढ़ने लगती है और अब बस हमारे फौजियों को भारत पहुंचने का इंतजार हो रहा था। लेकिन दोस्तों यह सेहरा लयन था जहां हर कदम पे एक नया खतरा मुंह खोलकर इंतजार करता था। 

पेंडुबा में तो रेबल्स पहले से ही हमारे फौजियों का आरपीजी और एलएमजी के साथ इंतजार कर रहे थे। यहां उन्होंने एक बहुत बड़ा चेक पॉइंट बना रखा था। यहां से बिना लड़ाई किए निकलना मुमकिन ही नहीं था। अब हमारे फौजियों को ट्रक से उतरना ही पड़ता है। इस बार रेबल्स भी तैयार थे और वह भी पूरा जवाब देते हैं। करीब 4 घंटे तक गोलीबारी चलती है और हमारे फौजियों ने लगभग आधा शहर सिक्योर कर लिया था। रेवेल्स अभी भी गोलियां चला रहे थे। इसलिए लगभग 1:00 बजे एयरफोर्स के M135 हेलीकॉप्टर पांच बार गोलियां बरसाते हुए रेबल्स के ऊपर से गुजरते हैं। 

अब चंद ही मिनटों में रेबल्स तितर-बितर हो जाते हैं। शाम के 6:00 बजे तक हमारी सेना ने पूरा कंट्रोल जमा लिया था और डिफेंसिव पोजीशन भी ले ली थी। अब यहां से हेलीकॉप्टर में बारी-बारी सभी फौजियों को इवेकुएट कर लिया जाता है। संघ की दुश्मनों के इलाकों में घुसकर अपने साथियों को निकालना काफी खतरनाक था। लेकिन भारतीय सेना की प्लानिंग के कारण मिशन सफल होता है। बस बदकिस्मती से हमारे एक जवान हवलदार कृष्ण कुमार शहीद होते हैं। दोस्तों हमारी सेना सिर्फ हमारे दिल पर राज नहीं करती बल्कि 10,000 कि.मी. दूर सेरा लन में जिस हिसाब से हमारे गोर्खाओं ने आम लोगों की मदद की थी, उसी के चलते वहां के लोगों ने मोआ नदी के किनारे पर खुखरी वॉर मेमोरियल भी बनाया है।

यह था हमारी भारतीय सेना का ऑपरेशन खुखरी। अगर आपको यह आर्टिकल पसंद आई तो शेयर जरूर करना और ऐसी ही आर्टिकल पढ़ने के लिए हमारे वेबसाइट जरुर विजिट करें। जय हिंद

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