मार्च 2004 की एक शाम जम्मू कश्मीर के शोपिया जिले में बर्फीली वादियों के बीच एक छोटे से कमरे के पास मिट्टी के चूल्हे पर रखी केली से भाप उठ रही होती है। कमरे के भीतर एक अजीब सी खामोशी पसरी हुई थी और अंदर एक खाट पर कश्मीर में कहर बरपाने वाले आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन के दो खतरनाक कमांडर अबू तोरारा और अबू सबजार बैठे हुए थे। दोनों की पैनी निगाहें चोल्ले के पास खड़े इफ्तखार भट्ट पर टिकी होती है जो कहवा बना रहा था।
इफ्तेखार भट्ट उनके संगठन में नया भर्ती हुआ था। 2 हफ्ते पहले जब वो इफ्तेखार से मिले थे तो इफ्तेखार ने उन्हें बताया था कि 3 साल पहले भारतीय सेना ने उसके भाई को मार दिया था और अब वह सेना से बदला लेना चाहता है। उसने भारतीय सेना के काफिले पर एक बड़ा हमला करने का प्लान भी तैयार कर रखा था जिसे अगले ही दिन अंजाम दिया जाना था।
लेकिन पता नहीं क्यों अब जब मिशन का अंतिम समय पास आ चुका था तो उन दोनों आतंकियों की बेचैनी बढ़ती जा रही थी और उन्हें इफ्तेखार का शांत व्यवहार अजीब लगने लगा था। तभी इफ्तखार भट्ट कहवा के तीन गिलास लेकर कमरे में दाखिल हो जाता है। वह दोनों को कहवा देता है और अपना गिलास उठाकर चुपचाप बैठ जाता है। कुछ मिनटों तक तीनों चुपचाप कहवा पीते रहते हैं। लेकिन फिर यह खामोशी तोरारा की कठोर आवाज के साथ टूट जाती है। वो कहता है इफ्तखार मैं तुझसे सिर्फ एक बार पूछूंगा। सच बताना तू है कौन?
इफ्तखार चुप रहता है। तोरारा की आवाज और सख्त हो जाती है। तू है कौन? इस बार इफ्तार की चुप्पी टूट जाती है। वो धीरे से गिलास नीचे रखता है। अचानक खड़ा होता है और कंधे से राइफल उतार कर उनकी तरफ जमीन पर पटकते हुए तेज आवाज में कहता है। भाईजान अगर मुझ पर शक है तो यह लो बंदूक और मुझे गोली मार दो। यह सुनते ही तुरारा खड़ा हो जाता है। उस अबार की तरफ मुड़कर कुछ कहने ही वाला होता है कि अगले ही पल कमरे में गोलियों की गूंज फैल जाती है। इफ्तेखार ने अपने कपड़ों के अंदर छिपाई 9 एमएम पिस्तौल निकालकर पलक झपकते ही दोनों कमांडरों के सिर पर गोली दाग कर उन्हें ढेर कर दिया था। इसके बाद इफ्तेखार चुपचाप वापस खाट पर बैठ जाता है और अपना अधूरा कहवा उठाकर शांति से पीने लगता है। जैसे कुछ हुआ ही ना हो। जिसे दोनों आतंकी अपना साथी समझ रहे थे, वह दरअसल भारतीय सेना का एक जांबाज अफसर था। यह कहानी है मेजर मोहित शर्मा की जिनसे आतंकी थर-थर कांपते थे और जिनका कहना था कि मैं चाहे मारा जाऊं मगर कभी पकड़ा नहीं जाऊंगा।
मोहित शर्मा का जन्म 13th जनवरी 1978 को हरियाणा के रोहतक में हुआ था। उनके पिता राजेंद्र शर्मा पंजाब नेशनल बैंक के अधिकारी थे और मां सुशीला दिल्ली जल बोर्ड में काम करती थी। मोहित शर्मा अपने बड़े भाई मधुर शर्मा के काफी करीब थे जिनसे वह सिर्फ 13 महीने छोटे थे। बचपन से ही दोनों भाई पढ़ाई में काफी अच्छे थे। उनके पेरेंट्स चाहते थे कि उनके दोनों बेटे इंजीनियर बने और एक सिक्यर्ड और कंफर्टेबल लाइफ एंजॉय करें। लेकिन उनके बड़े भाई मधुर शर्मा इंडियन एयरफोर्स में जाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने एनडीए की तैयारी की। पर उनका सिलेक्शन नहीं हो सका। इसके बाद मधुर शर्मा ने तो अपने पेरेंट्स की इच्छा से इंजीनियरिंग को चुन लिया लेकिन उनसे प्रभावित होकर मोहित शर्मा पर सेना में जाने का ऐसा जुनून सवार हो चुका था जो किसी भी हाल में मिटने वाला नहीं था।
