Operation Cactus: India’s Most Daring Military Operations | How India Saved Maldives in 1988

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सफेद रेतों और खूबसूरत आइलैंड्स का देश मालदीव्स 3 नवंबर 1988 को मीठी नींद में सो रहा था तभी अचानक बंदूकों और गोलियों की आवाज से मालदीव्स की राजधानी माले सिटी की गलियां सिहर उठी 

सड़कों पर अचानक से बंदूक लिए हुए लोग माले की गलियों में घूमने लगते हैं लूटपाट और चीख की आवाजों से मालद्कीवीव की राजधानी हिल उठती है किसी को समझ नहीं आता कि कहां से यह हाईटेक वेपंस लिए हुए लोग अचानक से मालदीव्स पर कब्जा करने आ गए हैं 

दरअसल बड़ी संख्या में कुछ मिलिटेंट्स हाईटेक वेपंस लेकर शहर में खून खराबा करने उतर पड़े थे मालदीव्स में चारों तरफ लूटपाट डर इनसिक्योरिटी और बदहाली फैल गई इस रात मालदीव से दुनिया के कोने-कोने में फोन कॉल्स जाने लगे मालदीव्स ने भारत को भी एक एसओएस मैसेज भेजा और इंडिया से मिलिट्री सपोर्ट की मांग की यह मैसेज भारत के विदेश मंत्रालय के जॉइंट सेक्रेटरी कुलदीप सहदेव के पास आया था जिनसे मालद्वीव में रातों-रात हुए एटेक को रोकने के लिए आर्म्ड फोर्सेस की मदद मांगी गई थी 

मैसेज मिलते ही प्राइम मिनिस्टर राजीव गांधी के आदेश पर पड़ोसी देश की रक्षा के लिए भारत ने एक ऐसे मिशन को अंजाम दिया जिसकी तारीफ दुनिया भर में हुई यह मिशन था ऑपरेशन कैक्टस जिसने ना केवल इंडियन ओशन में भारत की डोमिनेंस को साबित किया बल्कि भारत की नेवी एयरफोर्स और मिलिट्री से पूरी दुनिया को अचंभित कर दिया 

  1. क्या था ऑपरेशन कैक्टस ?
  2. मालद्वीव में ऐसा क्या हुआ कि भारत को उसकी रक्षा के लिए आना पड़ा ?
  3. ऑपरेशन कैक्टस का क्या परिणाम रहा ?
  4. और इस ऑपरेशन को क्यों अंजाम दिया गया ?

इंडियन ओशन की गोद में बसा हुआ मालदीव्स एक बहुत ही खूबसूरत देश है जिसे ट्रेजर आइलैंड भी कहा जाता है कोरल रीव से बना यह आइलैंड भारत के साउथ वेस्टर्न कोस्ट के पास इंडियन ओशन में लोकेटेड एक छोटी सी कंट्री है सिर्फ 520000 पॉपुलेशन वाला यह देश अपने ट्रॉपिकल क्लाइमेट विद कंसिस्टेंटली वार्म टेंपरेचर्स एंड ब्यूटीफुल वाइट सैंड बीचेस के के कारण पूरी दुनिया में टूरिस्ट के लिए एक पॉपुलर डेस्टिनेशन है 

यहां लगभग 1200 छोटे-छोटे कोरल आइलैंड्स हैं जिनमें से सिर्फ 200 आइलैंड्स पर ही लोग रहते हैं मेनली इस देश के सभी आइलैंड्स रूरल एरियाज में ही काउंट किए जाते हैं सिर्फ माले सिटी ही यहां का एक बड़ा शहर माना जाता है जो मालदीव्स की राजधानी भी है वैसे तो साइज और पॉपुलेशन के हिसाब से यह देश एशिया के सबसे छोटे देशों में से एक है लेकिन अपनी स्ट्रेटेजिक लोकेशन के कारण इंडियन ओशन रीजंस में मालदीव्स का इंपॉर्टेंस ग्लोबल ट्रेड मैरिटाइम सिक्योरिटी एंड जियोपोलिटिकल कंपटीशन के कारण बहुत ज्यादा क्रुशल है 

