Sam Manekshaw: The Fearless General Who Brought Pakistan to Its Knees. Read Full Story...

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साल 1942 वर्ल्ड वॉर 2 के दौरान बर्मा की लड़ाई में एक इंडियन सोल्जर को मेडिकल कैंप लाया जाता है उसके शरीर को जापानी सेना ने 9 गोलियों से छलनी कर दिया था उस सैनिक की हालत इतनी खराब थी कि डॉक्टर्स ने भी फिनिश्ड केस कहकर उसका ट्रीटमेंट करने से मना कर दिया था लेकिन उस सैनिक की अभी भी सांसें चल रही थी किसी तरह उसकी सर्जरी शुरू हुई उसके शरीर के कई बॉडी पार्ट्स बुरी तरह डैमेज हो चुके थे इंटेस्टाइन पूरी तरह से खराब हो चुकी थी इसलिए उसे होश में आने में कई घंटे लग गए लेकिन होश में आने के बाद जब डॉक्टर ने उससे पूछा तुम्हें क्या हो गया था तो उसने मुस्कुराते हुए कहा कुछ नहीं किसी गधे ने लात मार दी थी

इतने भयानक दर्द को भी हंसी में उड़ा देने वाले यह ब्रेव सोल्जर कोई और नहीं बल्कि इंडिया के पहले फील्ड मार्शल सैम मानिक शॉ थे जिन्होंने आगे चलकर अपनी काबिलियत से ना केवल इंडियन आर्मी को मॉडर्नाइज और काफी मजबूत किया बल्कि 1971 की इंडो पाक वॉर में पाकिस्तान को धूल चटा करर 93000 पाकिस्तानी सैनिकों को भारत के के घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था उनकी ब्रेवरी की वजह से ही उनका नाम बहादुर पड़ा लेकिन वह केवल युद्ध के मैदान में ही ब्रेव नहीं थे बल्कि आम जिंदगी में भी उनका अंदाज बेबाक था उन्हें ना तो बड़े पदों का डर था ना किसी सत्ता का दबाव का, डिफेंस मिनिस्टर हो या खुद प्राइम मिनिस्टर सैम मानिक शॉ हर किसी से खरी बात कहने की हिम्मत रखते थे उन्होंने एक बार तो प्राइम मिनिस्टर इंदिरा गांधी के डायरेक्ट ऑर्डर्स को भरी कैबिनेट के सामने रिजेक्ट कर दिया था उन्होंने अपने पद को भी दाव पर लगाकर हमेशा वही किया जो देश के लिए जरूरी था 

लेकिन क्या आप जानते हैं जिस शख्स ने अपनी पूरी जिंदगी भारत के लिए समर्पित कर दी उनके अंतिम संस्कार में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तो क्या सरकार का एक मंत्री तक नहीं पहुंचा था आखिर ऐसा क्या हुआ था कैसे एक डॉक्टर बनने का सपना देखने वाला लड़का भारत का सबसे बहादुर आर्मी ऑफिसर बना 

आइए जानते हैं फील्ड मार्शल सैम मानिक शॉ की जिंदगी की पूरी कहानी,,,,,,,

मानिक शौ का जन्म अप्रैल 1914 को पंजाब के अमृतसर शहर में एक पारसी परिवार में हुआ था सैम मानिक शौ, हर्मिस मानिक शौ और हिला मेहता की पांचवीं संतान थे उनके पिता हर्मिस मानिक शॉ पेशे से एक डॉक्टर थे सैम ने अपनी प्राइमरी एजुकेशन अमृतसर में हासिल की और आगे की पढ़ाई के लिए नैनीताल के शेरवुड कॉलेज में एडमिशन लिया बचपन से ही वह अपने पिता की तरह डॉक्टर बनना चाहते थे जब सैम 17 साल के हुए तो उन्होंने अपने पिता से लंदन जाकर मेडिकल की पढ़ाई करने की इच्छा जाहिर की लेकिन उनके पिता ने इस रिक्वेस्ट को यह कहते हुए ठुकरा दिया कि उनकी एज अभी काफी कम है साथ ही उस समय उनके दो बड़े भाई ऑलरेडी लंडन में रहकर पढ़ाई कर रहे थे इसलिए उनके पिता के लिए एक और बच्चे को लंदन भेजना आसान नहीं था अपने पिता से ना सुनकर सैम मानिक शौ को काफी बुरा लगा और मजबूरन उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए अमृतसर के हिंदू सभा कॉलेज में एडमिशन ले लिया यहीं से किस्मत उनकी जिंदगी को एक ऐसी दिशा देने वाली थी जिससे वोह एक आर्मी ऑफिसर बनने की ओर अपना पहला कदम बढ़ाने वाले थे दरअसल उस दौरान 1932 में जनरल पब्लिक सर्विस कमीशन ने इंडियन मिलिट्री अकेडमी आईएमए में भर्ती के लिए एप्लीकेशंस निकाली थी जिसके जरिए टैलेंटेड इंडियन कडिट्स को ब्रिटिश इंडियन आर्मी में एज एन ऑफिसर भर्ती किया जाना था 

