जी हां इनफैक्ट उन्हीं के निगरानी में उन्हीं के अनाथ आश्रम में बच्चों को घंटों घंटों तक रोब्स या क्लोथ से उनके हाथ पैर बांध के उन्हें लटका दिया जाता था और बस इतना ही नहीं उन्हीं के हॉस्पिटल्स में पेशेंट्स को बार-बार यूज किए हुए नीडल से इंजेक्ट किया जाता था साथ ही उन्हें एक्सपायर्ड मेडिसिंस भी पिलाई जाती थी
एंड आई नो आप अभी तक काफी शौक हो गए होंगे बट क्या यहां पर बात पैसे बचाने की थी वेल लगता तो नहीं है क्योंकि देखा जाए तो उनकी मौत के बाद यह पता चला था कि उनका नेट वर्थ 752 लाख करोड़ रुपए था
इतना कि अगर वो अपने पैसे वैटिकन बैंक से विड्रॉ करा लेती तो बैंक ही बैंकक्रपट हो जाता तो इतने पैसे होने के बावजूद भी क्यों गरीबों की मसीहा बनी इस औरत ने गरीबी नहीं हटाई क्या उसने सारे पैसे अपने ऐशो आराम में लगा दिए
वेल इसे जानने के लिए चलिए शुरू करते हैं आज का हमारा यह मिस्टीरियस पोस्ट जिसका नाम है मदर टेरेसा का असली चेहरा अब इससे पहले कि हम मदर टेरेसा के असली चेहरे को जाने चलिए जरा अपनी मेमोरी को ब्रश अप कर लेते हैं और जानते हैं कि हमें आज तक मदर टेरेसा के बारे में क्या ही पढ़ाया जाता है और उनका कौन सा चेहरा हमें दिखाया जाता है
अब जहां तक मुझे लगता है मदर टेरेसा नाम सुनते ही हमें ह्यूमैनिटेरियन एफर्ट्स लाइक ट्रीटिंग द लीपर्स गरीबों के घर का खाना एंड एजुकेशन एंड गरीबों की भरपूर चैरिटीज एंड प्यार देना यह सब हमारे दिमाग में आता है राइट आएगा भी क्यों नहीं उनके इसी सारे नेक कामों की वजह से उन्हें 1979 में द नोबेल पीस प्राइज जो मिला था जो उन्हें इंडिया के कलकता में दिया गया था
बायदवे हालांकि अगर हम मदर टेरेसा की ओरिजिन देखें तो वो यूरोप के बाल्कन रीजन में अल्बेनिया कंट्री से आई थी जहां वो 19 साल की उम्र तक रही थी और फिर वह 1929 में इंडिया आ पधारी और 2 साल बाद यानी कि 1931 में वो एक चर्च के नन और कलकत्ते के सेंट मेरीज हाई स्कूल में टीचर बन गई उसी स्कूल में पढ़ाते वक्त उनको इंडिया की गरीबी और यहां के लोगों की सफरिंग्स दिखी जिसको देखकर वह इतनी भावुक हो गई थी कि उसने चेंज लाने की ठान ली एंड बस 1950 में उसने खुद का द मिशनरीज ऑफ चैरिटी नाम से एक क्रिश्चियन चैरिटेबल ऑर्गेनाइजेशन की स्थापना कर दी
इस ऑर्गेनाइजेशन का बस एक ही मकसद था टू लव एंड टू केयर फॉर दोज पर्स संस नोबडी वाज प्रिपेयर्ड टू लुक आफ्टर उनके इसी मकसद की वजह से उन्होंने बहुत ही जल्द अच्छा खासा नाम कमा लिया जिसके चलते दुनिया भर में सिर्फ उनका ही नाम मशहूर हुआ सिर्फ उनका नाम ही मशहूर नहीं हुआ बट साथ ही साथ उनके ऑर्गेनाइजेशंस के ब्रांचेस भी फैलने लगे अब इसके अलावा जो और चार बातें हमें पढ़ाई गई थी वो थी नंबर वन मदर टेरेसा को सेंट ऑफ गटर्स के नाम से भी बुलाया जाता था