अगर भारत की बात करें तो हमारा ज्यादातर सी ट्रेड इसी रूट से होकर जाता है इसके अलावा जिस तरह से चाइना का इन्फ्लुएंस इंडियन ओशन में बढ़ता जा रहा है उसे काउंटर करने के लिए मालदीव्स भारत के लिए काफी इंपॉर्टेंट हो जाता है मालदीव्स का इतिहास काफी पुराना है 

ऐसा माना जाता है कि मालदीव्स में लोगों ने फिफ्थ सेंचुरी बीसी से ही रहना शुरू कर दिया था और यहां मेनली भारत और श्रीलंका के लोगों ने आकर पहली बस्ती बसाई थी रिलीजन की बात करें तो यहां मेनली बुद्धिज्म प्रैक्टिस किया जाता था बाद में जब इस्लाम का राइज हुआ और दुनिया में इस्लाम का इन्फ्लुएंस बढ़ने लगा तब लगभग 1153 सीई में यहां अरब्स का रूल आ गया जिसके बाद यहां मुस्लिम जनसंख्या बढ़ने लगी हालांकि इसके बाद यहां कई रियासतें आई लेकिन इस्लाम ही यहां का डोमिनेंट रिलीजन रह गया 16th सेंचुरी में जब यूरोपियन ट्रेडर्स एशियन कंट्रीज में कॉलोनाइजेशन शुरू कर रहे थे तब यहां पोर्तुगीज डच और फ्रेंच लोगों ने अपने सेटलमेंट बनाए हालांकि 19th सेंचुरी आते-आते यह देश भी ब्रिटिश रूल के अंदर आ गया 26 जुलाई 1965 को मालदीव्स को ब्रिटिश एंपायर से आजादी मिली इसके करीब 3 साल बाद मार्च 1968 में रेफरेंडम के थ्रू यहां कॉन्स्टिट्यूशन मोनार्की को खत्म करके रिपब्लिक ऑफ मालदीव्स की स्थापना की गई और इब्राहिम नासिर मालदीव्स के पहले प्रेसिडेंट बनते हैं 

उस वक्त मालदीव्स में प्रेसिडेंशियल टेन्योर 4 साल तक की थी लेकिन इब्राहिम नाजिर ने 1972 में मालदीव्स के कॉन्स्टिट्यूशन में चेंजेज करके प्रेसिडेंशियल टेन्योर को बढ़ाकर 5 साल कर दिया इसके बाद नासिर ने दूसरे टर्म की प्रेसिडेंसी में भी जीत हासिल की इसी दौरान पीएम के इलेक्शंस भी हुए जिसमें अहमद जाकी चुने गए पिछले कई सालों में अहमद जाकी पीपल्स मजलिस के स्पीकर थे पीपल्स मजलिस मालदीव्स की यून कैमरल लेजिस्लेटिव बॉडी है जो कि मलडी की कॉन्स्टिट्यूशन की देखरेख करती है और वहां टाइम टू टाइम वहां के लॉस को बनाती है इंप्लीमेंट करती है और उसे अपडेट करने का काम करती है 

पिछले टर्म में जाकी की पॉपुलर काफी बढ़ गई थी और वह वहां की जनता के बीच में काफी लोकप्रिय हो गए थे इनकी बढ़ती पॉपुलर नासिर को डराने लगी उन्हें अपनी प्रेसिडेंसी पर खतरा महसूस होने लगा इसके बाद मार्च 1975 में ही नासिर के कहने पर एक ब्लडलेस कू में जाकी को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें मालदीव्स के किसी खाली अटोल में एजाइल दे दिया गया इस दौरान मालदीव्स की इकोनॉमिक कंडीशन भी काफी खराब होती जा रही थी फिर 1976 में जब श्रीलंका के मार्केट्स में मालदीव्स की ड्राइड फिश एक्सपोर्ट का बिजनेस कोलप्पुरम एंड अपोजिशन पार्टी पूरे देश में नासिर के खिलाफ विरोध करने लगे देश की बिगड़ती हालत देखकर नासिर ने सिचुएशन बेहतर करने के बजाय 1978 में मालदीव से मिलियन डॉलर्स लेकर सिंगापुर भाग निकला 