सैम मानिक शौ ने अपने पिता से आईएमए जाने की इजाजत मांगी लेकिन इस बार भी उन्हें अपने पिता से ना सुनने को मिला हालांकि इस बार उन्होंने अपने पिता के खिलाफ जाकर इस पोस्ट के लिए अप्लाई कर दिया अपनी मेहनत के दम पर वो ना केवल इस एग्जाम में शानदार प्रदर्शन करते हुए आईएमए के लिए सिलेक्ट हुए बल्कि उन्होंने इसमें चुने गए 15 क्रेडिट्स में सिक्स्थ रैंक भी हासिल की इसके बाद सैम मानिक शौ को करीब 3 साल तक आईएमए में मिलिट्री ट्रेनिंग दी गई और 1935 में उन्हें रॉयल स्कट्स की सेकंड बटालियन में अपॉइंट्स में करीब 3 साल तक काम करने के बाद उन्हें 12थ फ्रंटियर फोर्स रेजीमेंट में क्वार्टर मास्टर अपॉइंट्स दिया गया भले ही शुरुआत में सैम डॉक्टर बनना चाहते थे लेकिन आर्मी जॉइन करने के बाद उन्होंने अपने जज्बे से सभी सीनियर्स का दिल जीत लिया था सैम को बर्मा में काम करते हुए सिर्फ एक साल ही हुआ था कि 1939 में वर्ल्ड वॉर 2 शुरू हो गया इस युद्ध में जापान ने एशिया में एलाइट पावर्स की हालत खराब कर दी थी 

और चाइना में अलाइड पावर्स को बुरी तरह रौंदकर जापान ने ब्रिटेन को भारत से भी खदेड़ने के लिए बर्मा की ओर अपने कदम बढ़ा दिए थे 1942 तक जापानीज इंपीरियल आर्मी बर्मा में बिलिन रिवर तक पहुंच चुकी थी जो सितांग से लगभग 48 किमी साउथ में था जापानी सेना बड़ी तेजी से सितांग ब्रिज की ओर बढ़ रही थी ऐसे में ब्रिटिशर्स ने सितांग को डिफेंड करने के लिए सैम माणिक शॉ को चुना और उन्हें डबल प्रमोशन देते हुए कैप्टन बना दिया 

कैप्टन सैम मानिक शॉ ने अपनी कंपनी के साथ यहां पूरी जान झोक दी जैसे ही जापानी सेना ने सितांग ब्रिज पर कब्जा करने की कोशिश की सैम मानिक शॉ के नेतृत्व में उनकी कंपनी के जवानों ने काउंटर अटैक करते हुए जापानियों को पीछे धकेल दिया और स्ट्रेटजिकली इंपोर्टेंट सितांग ब्रिज को डिफेंड कर लिया गया लेकिन इस दौरान झाड़ियों से छिपकर एक जापानी सैनिक ने एक के बाद एक पूरी नौ गोलियां सैम मानिक शॉ पर दाग दी इन गोलियों ने उनके शरीर को छलनी कर दिया था वो बुरी तरह घायल होकर वहीं गिर पड़े 36 घंटों तक इसी घायल अवस्था में युद्ध के मैदान में रहे और बेहोश हो गए इसके बाद उनकी बटालियन के एक सिपाही शेर सिंह ने जब उनको इस हालत में देखा तो वो तुरंत सैम को अपने कंधे पर लात करर वहां से काफी दूर एक मेडिकल कैंप तक लेकर गए मेडिकल कैंप पहुंचते-पहुंचते सैम की हालत काफी खराब हो चुकी थी 

पूरा शरीर खून से लथपथ था उनकी गंभीर चोटों को देखते हुए हुए एक ऑस्ट्रेलियन डॉक्टर ने उन्हें फिनिश्ड केस बताकर उनका ट्रीटमेंट करने से मना कर दिया उस डॉक्टर ने सैम के सर्वाइवल के कम चांसेस को देखते हुए उनके ट्रीटमेंट को वेस्ट ऑफ टाइम माना और युद्ध में घायल हुए दूसरे सोल्जर्स का ट्रीटमेंट करना बेहतर समझा क्योंकि 

बर्मा के युद्ध में सैम ने बेहद शानदार काम किया था इसलिए उनकी बहादुरी को ऑनर करने के लिए 177th इन्फेंट्री इंडियन डिवीजन के कमांडर मेजर जनरल डेविड कवन खुद उस मेडिकल कैंप में पहुंचे डेविड कवन ने अचेत अवस्था में पड़े सैम के सीने पर कॉमनवेल्थ फोर्सेस को दिए जाने वाले हाईएस्ट अवार्ड मिलिट्री क्रॉस को पिन कर दिया यह मिलिट्री क्रॉस युद्ध के मैदान में एक्सीलेंट ब्रेवरी दिखाने वाले सैनिकों को जिंदा रहते हुए दिया जाता था क्योंकि वहां मौजूद डॉक्टर्स और मिलिट्री ऑफिसर्स सैम के बचने की आशा छोड़ चुके थे इसलिए मेजर जनरल डेविड कवन चाहते थे कि सैम को यह अवार्ड जीते जी दे दिया जाए हालांकि इतने बहादुर सिपाही को बिना ट्रीटमेंट के ही मरते हुए छोड़ देना मिलिट्री को मंजूर नहीं था इसलिए डॉक्टर्स ने सैम का ऑपरेशन शुरू कर दिया नौ गोलियों ने सैम मानिक शॉ के पेट इंटेस्टाइन और लंग्स को बुरी तरह डैमेज कर दिया था इंटेस्टाइन इतनी बुरी तरह डैमेज हो चुकी थी कि उसका एक बड़ा हिस्सा डॉक्टर्स को उनके शरीर से निकालना पड़ा कई घंटे तक सैम मौत और जिंदगी के बीच झूलते रहे और आखिरकार उन्हें होश आ गया 