क्योंकि उन्होंने कलकता के स्लम्स और बेहद गरीब इलाकों में जाकर बच्चों और अन्य डेस्टिट्यूट को सहारा दिया बाय एडमिटिंग देम टू एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस एंड प्रोवाइड मेडिकल ट्रीटमेंट उन्होंने बीमार और आखिरी सांस ले रहे लोगों के लिए काली घाट होम बनाया था अनाथ बच्चों के लिए शी मेड शिशु भवन सो दैट दे ऑल कैन लिव इन पीस नंबर फोर उन्होंने पूरी दुनिया का दिल जीता बाय हर सेल्फलेस केयरिंग कंपैशनेट सिंपल और हमेशा मुस्कुराते रहने वाले स्वभाव से और हमने भी मदर टेरेसा को उनके इस स्वभाव से याद रखा है और उनके इसी गरीबी के सहारे बनने की कहानियां इतिहास में सुनी है
राइट, बट क्या यह इतिहास पूरी तरह से सही था क्या यही था उसका असली चेहरा क्योंकि जैसे कि मैंने आपको पहले शुरुआत में बताया उनका असली चेहरा शायद कुछ और था तो सवाल यह उठता है कि क्या था उनका असली चेहरा और उस चेहरे का पर्दाफाश आखिर हुआ कैसे और किसने किया वेल उनके असली चेहरे का पर्दाफाश उन्हीं के अपने घरवालों ने आई मीन उन्हीं के मिशनरीज ऑफ चैरिटी के लोगों ने किया जिन्होंने साफ-साफ यह कहा कि मदर टेरेसा बस दुनिया को दिखाने के लिए गरीबों की मदद कर रही थी पर असल में वो उनकी कोई मदद नहीं करती थी इनफैक्ट वो तो सैकड़ों गरीबों के मौत की वजह बनी
जी हां और इसी स्टेटमेंट के आई विटनेस है मदर टेरेसा के ही मिशनरीज ऑफ चर्च के एक वॉलंटिज्म चैटर्जी जो इंडियन होते हुए भी इंडिया में नहीं रहते थे पर आरोप यूके में अपने मेडिकल स्टडीज कंप्लीट करने जाए उससे पहले उन्होंने कलकट के सभी गरीब रीजंस में जाकर वृद्ध और गरीबों का वॉलंटरी मेडिकल ट्रीटमेंट करने के बारे में सोचा और आ गए इंडिया जब वोह सड़कों पर गिरे हुए वृद्ध और गरीबों की मेडिकल ट्रीटमेंट कर रहे थे उन्होंने बताया कि उस दौरान वहां पर मिशनरीज ऑफ चैरिटी की एक भी सिस्टर या नन को नहीं देखा जिसके बाद उन्हें डाउट गया और उन्होंने वहां पर इस ऑर्गेनाइजेशन को इन्वेस्टिगेट करना चालू कर दिया
एंड इन्वेस्टिगेशन करने पर उन्होंने जो देखा वह सब देखकर वह वहां पर एक और दिन नहीं रुक पाए और अगली ही सुबह अपना बोरिया बिस्तर समेटकर यूके के लिए रवाना हो गए पर जब वह यूके पहुंचे तब उन्होंने यह देखा कि वहां पर लोग मदर टेरेसा को बहुत मानते थे इनफैक्ट उनके गरीबों के लिए प्यार के चर्चे हर जगह हो रहे थे सो लोगों तक सच्चाई पहुंचाने के लिए और उनकी आंखों पर झूठ की पट्टी हटाने के लिए उन्होंने कलकट में जो भी देखा वो सब कुछ ब्रिटिश टेलीविजन नेटवर्क चैनल 4 न्यूज़ के जर्नलिस्ट क्रिस्टोफर हिचेंस को बता दिया क्रिस्टोफर वही शख्स है जिसने डॉक्टर आरोप के बताए गए मदर टेरेसा के काले कारनामों पर हेल्स एंजल नाम की एक डॉक्यूमेंट्री बनाई
इतना ही नहीं उन्हें आज तक मदर टेरेसा का सबसे बड़ा क्रिटिक माना जाता है उस डॉक्यूमेंट्री के रिलीज होने के बाद कई सारे लोगों का मदर टेरेसा को देखने का नजरिया ही बदल गया क्योंकि उस डॉक्यूमेंट्री के हिसाब से मिशनरीज में बहुत से टॉर्चर्स और इनटोलरेबल चीजें हो रही थी जो लोगों के आंखों के सामने तो नहीं आ रही थी बट दिस वाज ऑल डन अंडर द वाचफुल आइज ऑफ मदर टेरेसा यहां सबसे बड़ा शौक जो सबको लगा था वो यह था कि वहां के हॉस्पिटल्स में एक ही नीडल को बार-बार रीयूज किया जा रहा था पेशेंट्स के उपर ये शॉकिंग इसीलिए था क्योंकि उसी हॉस्पिटल में बहुत सारे पेशेंट्स को तो एचआई आईवी एड्स था हु वर ऑलरेडी हैविंग एन इंपेयर्ड इम्यून सिस्टम