रिपोर्ट्स की माने तो कहा जाता है कि वो मिलियन डॉलर्स पैसा स्टेट ट्रेजरी से निकालकर भाग गया था जिसके बाद 1978 में यहां इलेक्शंस हुए और ममून अब्दुल गयूम मालदीव्स के नए प्रेसिडेंट बनते हैं यहां मजे की बात यह है कि इस इलेक्शन में गयूम इकलौते प्रेसिडेंशियल कैंडिडेट रहे तो जाहिर सी बात है कि इनको हराने वाला कोई कैंडिडेट था ही नहीं। मालदीव्स के प्रेसिडेंट बनते ही गयूम ने देश की आर्थिक स्थिति सुधारने की कोशिशें शुरू कर दी इसी साल इन्होंने मालदीव्स को इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड और वर्ल्ड बैंक से जोड़ा देश में टूरिज्म को बढ़ावा दिया आज मालदीव्स टूरिस्ट के बीच में इतना पॉपुलर है इसकी नीव गयूम ने ही रखी थी इनके कोशिशों से मालदीव्स में हालात बदलने लगे थे फिर भी कुछ लोगों को गयूम की प्रेसिडेंसी खलने लगी थी 


इसी वक्त 1980 में नासिर और उसके सपोर्टर्स ने मिलकर गयूम गवर्नमेंट के खिलाफ विद्रोह किया जो कि फेल साबित हुआ इसके बाद फिर से 1983 में यह प्रोटेस्ट दोबारा किया गया लेकिन इस बार भी गयूम की सरकार बच गई गयूम की बढ़ती पॉपुलर उनके अपोनेंट्स को खलती जा रही थी दो बार जब वह प्रोटेस्ट करने में फेल हो गए तब उन्होंने फाइनली 5 साल बाद 1988 में तीसरी बार काफी बड़े लेवल पर प्रोटेस्ट करने की कोशिश की जिसमें उन्हें फुल सक्सेस मिलने ही वाली थी लेकिन तभी इंडियन आर्मी ने यहां आकर पूरा पासा ही पलट दिया 

यह कहानी है 3 नवंबर 1988 की उस दिन मालदीव्स के प्रेसिडेंट ममून अब्दुल गयूम भारत के लिए एक सरकारी दौरे पर निकलने वाले थे और उनकी सेफ जर्नी के लिए इंडियन प्लेन पहले ही भारत से रवाना हो चुका था अभी यह प्लेन आधे रास्ते में ही था कि राष्ट्रपति गयूम को भारत दौरा रद्द करना पड़ा दरअसल प्रधानमंत्री राजीव गांधी को इलेक्शन के चलते दिल्ली से बाहर जाना था इसीलिए प्रधानमंत्री राजीव गांधी और प्रेसिडेंट गयूम ने बातचीत करके इस दौरे को टाल दिया दौरे के टलने का दुख प्रेसिडेंट अब्दुल गयूम को था लेकिन वह नहीं जानते थे कि मालद्वीव में कई और भी थे जो 3 नवंबर को प्रेसिडेंट को मालदीव्स की धरती से दूर देखना चाहते थे और इस दौरे के रद्द होने से उनके प्लान पर पानी फिर सकता था यह लोग मालदीव्स के रिच बिजनेसमैन अब्दुल्ला लुतफी और पीपल्स लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ तमिल इलाम ग्रुप के मिलिटेंट थे 