कुछ दिन बाद जब सैम मानिक शॉप पूरी तरह से रिकवर हो गए तो उन्होंने फिर से अपना चार्ज संभाल लिया और बेहतरीन काम के चलते पहले वो लूटन कर्नल और फिर 1947 में मिलिट्री ऑपरेशंस के ग्रेड वन जनरल स्टाफ ऑफिसर के पद पर पर पहुंच गए 1947 में भारत अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त हुआ लेकिन भारत को दो हिस्सों में बांटकर एक नया देश पाकिस्तान बना दिया गया पार्टीशन के दौरान आर्मी का भी बंटवारा किया गया और इस प्रक्रिया में सैम मानिक शौ की 12थ फ्रंटियर फोर्स राइफल्स को ब्रिटिशर्स ने पाकिस्तान को असाइन कर दिया अब चूंकि उनकी रेजीमेंट पाकिस्तान के हिस्से में थी और सैम मानिक शौ पारसी कम्युनिटी से बिलोंग करते थे इसलिए उनके पास भी अन्य पारसी की तरह पाकिस्तान में बसने का एक अच्छा अवसर था पाकिस्तान के प्रेसिडेंट मोहम्मद अली जिन्ना ने सैम मानिक शौ को खुद पाकिस्तानी आर्मी जॉइन करने का ऑफर दिया था लेकिन सैम का दिल तो सिर्फ भारत के लिए धड़कता था इसलिए उन्होंने जिन्ना का यह ऑफर ठुकरा दिया

इसके बाद सैम मानिक शॉ को इंडियन मिलिट्री में पहली पोस्टिंग एर्थ गुरखा राइफल्स रेजीमेंट में मिली सैम मानिक शौ की पर्सनालिटी इतनी शानदार थी कि वह सेना में बहुत बड़े पद पर रहते हुए भी बिना किसी भेदभाव के सेना के हर ओहदे के सैनिक के टच में रहते थे उन्हें सबके साथ घुल मिलकर रहना काफी पसंद था ऐसे ही एक बार वोह एर्थ गुरखा राइफल्स रेजीमेंट के एक सेंट्री से बात करने लगे उन्होंने उससे पूछा तुम्हारा नाम क्या है इस पर सेंट्री ने जवाब दिया हरका बहादुर गुरुंग इसके बाद सैम मानिक शौ ने उससे पूछा क्या तुम मुझे जानते हो तब तक सैम मानिक शौ की बहादुरी के चर्चे फौजियों के बीच काफी पॉपुलर थे इसलिए सेंट्री ने जवाब दिया जी आपका नाम सैम बहादुर है सैम मानिक शॉ यह सुनकर मुस्कुरा दिए तब से ही सैम मानिक शॉ को सैम बहादुर के नाम से जाना जाने लगा 

सैम मानिक शौ का उस दौरान एक डायलॉग काफी फेमस था कि "अगर कोई यह कहता है कि उसे मौत से डर नहीं लगता है तो या तो वह झूठ बोल रहा है या फिर वह गुरखा रेजीमेंट का सिपाही है" आजादी के बाद कई प्रिंसली स्टेट्स को भारत में मर्ज कराने में भी सैम मानिक शॉ की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही होम मिनिस्टर सरदार वल्लभ भाई पटेल उन पर काफी भरोसा करते थे कश्मीर मर्जर और हैदराबाद एनेक्सेशन के दौरान उन्होंने एक आर्मी ऑफिसर के रूप में गवर्नमेंट को कई वैल्युएबल सजेशंस दिए थे इसके अलावा जब पाकिस्तान के हमले के बाद कश्मीर में सीज फायर लाइन स्थापित करने के लिए दोनों देशों के बीच कराची कॉन्फ्रेंस हुई तो इंडियन गवर्नमेंट ने इसकी जिम्मेदारी तीन मिलिट्री ऑफिसर्स को सौंपी थी जिनमें सैम मानिक शॉ भी शामिल थे उनकी वॉर टैक्टिक्स इंटेलिजेंस अंडरस्टैंडिंग और लीडरशिप क्वालिटी को देखते हुए 1952 में उन्हें कर्नल के पद पर प्रमोट कर दिया गया 5 साल तक इंडियन आर्मी में कर्नल के पद पर रहते हुए शानदार काम करने के बाद साल 1957 में उन्हें हायर कमांड ट्रेनिंग के लिए इंपीरियल डिफेंस कॉलेज लंदन भेजा गया एक साल बाद जब वह इंडिया लौटे तो उन्हें प्रमोट करके मेजर जनरल बना दिया गया 