अब आप ही सोचो उनके इस मैल प्रैक्टिस की वजह से कितने ही दूसरे पेशेंट्स को भी इंजेक्ट कर कर के एचआईवी पेशेंट्स में बदल दिया गया होगा और किस हद तक नीडल्स के रीयूजिंग से बीमारियां फैली होगी और दुख की बात तो यह थी कि उन बीमारियों को ट्रीट किया ही नहीं जा रहा था क्योंकि हॉस्पिटल के सभी डॉक्टर्स और नर्सेसलैब्स नहीं किया जाता था जब इस विषय पर जर्नलिस्ट डॉनल्ड मैकिनटायर को पता चला तब वो डॉक्टर का भेस लेके हॉस्पिटल जहां पहुंचे एंड गेस व्हाट द न्यूज़ वाज राइट उनका कोई बैकग्राउंड या क्वालिफिकेशन चेक नहीं हुआ था और डोनल ने मदर टेरेसा के सामने हो रहे इस नेगलिजेंस का तो पर्दाफाश किया ही बट साथ ही में उन्हें मदर टेरेसा के ही निगरानी में हो रहे चाइल्ड एब्यूज के बारे में भी पता चला
जी हां वहां पर चाइल्ड एब्यूज भी हो रहा था डोनल ने बताया कि मिशनरीज में मेंटली इल बच्चों को रोप्स या क्लोथ से बांध दिया जाता था सो दैट वो बच्चे बिना हिले डुले पूरे दिन एक ही जगह पर पड़े रहे इनफैक्ट उनका तो यह भी कहना था कि वहां पर ना प्रॉपर सैनिटाइजेशन था ना बेडस ना प्रॉपर मेडिसिंस और यहां तक कि बेसिक पेन किलर्स तक अवेलेबल नहीं थे इतना ही नहीं वहां पर पेशेंट्स को गर्म पानी तक नहीं मिलता था और जब पेशेंट्स उनसे हिटर्स के इंस्टॉलेशंस की बात करते थे तब नंस उन्हें यह कहकर मना कर देती थी कि जीसस को यह बात पसंद नहीं है इसीलिए वो हीट्स यूज नहीं कर सकते
लाइक सीरियसली बट इतनी बेरहम क्यों थी यह मदर टेरेसा क्या उसे पैसों की कमी थी वेल जैसे मैंने बताया वो तो पॉसिबल ही नहीं है क्योंकि मदर टेरेसा को अकेले ही हर साल दुनिया भर के डोनर्स 30 मिलियन डॉलर यानी 225 करोड़ की फंडिंग करते थे और स्टर्न मैगजींस का तो ये भी कहना है कि मिशनरीज ऑफ चैरिटी भले ही अपने आप को कितना भी गरीब दर्शाए पर उसी मिशनरी की एनुअल इनकम 100 मिलियन डॉलर से भी ज्यादा थी है ना चौकाने वाली बात बट इससे बड़ी शॉकिंग बात तो यह है कि मदर टेरेसा को इन सब जन इन्वेस्टर्स के अलावा क्रिमिनल्स एंड फ्रॉड के द्वारा भी फंडिंग आती थी यस क्रिमिनल्स एंड फ्रॉड फॉर एग्जांपल चार्ल्स कीटिंग नाम के एक शख्स ने मिशनरीज में 9.41 करोड़ का डोनेशन दिया था और डोनेशन के कुछ ही टाइम बाद ही वेंट टू प्रिजन फॉर डी फ्रॉड इन्वेस्टर्स जहां शॉकिंग बात तो यह थी कि इस बात का पता चलने पर भी मदर टेरेसा ने वो पैसे इन्वेस्टर्स को नहीं लौटाए इनफैक्ट हाइटी देश के डिक्टेटर जीन क्लाउ डु वेलियर जो अपने ही देश के लोगों के साथ बेरहम अत्याचारों के लिए पूरे दुनिया में मशहूर थे मदर टेरेसा ने उनसे भी कई दफा डोनेशंस एक्सेप्ट किए थे