मोहित शर्मा की शुरुआती पढ़ाई साउथ एक्सटेंशन दिल्ली के मानव स्थली स्कूल और साहिबाद के होली एंजल स्कूल से हुई। इसके बाद उन्होंने गाजियाबाद के दिल्ली पब्लिक स्कूल में पढ़ाई की। जहां से उन्होंने 1995 में अच्छे परसेंटेजेस के साथ अपनी 12वीं पास की। घरवालों को लगा कि बड़े बेटे की तरह उन्हें भी इंजीनियरिंग करा दी जाए।
इसलिए उन्होंने बिना देर किए महाराष्ट्र के श्री संत गजानन महाराज कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में उनके एडमिशन करवा दिया। पेरेंट्स को इस बात की तसल्ली थी कि अब उनका बेटा इंजीनियर बनेगा। बड़ी नौकरी पाएगा और जिंदगी सुकून से बिताएगा। लेकिन वह यह नहीं जानते थे कि मोहित शर्मा की धड़कनों में केवल भारतीय सेना की वर्दी का सपना बसता है। इसी जुनून के चलते पेरेंट्स को बताए बिना उन्होंने नेशनल डिफेंस एकेडमी की तैयारी शुरू कर दी। सुबह शाम जब बाकी लोग इंजीनियरिंग के असाइनमेंट्स में सिर खपाते तब मोहित अपनी मेज पर बैठकर एनडीए के सवाल हल करते। करंट अफेयर्स पढ़ते और मेंटली एंड फिजिकली खुद को स्ट्रांग बनाते।
आखिरकार उन्होंने एनडीए का एग्जाम दिया लेकिन काफी दिन गुजर जाने के बाद भी उन्हें अपने रिजल्ट का पता नहीं लग सका। दरअसल उनका रिजल्ट घर पहुंच चुका था लेकिन उनके पेरेंट्स ने जानबूझकर उसे छुपा लिया था। उन्हें डर था कि अगर मोहित को पता चल गया कि वह एनडीए पास कर चुके हैं तो वह इंजीनियरिंग छोड़कर सेना की ओर भाग जाएंगे। रिजल्ट ना मिलने से मोहित बेचैन हो उठे। उन्हें शक हुआ कि कहीं कुछ गड़बड़ है। उन्होंने सीधे एनडीए एग्जाम कंडक्ट कराने वाले यूपीएससी ऑफिस में फोन लगाया और अपना रोल नंबर बताते हुए पूछा कि उनका नाम मेरिट लिस्ट में है या नहीं। उधर से जो जवाब आया उसे सुनकर उनकी रगों में बिजली दौड़ गई। उनका नाम मेरिट लिस्ट में था और एसएसबी इंटरव्यू कॉल लेटर उनके घर भी भेज दिया गया था। दिन रात सेना का सपना देख रहे मोहित के लिए अब रुकना नामुमकिन था। उसी समय वह हॉस्टल के कमरे का ताला लगाते हैं। चाबी अपने दोस्त के हाथ में सौंपते हैं और एसएसबी का इंटरव्यू देने के लिए सीधे भोपाल के लिए निकल जाते हैं। इसी टाइम उनके पेरेंट्स को भी पता चल गया कि वह इंटरव्यू के लिए गए हैं।
उन्होंने मोहित को समझाने की खूब कोशिश की लेकिन मोहित ने साफ कह दिया कि या तो इंडियन आर्मी या कुछ नहीं। बेटे की ज़िद के आगे वह कुछ नहीं कर सके और उन्होंने भी उन्हें परमिशन दे दी। एसएसबी इंटरव्यू क्लियर करने के बाद मोहित शर्मा को फिजिकल टेस्ट देना था। लेकिन प्रॉब्लम यह थी कि फिजिकल टेस्ट पास करने के लिए मोहित का वजन 6 किलो कम था। यह उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी। लेकिन मोहित की जिंदगी में उनकी मां हर मुश्किल का हल थी। जो मां पहले उनके फैसले के खिलाफ थी, वही अब अपने बेटे के सपने को अपना बना चुकी थी। उन्होंने अपने हाथों से बेटे के लिए एक स्पेशल डाइट तैयार की और उन्हें प्रॉपर तरीके से दूध, केले, घी, प्रोटीन देना शुरू किया। जिसके चलते कुछ ही दिनों में मोहित का वजन 8 किलो बढ़ गया। आखिरकार उन्होंने अपनी फिजिकल एग्जामिनेशन क्लियर कर ली और वह एनडीए में सेलेक्ट होकर 3 साल की ट्रेनिंग के लिए पुणे भेज दिए जाते हैं।