सैम मानिक शौ ना केवल एक बेहतरीन आर्मी ऑफिसर थे बल्कि एक शानदार लीडर भी थे जो खुद से ज्यादा देश के सैनिकों के वेल बीइंग के बारे में सोचते थे उनका केवल एक ही पर्पस था देश के लिए सबसे कैपेबल सोल्जर्स तैयार करना इसे अचीव करने के लिए वह बड़े-बड़े पॉलिटिशियन और ब्यूरोक्रेट से भी टकराने से नहीं कतराते थे एक बार उनके डिवीजन में कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा था उस दौरान डिफेंस मिनिस्टर वी के कृष्ण मैनन ने एक आदेश जारी किया कि इस काम में सोल्जर्स को भी लेबर के साथ लगा दिया जाए सैम मानिक शॉ को डिफेंस मिनिस्ट्री का अपने सैनिकों के प्रति ऐसा रवैया बिल्कुल बर्दाश्त नहीं हुआ उन्होंने साफ कहा कि उनके सोल्जर्स देश की रक्षा के लिए ट्रेन किए गए हैं ना कि चीप लेबर की तरह इस्तेमाल होने के लिए 

इस जवाब के बाद कृष्ण मैनन की नजर में सैम मानिक शौ खटकने शुरू हो गए थे डिफेंस मिनिस्टर कृष्ण मेनन की उस समय आर्मी चीफ जनरल के एस थिमैया से भी बिल्कुल नहीं बनती थी उनके बीच के रिश्ते इतने तनाव भरे थे कि जब भी केएस थिमैया को किसी सजेशन की जरूरत पड़ती तो वह प्राइम मिनिस्टर जवाहरलाल नेहरू और कृष्ण मेनन के बजाय प्रेसिडेंट डॉ राजेंद्र प्रसाद से डायरेक्ट कांटेक्ट करते थे ऐसे में कृष्ण मैनन केएस थिमैया को आर्मी चीफ के पद से हटाना चाहते थे उन्होंने ऐसे ही एक बार बातों ही बातों में सैम मानिक शौ से पूछा आप केएस थिमैया के बारे में क्या सोचते हैं इस पर सैम माणक शॉ ने जवाब दिया मिनिस्टर के एस थिमैया मेरे चीफ है और उनके बारे में मैं कोई पर्सनल राय नहीं रखता और ना ही ऐसा करना सही होगा कल को आप मेरे सबोर्डिनेट से मेरे बारे में भी यही राय पूछेंगे तो इस तरह से पूरी आर्मी का डिसिप्लिन खराब होगा इसलिए गुजारिश है कि विष्य में आप इस तरह के सवाल किसी भी आर्मी ऑफिसर से ना करें 


सैम मानिक शॉ से ऐसी बातें सुनकर डिफेंस मिनिस्टर कृष्ण मैनन छिड़ गए और उन्होंने कहा अंग्रेजों वाली सोच बदलो मैं चाहूं तो के एस थिमैया को हटा भी सकता हूं सैम मानिक शौ ने तुरंत जवाब दिया आप उन्हें बेशक हटा सकते हैं लेकिन उनके बदले जो अगला चीफ आएगा उसके बारे में भी मेरा यही जवाब होगा कृष्ण मैनन को सैम मानिक शौ की ऐसी हाजिर जवाबी बर्दाश्त नहीं हो सकी और व चीफ ऑफ जनरल स्टाफ लूटने जनरल बीएम कॉल के साथ मिलकर सैम माने शौ को हटाने के लिए कंस्पिरेशन करने लगे इसके बाद सैम मानिक शॉ के ऊपर 10 चार्जेस लगाए गए उन पर इंडिया से ज्यादा ब्रिटिश क्वीन के लिए लॉयल होने आजादी के बाद भी अपने ऑफिस में रॉबर्ट क्लाइव और वॉरेन हेस्टिंग्स की फोटो लगाने पैसों का हेरफेर करने छत्रपति शिवाजी महाराज को अपमानित करने और शादी के बाद भी दूसरी लड़कियों से अवैध संबंध रखने जैसे गंभीर आरोप लगाए गए थे इस दौरान उन्हें एंटी नेशनल और एंटी हिंदू भी कहा गया 

इसके बाद सैम के ऊपर लगे इन सभी गंभीर आरोपों की जांच के लिए मिलिट्री ऑफिसर्स की एक कमेटी बनाई गई जिस समय इंडियन आर्मी में यह सब हो रहा था उसी समय 1962 में चाइना ने इंडिया पर अटैक कर दिया अचानक हुए चाइनीज इफिल्टर के कारण भारतीय सेना बैकफुट पर आ गई डिफेंस मिनिस्टर की नेगेटिव अप्रोच की वजह से पहले ही आर्मी का मोराल गिरा हुआ था कोर्ट प्रोसीडिंग के चलते सैम मानिक शौ इस युद्ध में हिस्सा नहीं ले पाए थे आगे जांच के लिए बनाई गई कमेटी ने सैम मानिक शौ के ऊपर लगे सभी आरोपों को झूठा बताया और उन्हें क्लीन चिट दे दी तब तक चाइना के साथ युद्ध अपने अंतिम चरण में पहुंच गया था भारत युद्ध हार रहा था और ऐसे में जब मामला हाथ से निकल चुका था तब जवाहरलाल नेहरू ने सैम मानिक शौ को बुलाकर उनकी लॉयल्टी की खूब प्रशंसा की इसके बाद उनको प्रमोट करके लूटने जनरल का पद दिया गया और मोर्चा संभालने के लिए अरुणाचल प्रदेश भेज दिया गया वहां पहुंचते ही सैम मानिक शौ ने निराश सैनिकों को मोटिवेट करना शुरू किया उन्होंने सैनिकों में जोश भरते हुए कहा कि बिना रिटर्न ऑर्डर के कोई भी सैनिक मोर्चा नहीं छोड़ेगा और मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि मेरे रहते कभी भी ऐसे ऑर्डर इशू होने की नौबत नहीं आएगी उनका करेज उनके बटालियन के सैनिकों में भी रिफ्लेक्ट होता था उनके इस ऐलान के बाद भारतीय सैनिकों ने बहादुरी के साथ लड़ते हुए चीनी सैनिकों के अरुणाचल की ओर बढ़ते कदम पर ब्रेक लगा दी हालांकि इस युद्ध में भारत पहले ही काफी पिछड़ चुका था इसलिए भारत को हार का सामना करना पड़ा 