बट यह सब तो फिर भी कुछ नहीं था क्वेश्चन मोर के एक जर्नलिस्ट के रिपोर्ट्स के हिसाब से अगर मदर टेरेसा ने अपने मौत के पहले वैटिकन बैंक से अपने पैसे विड्रॉ कर लिए होते तो वैटिकन बैंक पूरी तरह से कंगाल हो जाता क्योंकि वैटिकन बैंक का मोस्ट कैस्ड अप अकाउंट मदर टेरेसा का ही था सो अब सवाल यह उठता है कि जब इतने सारे पैसे आ रहे थे तो मदर टेरेसा ने उन पैसों का इस्तेमाल कहां किया वेल वो जानना तो बहुत ही मुश्किल है
क्योंकि इन पैसों को दबाने में सिर्फ मदर टेरेसा का अकेला का ही हाथ नहीं था बल्कि कई सारे पॉलिटिकल लीडर्स का भी हाथ था उन्हें सपोर्ट करने में जब मिशनरी ऑफ चैरिटीज के ऑडिट बुक्स का इंस्पेक्शन हो रहा था तब पता चला कि इंडियन फाइनेंस मिनिस्ट्री के मंजूरी पर मिशनरीज ने अपने अमाउंट्स को एज क्लासिफाइड इंफॉर्मेशन दर्ज किया था जो कि बहुत ही अजीब बात है क्योंकि एज पर इंडियन लॉ चैरिटीज को डिटेल में लिखना होता है कि उनको कहां से क्या अर्निंग्स मिली है बट मिशनरीज ऑफ चैरिटी के इंडिया के ब्रांच को तो छोड़ो पूरे दुनिया भर के ब्रांचेस में उनको पैसे कहां से आ रहे थे इसका इस्तेमाल कहां हो रहा था एट्स एटस जैसे कोई भी रिकॉर्ड्स कहीं पर भी मेंटेन नहीं मिले
पर चलो पैसे कहां से आ रहे थे कहां जा रहे थे ये तो फिर भी काफी छोटा मुद्दा है। बड़ा मुद्दा तो यह है कि जो मदर टेरेसा हमेशा से ही गरीबों का सहारा बनी थी जिसे प्यार और पूरा जीवन गरीबों के लिए कुर्बानी देने के लिए इतना सारा पॉपुलर मिला उसने गरीबों को ये पैसे क्यों नहीं दिए अगर दिए होते तो क्या गरीबी सच में रहती एगजैक्टली अगर गरीबी चली जाती तो उसका इमेज कैसे बनता दरअसल
गरीबों को जितनी जरूरत मदर टेरेसा की थी उससे कई गुना ज्यादा जरूरत मदर टेरेसा को उनकी थी पैराडॉक्सिकली अपना नाम बनाने के लिए और उन्हें क्रिश्चियनिटी में कन्वर्ट करने के लिए शायद मदर टेरेसा ने यह सब कुछ किया शी वात बेसिकली यह हें क्रिश्चियन मिशनरी हिचेंस एंड डॉक्टर चैटर्जी के अलावा भी कई सारे रिपोर्टर्स का मानना है कि मिशन के सिस्टर्स एंड नंस मरे हुए बच्चे और अन्य मरीजों का अंतिम संस्कार करने से पहले फ्री टिकट टू हेवन के नाम पर उन्हें बेपटा इज यानी कि बिना उनकी मर्जी जाने उन्हें क्रिश्चियनिटी में कन्वर्ट कर देते थे
कन्वर्जन के अलावा, पैसों की बात करें तो वो लोगो का धर्म वदल देते थे द ओवरऑल कंडीशंस इन हर ऑल इंस्टीट्यूशंस स्कूल्स ऑर्फनेजेस नर्सिंग होम्स एंड हॉस्पिटल्स बट उसने यह किया नहीं क्योंकि उसके हिसाब से गरीबी जीसस क्राइस्ट की एक खूबसूरत देन है और सफरिंग्स से ही दुनिया का भला होगा आई नो काफी वियर्ड है बट उसके हिसाब से गरीबी का डेफिनेशन ही वही था बस यही वजह थी कि मदर टेरेसा गरीबों को रोटी कपड़ा मकान के अलावा और कोई भी फैसिलिटी जैसे हीटर बेडस या मेडिसिंस नहीं देती थी
सो दैट दे कैन सफर एंड अल्टीमेटली डाई बट जहां पर उसके संस्था के मरीज हॉरिबली एंड एक्सट्रीमली अनहाइजीनिक कंडीशंस में ट्रीटमेंट पा रहे थे और मर रहे थे वहीं जब मदर टेरेसा खुद बीमार पड़ी तब उसकी ट्रीटमेंट यूएस के टॉप हॉस्पिटल्स में की जा रही थी सो क्या ये सुनकर आपको दोगलापन नहीं दिख रहा एंड दैट्ची चाहिए एंड उन्हें मैसेंजर ऑफ लव तो डेफिनेटली नहीं बुलाना चाहिए।