1995 में पुणे के खड़कवासला कैंपस में मोहित शर्मा की कैडिट ट्रेनिंग की शुरुआत होती है। जहां एनडीए की पढ़ाई के दौरान वो इंडिया स्क्वाड्रन इंजं्स के मेंबर थे। 3 साल की इस कठोर ट्रेनिंग के दौरान मोहित ने खुद को हर फील्ड में साबित किया और अपनी पर्सनालिटी को लोहे की तरह मजबूत बनाया। मोहित बाकी कैडिट से बिल्कुल अलग थे। वो बॉक्सिंग, स्विमिंग और हॉर्स राइडिंग में माहिर थे। वो बॉक्सिंग में फेदर वेट कैटेगरी में और हॉर्स राइडिंग में चैंपियन भी बने। मोहित का आर्टिस्टिक साइड भी उतना ही स्ट्रांग था। वो गिटार, माउथ ऑर्गन, सिंथेसाइज और प्ले करने में भी काफी अच्छे थे। उनकी वॉइस भी कमाल की थी और वह हेमंत कुमार के गाने गाकर अपनी लाइफ परफॉर्मेंससेस से सबको मंत्रमुग्ध कर देते। ट्रेनिंग सेशन के बाद कभी-कभी मोहित अपने भाई मधुर शर्मा को फोन करके अपनी कहानियां सुनाते। मधुर उनकी बातों को बड़े चाव से सुनते और उन्हें लगता कि मोहित उनकी अधूरी ख्वाहिश को पूरा कर रहे हैं। 1999 में जब मोहित देहरादून की इंडियन मिलिट्री एकेडमी में ट्रेनिंग कर रहे थे तब उसी बीच भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल वॉर छिड़ गया। हर दिन टीवी पर न्यूज़ रिपोर्ट्स, द्रास और कारगिल से आती अपडेट्स और इंडियन सोल्जर्स की बहादुरी की कहानियों ने उनके मन में देश के लिए कुछ कर गुजरने के जज्बे को और भी मजबूत कर दिया। आईएमए में उनकी एक्सीलेंस बरकरार रही और उन्हें बटालियन कैडिट एडिटेंट बीसीए की रैंक पर अपॉइंट किया गया। वो उन चुनिंदा कैडिट्स में से थे जिन्हें राष्ट्रपति भवन में उस समय के प्रेसिडेंट के आर नारायणन से मिलने का मौका मिला। ट्रेनिंग पूरी होने के बाद 11 दिसंबर 1999 को मोहित शर्मा हैदराबाद में मद्रास रेजीमेंट की पांचवी बटालियन में लेफ्टिनेंट के पद पर कमीशन हो गए। कमिशनिंग की रात जब कामयाबी का जश्न चल रहा था तो उनके एक साथी कैडिडेट ने मोहित से पूछा तू पोस्टिंग कहां पर चाहता है?
मोहित ने बिना सोचे जवाब दिया वही जहां आतंकियों को ठिकाने लगा सकूं और जहां रियल फाइटिंग हो। उनके इस जज्बे को देखकर दोस्त ने कहा तो फिर तू स्पेशल फोर्सेस में जा भाई असली धार है। मोहित ने ग्लास टकराते हुए कहा, बस वही प्लान है। शुरुआत से ही मोहित शर्मा का सपना पैरा एसएफ में शामिल होने का था। इंडियन आर्मी की पैराएसएफ एक ऐसी एलट फोर्स है जो काउंटर इंसर्जेंसी, काउंटर टेररिज्म और होस्टेज रेस्क्यू जैसे सबसे डेंजरस रोल्स निभाती है। यह पोजीशन जितनी हार्ड है इसका सिलेक्शन क्राइटेरिया उतना ही टफ है और मोहित खुद को इसी के लिए तैयार कर रहे थे। मद्रास रेजीमेंट में कुछ टाइम सर्विस देने के बाद साल 2000 में लेफ्टिनेंट मोहित शर्मा को जम्मू कश्मीर के पुछ राजोरी सेक्टर में तैनात कर दिया जाता है। उनकी तैनाती 38 राष्ट्रीय राइफल्स के साथ हुई जो भारतीय सेना की एक खास काउंटर इंसर्जेंसी फोर्स है। यहीं पर मोहित को पहली बार पैराएसएफ ऑफिसर्स और कमांडोस के साथ काम करने का मौका मिला। जिससे उनका जुनून और बढ़ गया। वह हर दिन कुछ नया सीखते और खुद को और मजबूत बनाते। काउंटर इंसर्जेंसी ऑपरेशंस में उन्होंने इतनी ब्रेवरी से काम किया कि 2002 में उनकी वीरता के लिए उन्हें चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ कमेंडेशन मेडल से सम्मानित किया गया। अगले साल उनका वो सपना भी पूरा हो गया जो उन्होंने शुरू से देखा था।