जो राष्ट्रपति की गैर मौजूदगी में मालदीव्स में तख्ता पलट की सारी तैयारियां कर चुके थे इनका मकसद सरकार के खिलाफ बगावत करके मालदीव की सत्ता पर कब्जा करने का था इस साजिश को अंजाम देने के लिए अब्दुल्ला लुतफी की लीडरशिप में मिलिटेंट्स के समूह पहले ही मालदीव्स की टेरिटरी में घुस चुके थे यह सभी मिलिटेंट टूरिस्ट के भेष में स्पीड बोट के जरिए माले पहुंचे थे और मालदीव्स की सरकार को गिराने के लिए तैयार थे रात के अंधेरे में सभी मिलिटेंट माले में घुस आए इन्हें लग रहा था कि प्रेसिडेंट गयूम अब तक भारत पहुंच गए होंगे लेकिन दूसरी तरफ प्रेसिडेंट गयूम अपने प्रेसिडेंशियल हाउस में ही मौजूद थे ऐसे में मिलिटेंट्स के पास राष्ट्रपति की मौजूदगी में तख्ता पलट करने का कोई प्लान नहीं था

लेकिन पीछे हटने के लिए अब बहुत देर हो चुकी थी इसीलिए प्लौट के आतंकवादी और अब्दुल्लाह लुतसी इसकू को जारी रखते हुए आगे बढ़ते हैं वह माले में जगह-जगह फैल कर एक को ऑर्डिनेटेड अटैक को अंजाम देते हैं और धीरे-धीरे माले की सभी गवर्नमेंट बिल्डिंग्स को निशाना बनाकर उन्हें कंट्रोल में लेना शुरू कर देते हैं गवर्नमेंट बिल्डिंग्स पोर्ट्स एयरपोर्ट्स टेलीविजन टावर्स और रेडियो स्टेशन को सबसे पहले कैप्चर किया जाता है माले शहर में रह रहे लोगों की रातों की नींद तब उड़ जाती है जब उन्हें घर के बाहर चारों ओर से गोलियों की आवाज सुनाई पड़ती है 

माले की सड़कों पर हाईटेक वेपंस ली यह टेररिस्ट खुलेआम घूमने लगते हैं घरों में बंद लोगों में डर का माहौल फैल जाता है इतने में यह खूंखार मिलिटेंट मालदीव्स के प्रेसिडेंशियल पैलेस की तरफ अपने कदम बढ़ा देते हैं जहां प्रेसिडेंट गयूम अपने परिवार के साथ मौजूद थे इनके निशाने पर राष्ट्रपति गयूम होते हैं जिनकी जान खतरे में होती है उन तक भी यह बात पहुंच चुकी थी कि उनके खिलाफ की एक बड़ी साजिश को अंजाम दिया गया है 

जब लग ही रहा होता है कि बात हाथ से निकल चुकी है तभी मोल्डी वियन नेशनल सिक्योरिटी के एडवाइजर हरकत में आते हैं और वह प्रेसिडेंट गयूम और उनके परिवार को सही सलामत मालदीव्स के डिफेंस मिनिस्टर के घर पहुंचा देते हैं जहां से उन्हें एक सुरक्षित घर में पहुंचा दिया जाता है इसी दौरान आतंकी प्रेसिडेंशियल पैलेस को सीज कर लेते हैं साथ ही मलडी के एजुकेशन मिनिस्टर को बंदी बना लेते हैं 

अब्दुल्ला लुतफी का मालदीव्स की सत्ता को पाने का सपना अपनी मंजिल के काफी करीब पहुंच जाता है हालात जब काबू से बाहर निकल जाते हैं तो राष्ट्रपति के ऑर्डर्स पर मालदीव्स के फॉरेन सेक्रेटरी इब्राहिम जाकी कई देशों से मदद की गुहार लगाते हैं ब्रिटेन यूएसए पाकिस्तान श्रीलंका सिंगापुर और इंडिया वो देश होते हैं जिन्हें मुश्किल की घड़ी में मालदीव्स प्रेसिडेंट सबसे पहले याद करते हैं लेकिन श्रीलंका और पाकिस्तान अपनी मिलिट्री इनकैपेबिलिटी को जाहिर करते हुए मदद करने से इंकार कर देते हैं 