युद्ध खत्म होने के बाद जब सरकार ने हार के कारणों की समीक्षा की तो इसके लिए सबसे ज्यादा डिफेंस मिनिस्टर कृष्ण मैनन को जिम्मेदार माना गया और उनसे डिफेंस मिनिस्ट्री छीन ली गई इसके बाद वक्त के पन्ने पलटते गए और सैम मानिक शौ सेना में अपने पद पर रहते हुए बेहतरीन काम करते रहे जब साल 1969 आया तो उनके विजन और ब्रेवरी के चलते उन्हें चीफ ऑफ दी आर्मी स्टाफ बना दिया गया जिससे पूरी इंडियन आर्मी की कमान उनके हाथों में आ गई इसके बाद उन्होंने इंडियन आर्मी को बेटर शेप देना शुरू किया और कुछ ही समय में अपनी सूझबूझ से उसे बेहद मजबूत बना दिया सैम मानिक शो को लोग यूं ही सैम बहादुर नहीं कहते थे उन्होंने अपनी ब्रेवरी और आउटस्पोकन बिहेवियर से इसे साबित भी किया था गलत को गलत कहने में उन्होंने कभी संकोच नहीं किया चाहे सामने हायर रैंक का ऑफिसर हो कोई मिनिस्टर हो या फिर खुद प्राइम मिनिस्टर वो बिना झिझक के अपनी बात रखने में विश्वास रखते थे 

इसकी सबसे बड़ी मिसाल तब देखने को मिली जब साल 1971 में वेस्ट पाकिस्तान के जुल्मों से तंग आकर ईस्ट पाकिस्तान से लाखों लोग भागकर भारत में शरण लेने लगे थे और जल्दी रिफ्यूजीस की संख्या मिलियंस में पहुंच गई थी जिसने भारत सरकार को काफी चिंता में डाल दिया ऐसे में प्राइम मिनिस्टर इंदिरा गांधी को इसका केवल एक ही समाधान नजर रहा था कि वेस्ट पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्यवाई की जाए ताकि ईस्ट पाकिस्तान के लोगों को उनका अधिकार मिल सके इसी की चर्चा के लिए अप्रैल 1971 में उन्होंने कैबिनेट मीटिंग बुलाई जिसका हिस्सा बड़े-बड़े मंत्रियों के साथ-साथ आर्मी चीफ सैम मानिक शॉ भी बने मीटिंग में पहुंचते ही इंदिरा गांधी ने सैम मानिक शॉ से पूछा ईस्ट पाकिस्तान से भारी संख्या में आने वाले रिफ्यूजी से देश की स्थिति काफी खराब होती जा रही है आप इसको लेकर क्या कर रहे हैं इस पर सैम मानिक शॉ ने बेबाकी से कहा कि इस मैटर में मैं कुछ भी नहीं कर रहा हूं यह सुनकर इंदिरा गांधी गुस्से से भर गई और बोली मैं चाहती हूं कि इंडियन आर्मी पाकिस्तान पर अटैक करके इस प्रॉब्लम को तुरंत सॉल्व करें इस पर सैम मानिक शौ ने इंदिरा गांधी को जवाब देते हुए कहा कि उनकी सेना इस जंग के लिए भी बिल्कुल भी तैयार नहीं है अगर युद्ध करने में जल्दी की गई तो यकीनन भारत यह युद्ध हार जाएगा 

आर्मी चीफ द्वारा सभी के सामने प्रधानमंत्री को इतनी खरी बात कहने से पूरा कमरा सन्न पड़ गया उनके इस जवाब से सब खामोश थे इससे पहले कि इंदिरा गांधी भी कुछ बोल पाती सैम मानिक शॉ ने इसके पीछे के कारणों को एक्सप्लेन करना शुरू कर दिया उन्होंने बताया कि किस तरह अप्रैल के महीने में पाकिस्तान पर अटैक करना इंडियन आर्मी की बड़ी भूल साबित हो सकती है उस समय तक नदन हिमालयन में स्नो फोल हो चुकी थी जिससे वहां के सभी पासेस और रूट्स खुल चुके थे ऐसे में अगर इंडिया पाकिस्तान से उलझता तो चाइना इस मौके का फायदा उठाकर पीछे से भारत पर अटैक कर सकता था जिससे इंडियन आर्मी को एक साथ दो फ्रंट्स पर वॉर लड़ना पड़ता बात को आगे बढ़ाते हुए सैम मानिक शॉ ने एक और पॉइंट सामने रखा कि अप्रैल में देश भर में खरीफ क्रॉप्स की कटाई का समय होता है और कटाई के बाद इसका ट्रांसपोर्टेशन देश के कई हिस्सों में किया जाता है युद्ध की स्थिति में हजारों ट्रक्स और कई ट्रेंस को युद्ध में इंगेज करना पड़ेगा जिससे ट्रांसपोर्टेशन रूट्स भी बंद हो सकते हैं इसका सीधा असर फूड ग्रेन सप्लाई पर पड़ेगा जिससे देश को ग्रेट फरमाइन का सामना करना पड़ सकता है इसके अलावा अगर युद्ध जून और जुलाई तक खींच जाता है तो उस दौरान ईस्ट पाकिस्तान में मानसून की स्थिति होने से इंडियन आर्मी के टैंक्स कीचड़ में फंस जाएंगे और सेना अपनी स्पीड एंड मोबिलिटी खो बैठेगी एयरफोर्स को भी इस मौसम में ऑपरेशन करने में दिक्कत होगी इसके बाद सैम मानिक शॉ ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि उनके आमर डिवीजन के 189 टैंक्स में से केवल 11 टैंक्स ही ऑपरेशनल है जो युद्ध के लिए बिल्कुल भी सफिशिएंट नहीं है और इसलिए इस समय भारत को वॉर इनिशिएटिव क्या आप अब भी इस युद्ध का ऑर्डर देना चाहती है 