जून 2003 में उन्होंने पैरा फोर्सेस के चैलेंजिंग सिलेक्शन क्राइटेरिया को पार कर लिया और वह वन पैरा स्पेशल फोर्सेस का हिस्सा बन गए। इतना ही नहीं उनके बढ़िया काम को देखते हुए दिसंबर 2003 में उनको कैप्टन के पद पर प्रमोट कर दिया गया। इसी समय कश्मीर घाटी में आतंकवाद भयानक रूप ले रहा था। हिजबुल मुजाहिद्दीन जैसे आतंकी संगठन लोकल युवाओं को बहला-फुसला कर और धार्मिक कट्टरता का सहारा लेकर अपनी ओर खींच रहे थे। यह एक तरह का अंदरूनी जहर था जो समाज की जड़ों को खोखला कर रहा था। इसके पीछे हिजबुल मुजाहिद्दीन के दो कमांडर्स अबू सबजार और अबू तोरारा जैसे खूंखार आतंकी थे जो ना सिर्फ कश्मीरी युवाओं को ब्रेन वाश कर भर्ती करते थे बल्कि दक्षिण कश्मीर के दूरदराज के इलाकों में दहशत फैला रहे थे। यह आतंकी घने जंगलों और पहाड़ी गुफाओं में छुप कर रहते। जहां से वह भारत और भारतीय सेना के खिलाफ लगातार साजिशें करते। वंडर ग्राउंड होकर काम करते जिससे भारतीय सेना के लिए उन तक पहुंचना और एक्यूरेट इंटेलिजेंस जुटाना बेहद मुश्किल हो गया था। यह लड़ाई अब एक दिमागी खेल बन चुकी थी जहां दुश्मन आम नागरिकों की भीड़ में अपनी पहचान छुपा कर बैठा था।
आतंकी जानते थे कि सेना के लिए लोकल कश्मीरीज के बीच से उन्हें निकालना कितना मुश्किल होगा। उनसे निपटने के लिए सेना को एक ऐसे जांबाज सैनिक की जरूरत थी जो इन आतंकियों के बीच घुल मिल सके। उनके विश्वास को जीत सके और अंदर घुस कर उन्हें खत्म कर सके। सेना की इंटेलिजेंस यूनिट को इस रोल के लिए कैप्टन मोहित शर्मा से बेहतर कोई नहीं लगा जिनकी शुरू से ही आतंकियों को ठिकाने लगाने की तमन्ना थी। यह बेहद खतरनाक मिशन था जिसमें उन्हें गुमनाम होकर काम करना था जिसमें रिवॉर्ड की कोई गारंटी नहीं थी और शहादत का पूरा जोखिम था। इन सभी खतरों को जानते हुए भी मोहित शर्मा तुरंत इसके लिए तैयार हो जाते हैं।
प्लान बनाया जाता है कि मोहित शर्मा को एक नई पहचान दी जाएगी और उनका नाम इफ्तार भट्ट होगा। प्लान के हिसाब से मोहित शर्मा को इफ्तेखार भट्ट बनकर हिजबुल मुजाहिद्दीन के दोनों कमांडर्स अबू सबजार और अबू तोरारा तक पहुंचना था। उनका भरोसा जीतने के लिए उन्हें उन आतंकियों को एक झूठी कहानी सुनानी थी कि 3 साल पहले भारतीय सेना ने एक एनकाउंटर में उनके भाई को मार दिया था और अब वह इसका बदला लेना चाहते हैं। प्लान के अकॉर्डिंग मोहित शर्मा अपने आप को एक कश्मीरी के रूप में ढालना शुरू कर देते हैं। वह अपनी दाढ़ी और बाल बढ़ाते हैं जो उनके कंधों तक पहुंचने लगे। उन्होंने कश्मीरी पोशाक पहनना शुरू कर दिया और डोगरी और उर्दू भी सीखी।
उन्होंने कुरान की आयतों को भी सीखा जिससे किसी को उन पर शक ना हो। वह रेगुलर मस्जिद भी जाने लगे और उन्होंने अपनी फौज की दमदार चाल को भी जरूरत के हिसाब से बदल लिया। उनका पूरा हुलिया कुछ ही महीनों में एक कश्मीरी शख्स जैसा हो गया और उन्हें देखकर कोई नहीं कह सकता था कि वह एक भारतीय सैनिक हैं। मोहित शर्मा से वह अब इफ्तेखार भट्ट बन गए थे। वह फिरन पहनकर कश्मीर की गलियों में घूमते, लोकल लोगों से बात करते और अपने भाई की मौत का बदला लेने की कहानी सुनाते। 2 महीने तक मोहित एक आम कश्मीरी के रूप में शोपिया के आसपास के गांव में घूमते रहते और अपनी झूठी कहानी दोहराते रहते।