ऐसा ही जवाब मालदीव्स को सिंगापुर से भी सुनने को मिलता है अगला फोन मालदीव से यूएस और यूके को जाता है लेकिन यूएसए कहता है कि का सबसे क्लोजेस्ट मिलिट्री बेस डिएगो गार्सिया है जो मालदीव से 1000 किमी की दूरी पर है ऐसे में यूएस फोर्स से मदद आने में 2 से 3 दिन का समय लग सकता है वही ब्रिटेन मलडी को भारत से मदद मांगने की सलाह देता है क्योंकि सबसे जल्दी मदद उन्हें भारत से ही मिल सकती थी इधर मालदीव्स मदद के लिए जब भारत का दरवाजा खटखटा आता है तो तुरंत ही जवाब हां में आता है प्रधानमंत्री राजीव गांधी मालदीव्स को हर तरह से सहायता देने के लिए तैयार हो जाते हैं 

मालदीव्स को जल्द से जल्द मदद पहुंचाने के लिए प्रधानमंत्री राजीव गांधी दिल्ली में इमरजेंसी मीटिंग बुलाते हैं और इस मीटिंग में आर्मी चीफ रॉ चीफ और सभी इंपॉर्टेंट ऑफिसर्स को बुलाया जाता है जल्द से जल्द एक्शन लेना समय की मांग थी इसीलिए प्रधानमंत्री राजीव गांधी एनएसजी भेजने को कहते हैं लेकिन तभी वाइस चीफ ऑफ एयर स्टाफ एयर मार्शल सूरी ने सलाह दी कि इस ऑपरेशन में एयरफोर्स की भी जरूरत होगी 


जिसके बाद इंडियन आर्मी चीफ ने प्रधानमंत्री को यकीन दिलाया कि ऑपरेशन के लिए पैराशूट ब्रिगेड सही रहेगी यह पहली बार था कि फॉरेन लैंड में एक बड़ा मिशन इंडियन आर्मी को सौंपा गया था मुश्किल के समय में मालदीव ने भारत को याद किया था इसीलिए इंडियन आर्मी एंड एयरफोर्स ने दुश्मन के होश ठिकाने लगाने के लिए अपनी तैयारी शुरू कर दी थी अपने ऑपरेशन को सफल बनाने के लिए इंडियन आर्मी के पास मालदीव्स की ज्योग्राफिकल और स्ट्रेटेजिक लोकेशन की ना तो पूरी जानकारी थी और ना ही सही मैप था लेकिन इस काम में उनकी सहायता उस समय के मालदीव्स एंबेसडर ए के बैनर्जी ने की जो तब तो भारत में ही मौजूद थे 

ऑपरेशन की शुरुआती डेवलपमेंट में ए के बैनर्जी से इंडियन आर्मी को बहुत मदद मिली लेकिन बड़ी समस्या यह थी कि भारत के पास मालदीव्स का मैप नहीं था इसीलिए इंफॉर्मेशन जुटाने के लिए कॉफी टेबल बुक और टूरिस्ट मैप का सहारा लिया गया आर्मी का पहला प्लान यह था कि पैराट्रूपर्स प्लेन से पैरा ड्रॉपिंग करेंगे लेकिन इस प्लान के एग्जीक्यूशन में सबसे बड़ी समस्या यह थी कि मालदीव्स में छोटे-छोटे आइलैंड्स थे ऐसे में संभावना हो सकती थी कि सोल्जर्स को दूसरे आइलैंड्स पर भी ले जा सकती थी इसलिए तय हुआ कि पैराट्रूपर्स प्लेन से ही लैंड करेंगे इसके अलावा दूसरी समस्या यह थी कि मालदीव्स का माले एयरपोर्ट पूरी तरह मिलिटेंट्स के कब्जे में था वहां इंडियन सोल्जर्स का लैंड करना खतरे से खाली नहीं था