सैम मानिक शॉ की इस दूरदर्शी सोच ने वहां मौजूद सभी आला मंत्रियों को खामोश कर दिया था किसी के पास इसका कोई जवाब नहीं था और इंदिरा गांधी ने उसी समय कैबिनेट मीटिंग खत्म कर दी सभी लोगों के साथ जब सैम मानिक शॉ भी उठकर जाने लगे तो इंदिरा गांधी ने उन्हें रुकने को कहा सैम मानिक शौ को लगा कि इंदिरा गांधी उनकी कहीं बातों के कारण गुस्से में है और उनसे रिजाइन चाहती है इसलिए उन्होंने बड़ी निडरता से कहा कि आप मेरा रेजिग्नेशन हेल्थ, मेंटल या फिजिकल किस ग्राउंड पर लेना पसंद करेंगी इस पर इंदिरा गांधी ने सिर्फ इतना पूछा कि आपने जो कुछ भी कहा क्या वह बिल्कुल सच है इस पर सैम मानिक शौर ने मुस्कुराते हुए कहा मेरा काम देश के लिए जंग लड़ना और उसे जीतना है इसलिए मैंने आपको सच्चाई से रूबरू करवाया है इसके बाद सैम मानिक शो ने इंदिरा गांधी से वादा किया कि अगर उन्हें फ्री हैंड दिया जाए और युद्ध की तैयारियों के लिए पर्याप्त समय मिले तो वह वक्त आने पर पाकिस्तान को एक महीने से भी कम समय में घुटनों पर ला देंगे इंदिरा गांधी बस यही सुनना चाहती थी उन्होंने तुरंत सैम मानिक शौ को उनके हिसाब से चलने की मंजूरी दे दी इसके बाद सैम मानिक शौ कई महीनों तक इस युद्ध की तैयारियों में जुटे रहे क्योंकि यह लड़ाई ईस्ट पाकिस्तान की आजादी की थी इसलिए सैम ने वहां की मुक्ति वाहिनी के फाइटर्स को भी ट्रेन करना शुरू किया और कुछ ही वक्त में उन्हें पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध के लिए तैयार कर दिया 

कुछ समय बाद एक दिन इंदिरा गांधी ने मजाकिया लहजे में सैम मानिक शॉ से पूछा क्या इस बार आप युद्ध के लिए तैयार है तो सैम ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया आई एम ऑलवेज रेडी स्वीटी भारत चूंकि ईस्ट  पाकिस्तान के नेताओं और मुक्ति वाहिनी की मदद कर रहा था इसलिए भारत की इस दखल अंदाजी से पाकिस्तान अपना आप खो बैठा और पाकिस्तान ने 3 दिसंबर 1971 को भारत पर हमला कर दिया इंडियन आर्मी सैम मानिक शॉ के नेतृत्व में अब युद्ध के लिए पूरी तरह से तैयार थी दोनों ओर से घमासान युद्ध छिड़ गया सैम मानिक शौ की शानदार वॉर स्ट्रेटेजी और बेटर प्रिपरेशन के कारण पाकिस्तानी आर्मी किसी भी मोर्चे पर इंडियन आर्मी के सामने टिक नहीं पाई और मात्र 13 दिनों में ताश के पत्तों की तरह बिखर गई युद्ध के दौरान सैम मानिक शौ लगातार पाकिस्तानी आर्मी को रेडियो पर संदेश भेजकर धमकियां देते रहे कि या तो भारत के आगे घुटने टेक दो या फिर भारत के हाथों अपना नामो निशान मिटाने के लिए तैयार हो जाओ उन्होंने यह भी कहा कि सरेंडर करने में कोई बुराई नहीं है अगर पाकिस्तानी सैनिक हार मान लेते हैं तो भारत उनके साथ अच्छे से पेश आएगा 