ऐसे में वह जल्द ही हिजबुल मुजाहिद्दीन के ओवर ग्राउंड वर्कर्स की नजर में आ गए। ओवर ग्राउंड वर्कर्स को लगा कि यह इफ्तेखार भट्ट अपने भाई की मौत से बहुत दुखी है और इसके अंदर जो इंडियन आर्मी के लिए नफरत है, यह उनके आकाओं के काम आ सकती है। इसी के चलते मार्च 2004 में शोपिया के गांव में इफ्तेखार भट्ट उर्फ़ कैप्टन मोहित शर्मा की हिजबुल मुजाहिद्दीन के कमांडर्स अबू सबजार और अबू तोरारा से मुलाकात करवाई जाती है। प्लान के अकॉर्डिंग मोहित शर्मा उन दोनों को भी यही बताते हैं कि उनका नाम इफ्तेखार भट्ट है और 3 साल पहले भारतीय सेना ने एक एनकाउंटर में उनके भाई को मार दिया था और अब वो इसका बदला लेना चाहते हैं। मोहित शर्मा ने उन्हें एक आर्मी चेक पॉइंट पर हमले की योजना भी बताई। उन्होंने आर्मी पेट्रोल्स के मूवमेंट के कुछ मैप्स दिखाए जो उन्हें सीक्रेट पहाड़ी रास्तों से होकर गुजरने की जानकारी देते थे। इफ्तखार बनकर मोहित शर्मा ने आतंकियों को बताया कि उन्होंने यह सटीक प्लान महीनों की कड़ी रेकी के बाद तैयार किया है। हालांकि इफ्तिखार का यह कदम जोखिम भरा था क्योंकि अगर आतंकियों को उनकी बातों पर थोड़ा भी शक होता तो उनकी जान जा सकती थी।
लेकिन मोहित शर्मा की तैयारी और एक्टिंग इतनी अच्छी थी कि आतंकियों को उनकी कहानी सच लगने लगी। वो उनके बदले की भावना से बहुत प्रभावित थे। उन्हें लगा कि यह लड़का उनके लिए एक बड़ा हथियार साबित हो सकता है और इसके जरिए भारतीय फौज पर एक बड़ा हमला किया जा सकता है। अबू तोरारा और अबू सबजार को जब उनकी बातों पर यकीन हो गया तो उन दोनों ने मोहित शर्मा से कहा तुम्हारा प्लान काफी सॉलिड है। हम इस पर जरूर काम करेंगे। लेकिन अभी तैयारी करने के लिए सभी को कुछ दिनों के लिए गायब होना होगा। इस पर मोहित शर्मा ने जो जवाब दिया उसने दोनों आतंकियों को और भी प्रभावित कर दिया। इफ्तखार बने मोहित शर्मा बहुत गुस्से में कहते हैं भाईजान मैं मिशन पूरा किए बिना गांव वापस नहीं जाऊंगा चाहे आप साथ दें या नहीं। इफ्तेखार का यह जज़बा देखकर अबू तोरारा और अबू सबज़ार को लगा कि यह लड़का सच में सेना से इतनी नफरत करता है कि किसी भी हाल में मिशन को अंजाम देना चाहता है। इस पल वो दोनों आतंकी मोहित शर्मा के जाल में पूरी तरह से फंस चुके थे और इसके बाद वह ऐसी गलती करने वाले थे जिसकी कीमत वो अपनी जान देकर चुकाने वाले थे।
वो दोनों मोहित शर्मा को अपने सबसे सुरक्षित ठिकाने पर ले जाते हैं। इस तरह भारतीय सेना का शेर शिकारियों की माद में घुस चुका था। अगले दो हफ्तों तक मोहित शर्मा उन आतंकियों के साथ गुजारते हैं। आतंकी ना सिर्फ उन्हें ट्रेनिंग देते हैं बल्कि वह उन्हें अपने तौर तरीके हथियारों की जानकारी और अपने सबसे सेफ ठिकानों के बारे में भी बताते हैं। आखिरकार वो दिन आ गया जब उसी हाइड आउट में भारतीय सेना पर हमले की पूरी योजना तैयार हो गई। प्लान साफ था जितना ज्यादा हो सके भारतीय सैनिकों को मारना है। इस हमले का मास्टरमाइंड भी इफ्तेखार उर्फ मोहित शर्मा को ही बनाया गया। उस रात ग्रेनेड की एक कंसाइनमेंट आने वाली थी। अगली सुबह 3:00 और हिजबुल आतंकी उनसे जुड़ने वाले थे और फिर अगली दोपहर भारतीय सेना की टुकड़ी पर हमला होना था।
लेकिन इस दौरान तोरारा को इफ्तेखार के हावभाव पर हल्का शक होने लगा था। कमरे की खिड़की से बाहर देखते हुए उसने सबज़ार से कहा, "मुझे कुछ गड़बड़ लग रही है। हम इसके नाम और उसकी बताई गई कहानी के अलावा इसके बारे में और क्या ही जानते हैं। सब ने अपनी सिगरेट का कश लिया और धुआं छोड़ते हुए कहा, "क्या हुआ, तू उससे बात करना चाहता है।" तभी इफ्तेखार भट्ट बने मोहित शर्मा कहवा के तीन गिलास लेकर कमरे में दाखिल हो जाते हैं। उनका चेहरा बिल्कुल शांत था। वह उन दोनों को कहवा देते हैं और फिर अपना ग्लास उठाकर चुपचाप खाट के किनारे बैठ जाते हैं। तीनों के पास AK-47 राइफल थी लेकिन मोहित शर्मा ने अपनी राइफल कंधे से लटका रखी थी। कुछ मिनटों तक तीनों चुपचाप कहवा पीते रहे। फिर तोरारा मोहित शर्मा के घुटनों पर हाथ रखते हुए कठोर आवाज में पूछता है। इफ्तखार मैं तुझसे सिर्फ एक बार पूछूंगा।
सच बताना तू है कौन? तोरारा ने जब दोबारा यही सवाल दोहराया तो मोहित शर्मा धीरे से अपना ग्लास नीचे रखकर खड़े होते हैं और कंधे से राइफल उतार कर उनके तरफ जमीन पर पटकते हुए तेज आवाज में कहते हैं भाईजान अगर मुझ पर शक है तो यह लो बंदूक मुझे अभी गोली मार दो। अगर तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है तो तुम मेरी मदद भी नहीं कर सकते। तुम्हारे पास सिर्फ एक ही रास्ता बचता है और वो है मुझे मारना। यह सुनते ही अबू तोरारा खड़ा हो जाता है। जैसे ही उसने अबू सब अबजारार की ओर मुड़कर कुछ पूछना चाहा, उसी पल मोहित शर्मा अपने कपड़ों के अंदर से 9 एमएम की पिस्तौल निकालते हैं और दोनों आतंकियों के सिर में गोली मार देते हैं। धुआ और बारूद की गंध हवा में भर जाती है और दोनों आतंकवादी वहीं ढेर हो जाते हैं। उन्हें मारने के बाद मोहित शर्मा वही खाट पर बैठ गए और बचे हुए कावा को शांति से ऐसे पीने लगे जैसे वहां कुछ हुआ ही ना हो। जिस मिशन के लिए उन्होंने इतनी मेहनत की थी, वह अब कामयाब हो चुका था।
उन्होंने ना सिर्फ आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन के दो सबसे बड़े कमांडर्स को मौत के घाट उतार दिया था, बल्कि उनकी काफी क्रूशियल इंफॉर्मेशन भी सेना को दी। जिसके चलते हिजबुल मुजाहिद्दीन की कमर टूट गई। अगली सुबह इफ्तेखार भट्ट फिर से कैप्टेन मोहित शर्मा बन चुके थे, और जब वो अपने बेस कैंप में वापस लौटे, तो उनके चेहरे पर एक लंबी और खतरनाक रात के मिशन की थकान साफ दिख रही थी। लेकिन उनकी आंखों में वो चमक भी थी जो हर पैरा कमांडो की पहचान होती है। उनके साथी अफसर जो उनकी बहादुरी और जांबाजी से वाकिफ थे। उन्होंने उनके दाढ़ी बड़े लुक्स को देखते ही मजाक में कहा मोहित तेरी शक्ल देखकर तो अगली बार हमारी ही आर्मी तुझे पकड़ लेगी। इस मजाक को सुनकर मोहित शर्मा की आंखों में एक गहरी मुस्कान आ गई। उन्होंने बिना एक पल भी सोचे अपने साथी की तरफ देखा और बोले शायद मैं मारा जाऊं पर कभी पकड़ा नहीं जाऊंगा। 2004 में इसी बहादुरी के लिए मोहित शर्मा को प्रेस्टीजियस सेना मेडल दिया गया।
इस ऑपरेशन के 2 महीने बाद मोहित शर्मा आखिरकार अपनी पहली छुट्टी लेते हैं। उन्हें अपने परिवार से मिलने गाजियाबाद आना था। रेलवे स्टेशन पर उनके भाई मधुर शर्मा और उनके पेरेंट्स उन्हें रिसीव करने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। मधुर को उम्मीद थी कि वह अपने फौजी भाई को वर्दी में देखेंगे। लेकिन जब ट्रेन आई तो हर जगह ढूंढने के बाद भी उन्हें मोहित कहीं नजर नहीं आए। पूरा प्लेटफार्म छान मारने के बाद भी जब उन्हें मोहित नहीं दिखे तो उन्होंने गुस्सा करते हुए कहा, यह मोहित भी ना बड़ा अजीब है। हमको कब से खड़ा कर रखा है और आया भी नहीं है।