आखिरकार 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के 93000 सैनिकों ने भारत के सामने सरेंडर कर दिया इस तरह सैम मानिक शॉ ने कुछ महीने पहले प्राइम मिनिस्टर इंदिरा गांधी से किया हुआ अपना वादा पूरा कर दिया था सैम मानिक शौ ना केवल जंग के मैदान में अपनी बहादुरी के लिए जाने जाते थे बल्कि आम जिंदगी में मजाकिया लहजे और हाजिर जवाबी के लिए भी उनको जाना जाता था उनका एक पॉपुलर किस्सा 1971 की जंग से भी जुड़ा है 

दरअसल 1947 में जब भारत का बंटवारा हुआ था उससे पहले सैम मानिक शौ और 1971 के युद्ध के समय पाकिस्तान के प्रेसिडेंट रहे याया खान ब्रिटिश इंडियन आर्मी में थे और दोनों के बीच काफी अच्छी दोस्ती थी बंटवारे से पहले याया खान ने सैम मानिक शॉ से एक अमेरिकन मोटरसाइकिल खरीदी थी लेकिन कभी उसका दाम नहीं चुकाया था 1971 के युद्ध में जब सैम मानिक शॉ की बेहतरीन वॉर स्ट्रेटेजी के चलते पाकिस्तान को भारत से हार मिली और उससे ईस्ट पाकिस्तान अलग होकर बांग्लादेश बन गया तब सैम मानिक शॉ ने बड़े मजाकी अंदाज में कहा था कि आज सही मायने में यया खान ने मेरी मोटरसाइकिल का दाम चुकाया है वो भी अपना आधा मुल्क देकर 

मजाकी अंदाज से इतर सैम मानिक शौ काफी उसूलों वाले इंसान भी थे उन्होंने 1971 के युद्ध के दौरान जो पाकिस्तानी फौजियों से सरेंडर करने के बदले उनके साथ सही व्यवहार का वादा किया था उन्होंने ने उसे बड़ी ईमानदारी से निभाया युद्ध खत्म होने के बाद पाकिस्तान के हजारों सैनिकों को भारत के प्रिजन कैंप्स में रखा गया था सैम मानिक शौक खुद इन कैंप्स में जाते और पाकिस्तानी प्रिजनर्स से मुलाकात कर उनकी रहने और खाने की व्यवस्था का खास ख्याल रखते थे इसी दौरान एक बार जब सैम मानिक शौ ने एक पाकिस्तानी जवान के कंधे पर हाथ रखकर उसका हालचाल पूछा तो वह लगभग रोते हुए बोला एक आप है जो हमसे इतने प्यार से मिल रहे हैं हमारा इतना ध्यान रख रहे हैं और एक हमारी सेना के जनरल थे जो कभी हम सैनिकों से इस तरह रूबरू होकर बात नहीं करते थे हालांकि पाकिस्तानी सैनिकों के साथ उनके इस तरह के सम्मानजनक व्यवहार की वजह से काफी इंडियन मिनिस्टर्स उनके खिलाफ भी हो गए थे 

स्थिति इतनी बिगड़ गई थी कि कैबिनेट में सैम मानिक शौ के खिलाफ आवाजें उठने लगी कैबिनेट के कुछ सदस्यों का कहना था कि सैम मानिक शॉ पाकिस्तान के सरेंडर किए हुए सैनिकों का ऐसे ख्याल रखते हैं जैसे कि वह उनके दामाद हो हालांकि इस तरह की बातों से सैम मानिक शौ पर कोई फर्क नहीं पड़ा उन्होंने सरेंडर किए गए पाकिस्तानी फौज के साथ अच्छे से पेश आकर पूरी दुनिया की फौजों के आगे एक बड़ा एग्जांपल सेट किया था इसी दौरान उन्हें किसी काम से पाकिस्तान की राजधानी लाहौर जाना पड़ा उस समय पाकिस्तान में अफवा फैली हुई थी कि भारत में पाकिस्तानी कैदियों को ठीक से खाना तक नहीं दिया जाता है लेकिन सब हैरान तब हो गए जब सैम मानिक शॉ के लाहौर पहुंचने पर वहां के गवर्नर के एक स्टाफ मेंबर ने अपनी पगड़ी उतारकर सैम के पैरों में रख दी और भावुक होकर कहा कि मेरे पांच बेटे भारत की जेल में कैद है लेकिन वहां उनके साथ बहुत इज्जत से व्यवहार किया जा रहा है उन्हें पढ़ने के लिए कुरान तक दी जा रही है मेरे बेटे मुझे खत लिखकर वहां की पूरी स्थिति बताते रहते हैं इसके बाद उन्होंने कहा कि अब मैं किसी ऐसे आदमी पर विश्वास नहीं कर सकता जो यह कहे कि इंडियंस खराब होते हैं 

इसके बाद 1972 में सैम मनिक शॉ नेपाल दौरे पर गए नेपाल के राजा महेंद्र ने सैम मानिक शौ को ऑनरी जनरल ऑफ द रॉयल नेपाल आर्मी की उपाधि और एक तलवार देकर उनका सम्मान किया इसके बाद से ही भारत और नेपाल में एक दूसरे के आर्मी चीफ को ऑनरी जनरल की उपाधि देने की परंपरा शुरू हो गई इसी दौरान एक बार अफवा फैली कि सैम मानिक शौ देश में तख्ता पलट करना चाहते हैं इसी को लेकर इंदिरा गांधी ने उन्हें बुलाकर इस अफवाह पर सफाई मांगी तो सैम मानिक शौ ने सिर्फ इतना कहा स्वीटी जब तक आप मेरे काम में दखल नहीं देंगी तव तक मैं भी आपके काम में नाक नहीं अड़ाओगा 