यह सुनकर उनके बगल में खड़ा एक लंबा चौड़ा दाढ़ी वाला शख्स हंसने लगा। पहले तो मधुर शर्मा ने उसे देखकर इग्नोर कर दिया। लेकिन फिर जब उन्होंने गौर से देखा तो उनकी भी हंसी छूट पड़ी। वो शख्स कोई और नहीं बल्कि मोहित शर्मा ही थे। जिनके इफ्तखार भट्ट वाले लुक में उन्हें उनके भाई और मां-बाप भी नहीं पहचान पाए थे। नवंबर 2004 में मोहित शर्मा की मेजर ऋषिमा शर्मा से शादी हो जाती है। उनके पेरेंट्स काफी खुश थे और उन्हें लगा कि अब मोहित थोड़ा शांत हो जाएंगे। लेकिन उन्हें क्या पता था कि उनके बेटे के इरादे दूर तक जाने वाले थे। वह एक सैनिक थे और एक सैनिक की आत्मा हमेशा युद्ध के मैदान में ही रहती है।
दिसंबर 2005 में मोहित शर्मा की टॉप क्लास सर्विस को देखते हुए उन्हें मेजर के पद पर प्रमोट कर दिया जाता है। समय गुजरता रहा और फिर अक्टूबर 2008 में मेजर मोहित शर्मा को एक बार फिर बढ़ती आतंकी गतिविधियों के चलते कश्मीर घाटी में वापस बुला लिया जाता है। उनकी स्पेशल फोर्सेस की टीम को अगले 5 महीनों तक बर्फीले और सुनसान पहाड़ों में आतंकियों की तलाश में लगाया जाता है।
यह एक थका देने वाला, जोखिम भरा और मेंटली ड्रेन करने वाला काम था। लेकिन मेजर मोहित शर्मा और उनकी टीम अपनी ड्यूटीज के लिए पूरी तरह से समर्पित थे। 20 मार्च 2009 की शाम जब मेजर मोहित शर्मा अपनी टीम के साथ कुपवाड़ा में अपने बेस पर थे तब उन्हें सेक्टर कमांडर का अर्जेंट कॉल आता है। उन्हें इंटेलिजेंस इनपुट मिलता है कि एलओसी पार करके कुछ ट्रेन टेररिस्ट हाफूड़ा के घने जंगलों में घुस आए हैं। यह खबर सुनते ही मेजर मोहित शर्मा की आंखों में वही आग चमक उठती है। वह बिना एक पल बर्बाद किए तुरंत अपनी टीम को तैयार होने और हाफूड़ा की ओर कूच करने का आदेश देते हैं। अगली सुबह 21 मार्च 2009 को मेजर मोहित शर्मा और उनकी टीम हाफड़ा के उन घने और खतरनाक जंगलों में दाखिल हो जाते हैं। जहां सूरज की रोशनी भी मुश्किल से जमीन तक पहुंच पाती थी। यह सिर्फ एक जंगल नहीं बल्कि दुश्मनों का गढ़ था।
दुश्मन के अलावा मोहित शर्मा की टीम के आगे पेड़ों की घनी छतरी, बर्फ से ढके रास्ते और बर्फीली हवाएं उनके रास्ते में एक रुकावट थी। वह जानते थे कि उन्हें ना सिर्फ दुश्मनों से बल्कि प्रकृति की भीषण चुनौतियों से भी लड़ना है। मेजर मोहित शर्मा अपनी टीम को तीन टुकड़ियों में बांटते हैं और बर्फ पर बने आतंकियों के पैरों के निशानों का पीछा करने लगते हैं। वह जंगल में थोड़ा अंदर पहुंचे ही थे कि तभी अचानक आतंकियों ने उनकी यूनिट पर फायरिंग करना शुरू कर दिया। आतंकी पहले से जाल बुनकर बैठे थे और जंगल की गहराई में छिपकर वार कर रहे थे। उन्होंने मेजर मोहित शर्मा की टीम को तीन तरफ से घेर लिया।
सभी के पास AK-47 राइफलें और इलाके के सटीक नक्शे थे जो उन्हें सेना से भी ज्यादा सटीक जानकारी दे रहे थे। मेजर मोहित ने तुरंत स्थिति को भांप लिया और उन्होंने साथी सैनिकों को पीछे हटने और कवर लेने का आर्डर दिया। जब एक हवलदार ने उन्हें खुद कवर में आने को कहा तो उन्होंने कहा, मैं बाद में आऊंगा पहले तुम जाओ। इस तरह यहां भी मेजर मोहित शर्मा ने खुद से ज्यादा अपने साथियों की सेफ्टी को प्रायोरिटी दी। उन्होंने आतंकियों को निशाने पर लेकर अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरू कर दी। वह खुद कवर में नहीं थे इसलिए उसी वक्त एक गोली उनके हाथ में लग गई।
उन्होंने एक कपड़े से घाव को बांधा और फिर से गोलियां चलाने लगे। वह लगातार फायरिंग करते रहे ताकि उनकी टीम को पीछे हटकर वार करने का मौका मिल सके। इस दौरान लांस नायक सुभाष एमजीएल से फायरिंग कर रहे थे। लेकिन तभी उन्हें गोली लग जाती है और वह घायल हो जाते हैं। ऐसे में मेजर मोहित खुद आगे आते हैं और उस एमजीएल से आतंकियों पर ताबड़तोड़ फायर करने लगते हैं। चंद मिनटों में उनकी फायरिंग रेंज में आने से चार आतंकवादी वहीं ढेर हो जाते हैं।
लेकिन जैसे ही मेजर मोहित अपनी टीम के पास लौट रहे थे, एक और गोली उनके सीने के बाई ओर लगती है। यह गोली ठीक उस जगह लगी थी जहां बुलेट प्रूफ जैकेट का कवर नहीं था। इससे उनकी रफ्तार थोड़ी धीमी पड़ गई। लेकिन ऐसे जांबाज योद्धा का भला एक-दो गोली क्या बिगाड़ सकती थी। गोली लगने के बावजूद उनका जज्बा कम नहीं हुआ। उन्होंने अपने साथियों से कहा, कुछ नहीं हुआ है मुझे।
मामूली सा घाव है। तुम लोग फायरिंग जारी रखो। हम स्पेशल फोर्स में इसी काम के लिए आए हैं। उन्होंने इस दौरान अपने दो साथियों को दुश्मन के निशाने पर आने से बचाया। लेकिन खुद गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी वह पेड़ के सहारे टिक कर लगातार आतंकियों पर फायर करते रहे। एक तरफ वह दुश्मनों को गोलियों से छलनी कर रहे थे, दूसरी तरफ उनका शरीर भी अब जवाब देने लगा था। सीने में लगी गोली से घाव अब गहरा हो चला था और लगातार खून बहने से उनका शरीर खून से लथपथ हो गया। उनका हाथ भी कांपने लगा लेकिन उन्होंने फायरिंग जारी रखी।
ऊंचाई पर मौजूद यूनिट का तीसरा स्क्वाड अब फायरिंग में शामिल हो चुका था। मेजर मोहित लगातार रेडियो पर कहते रहे फायरिंग बंद नहीं होनी चाहिए। चाहे कुछ भी हो जाए। धीरे-धीरे उनकी आवाज धीमी होती गई। उनका शरीर शांत होता गया लेकिन उनकी आंखें खुली हुई थी। जब वन पैरा एसएफ के बेस कैंप को यह मैसेज मिला कि मेजर मोहित शर्मा घायल हो गए हैं और चुपचाप बैठे हैं तो वहां के अफसरों को यकीन नहीं हुआ। लेकिन जवाब यही आया कि वह हिल भी नहीं पा रहे हैं। कुछ बोल भी नहीं पा रहे हैं। बेस कैंप में बैठे अफसरों को इस सच्चाई को स्वीकार करने में बहुत समय लगा कि मेजर मोहित शर्मा घने जंगलों में आतंकियों से लड़ते हुए मात्र 31 साल की छोटी सी उम्र में वीरगति को प्राप्त हो गए हैं।
यह ऑपरेशन 5 दिन तक चला जिसमें मोहित शर्मा समेत आठ भारतीय जवान शहीद हो गए। लेकिन इन वीर जवानों ने अपने प्राण न्योछावर करने से पहले 17 आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया था। भले ही मेजर मोहित शर्मा आज हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी कहानियां आज भी हर एक जवान के अंदर जोश भरती है। उनके अद्भुत साहस और बलिदान के लिए मेजर मोहित शर्मा को मरणोपरांत हाईएस्ट पीस टाइम गैलेंट्री अवार्ड अशोक चक्र से सम्मानित किया गया। उनके सम्मान में गाजियाबाद में राजेंद्र नगर मेट्रो स्टेशन का नाम बदलकर मेजर मोहित शर्मा राजेंद्र नगर मेट्रो स्टेशन कर दिया गया। इसी तरह वहां की एक सड़क का नाम मेजर मोहित शर्मा मार्ग है। 2021 में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने राजेंद्र नगर में उनके एक ग्रैंड स्टैच्यू का उद्घाटन किया।
यह प्रतिमा हर गुजरते इंसान को यह एहसास कराती है कि हम अपने घरों में चैन की नींद इसलिए सो पाते हैं क्योंकि मोहित शर्मा जैसे वीर अपने घर, परिवार, अपने सुकून की जिंदगी और अपनी खुशियां छोड़कर सरहद पर हमारी सुरक्षा के लिए लड़ते रहते हैं।