सैम मानिक शौ के इस अंदाज से एक बार फिर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चेहरे पर मुस्कान आ गई इंडियन आर्मी में सैम मानिक शॉ के महान योगदान के लिए 1972 में उनको देश के सेकंड हाईएस्ट सिविलियन अवार्ड पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया 

जून 1972 में व एक्टिव सर्विस से रिटायर होने वाले थे लेकिन उनके टर्म को 6 महीने के लिए एक्सटेंड कर दिया गया उनके रिटायरमेंट से केवल 14 दिन पहले 1 जनवरी 1973 को प्राइम मिनिस्टर इंदिरा गांधी ने उन्हें एक और प्रमोशन देते हुए देश का पहला फील्ड मार्शल अपॉइंट्स सर्विस से रिटायर हो गए यूं तो सैम मानिक शौ की बहादुरी और हाजिर जवाबी से देश को काफी फायदा हुआ लेकिन कई बार ऐसा भी हुआ कि वह जोश जोश में ऐसे जवाब भी दे देते थे जिससे उनकी इमेज को काफी नुकसान पहुंचा 

ऐसे ही एक बार 1971 की वॉर के बाद एक वमन जर्नलिस्ट ने उनसे पूछा था कि अगर वह पार्टीशन के बाद पाकिस्तान चले जाते और पाकिस्तानी आर्मी को लीड कर रहे होते तो 1971 की जंग कौन जीतता इस पर मानिक शौ ने जवाब देते हुए कहा कि फिर तो जरूर पाकिस्तान इस जंग को जीतता उनके इस बयान ने काफी लोगों को गुस्सा कर दिया था प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी उनके इस कमेंट से काफी नाराज हुई थी यह शायद उनके बेबाक बात कहने का अंदाज था या फिर ना जाने क्या कारण था सैम मानिक शॉ को बाद में काफी कुछ भुगतना पड़ा 
दरअसल फील्ड मार्शल के पद पर रहने वाला व्यक्ति कभी रिटायर्ड नहीं होता और इस पद पर जीवन भर बना रहता है इस दौरान उसे फुल सैलरी भी दी जाती है लेकिन सैम मानिक शौ के जीवन के अंतिम दिनों में गवर्नमेंट ने उनके साथ काफी भेदभाव किया गवर्नमेंट ने सैम मानिक शौ को इस पद पर मिलने वाली सुविधाएं प्रदान नहीं की उन्हें फील्ड मार्शल की पोजीशन के हिसाब से सैलरी भी नहीं दी गई यह एक महान आर्मी ऑफिसर के साथ अन्याय था 

जब इस मुद्दे पर काफी आलोचना हुई तो 2007 में तत्कालीन प्रेसिडेंट एपीजे अब्दुल कलाम ने सैम मानिक शॉ से मुलाकात की और कई सालों से पेंडिंग सैलरी के रूप में उन्हें 2 करोड़ 30 लाख का चेक दिया सैम मानिक शॉ को कभी उस सम्मान से दूर रखा गया जिसके वह हकदार थे तो कभी उनके ऊपर भरपूर कीचड़ उछाली गई 

मैं 2007 में पाकिस्तानी फील्ड मार्शल अयूब खान के बेटे गोहर खान ने सैम मानिक शॉ पर 1965 के के इंडो पाक वॉर के दौरान इंडियन वॉर प्लान की डिटेल्स को ₹2000000 में पाकिस्तान को बेचने का आरोप लगाया हालांकि इंडियन डिफेंस इस्टैब्लिशमेंट ने इस आरोप को फॉल्स और मिसली दिंग बताकर पाकिस्तान को करारा जवाब दिया समय-समय पर देश में भी उन पर कई तरह के आरोप लगाए गए लेकिन सैम मानिक शॉ ने हमेशा इनका सामना हंसकर किया जिंदगी ने जब उन्हें उनके अंतिम समय में लाकर खड़ा किया तब भी 94 साल के सैम मानिक शॉ का वही जवानी भरा अंदाज था 

उन्होंने जब 27 जून 2008 को दुनिया को अलविदा कहा तो उनकी जुबान पर आखिरी शब्द थे आई एम ओके सबसे अफसोस की बात यह थी कि इंडियन आर्मी को बेमिसाल मजबूती और देश को 1971 जैसी जीती हुई जंग देने वाले महान आर्मी ऑफिसर सैम मानिक शौ को ना केवल जीते जी बल्कि उनकी डेथ के बाद भी सरकार ने उन्हें वो ऑनर नहीं दिया जिसके वो हकदार थे उनके अंतिम संस्कार में ना तो प्राइम मिनिस्टर मनमोहन सिंह पहुंचे ना प्रेसिडेंट प्रतिभा पाटिल और ना ही डिफेंस मिनिस्टर ए के एंटनी 

हैरानी की बात यह थी कि इतने बड़े ऑफिसर की अंतिम यात्रा में देश के एक भी मिनिस्टर ने शामिल होना जरूरी नहीं समझा साल 2023 में जब उनके जीवन पर सैम बहादुर नाम से फिल्म बनी तब पहली बार देश की बड़ी आबादी को इतने महान आर्मी ऑफिसर के बारे में पता चला.

जय हिन्द || जय भारत
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