इसीलिए मालदीव्स पहुंचने का अब एक ही रास्ता था हुलहुले आइलैंड, हुलहुले आइलैंड मालदीव्स के राजधानी माले के करीब वाला आइलैंड था और तय किया गया कि इस आइलैंड के रास्ते ही भारत माले शहर में एंटर करेगा सारी स्थिति को परख हुए बहुत कम समय में भारत ने अपनी स्ट्रेटेजी को बनाया पैराट्रूपर्स को तैयार किया गया और इसी के साथ ऑपरेशन कैक्टस अधिकारिक तौर पर शुरू हो चुका था मुश्किल घड़ी में देश को छोड़कर भाग खड़े होने वाला यह राष्ट्रपति अभी भी मालद्वीव को डोमिनेट करने का ख्वाब देखता था और अपने इसी सपने को साकार करने के लिए इब्राहिम नासिर ने मदद ली मालदीव्स के रिच बिजनेसमैन और अपने पुराने दोस्त अब्दुल्ला लुतफी की 

जिन्होंने मिलकर 1988 के तख्ता पलट की पूरी साजिश रच डाली थी लेकिन अब्दुल्ला लतफाब देना मुमकिन नहीं था इसीलिए इस काम में उसे साथ मिला श्रीलंका के एक्सट्रीमिस्ट तामिल ग्रुप पीपल्स लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ तमिल इलाम के नेता उमा महेश्वरण का जिन्होंने 3 नवंबर को मालदीव्स के माले शहर में तख्ता पलट के साथ हिंसा का वो मंजर रच डाला जिसे रोकने के लिए भारत के वीर सैनिकों को मालदीव की धरती पर अपना पराक्रम दिखाना पड़ा

3 नवंबर 1988 की रात को ही इंडियन एयरफोर्स के इल्यूशन सेकंड 76 एयरक्राफ्ट ने ब्रिगेडियर फारुक बुलसारा के नेतृत्व में सिक्स्थ बटालियन ऑफ द पैराशूट रेजीमेंट और 17th पैराशूट फील्ड रेजीमेंट के साथ आगरा एयरफोर्स स्टेशन से उड़ान भरी और इस विमान ने नॉन स्टॉप उड़ते हुए 2000 किमी की यात्रा तय कि मालदीव्स को भारत से जो मदद की आस थी वह कुछ ही घंटे में उनके पास पहुंचने वाली थी लेकिन इधर मालदीव में हर गुजरते पल के साथ स्थिति बद से बदतर होती जा रही थी

अभी इंडियन प्लेन आधे ही रास्ते पहुंचा था कि यह संभावना भी जताई जा रही थी कि और भी ज्यादा विद्रोही माले आइलैंड पर पहुंच सकते हैं हालांकि भारत ने ऑपरेशन कैक्टस की जानकारी अभी गोपनीय रखी थी और इंटरनेशनल कम्युनिटी को अभी नहीं पता था कि भारत मालदीव्स की मदद के लिए आगे आया है लेकिन यह जानकारी भी तब सामने आ गई जब ब्रिटिश एयरवेज फ्लाइट 276 एयरक्राफ्ट के करीब से गुजरी 

इसके के कुछ मिनटों बाद ही बीबीसी के जरिए दुनिया जान गई कि भारत मालदीव्स की मदद के लिए निकल पड़ा है इधर माले में मिलिटेंट्स ने लूटमार शुरू कर दी थी उनके निशाने पर सबसे पहले बैंक्स थे जिन्हें लूटने के बाद उन्होंने प्रॉपर्टीज को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया था लोग बुरी तरह डरे हुए थे और शहर में वायलेंस तेजी से बढ़ रहा था लेकिन कुछ घंटे के अंदर ही इंडियन आर्मी मदद के लिए मालदीव्स की धरती पर पहुंच चुकी थी 

अब प्लानिंग के मुताबिक इंडियन एयरक्राफ्ट ने हुलहुले आइलैंड पर लैंडिंग की उनका अंदाजा सही था कि प्लॉट मिलिटेंट हुलहुले आइलैंड पर मौजूद नहीं थे इसी मौके का फायदा उठाते हुए सबसे पहले ट्रूप्स ने एयरफील्ड को सुरक्षित कर लिया था जो कि ऑपरेशन कैक्टस का पहला फेज था 

दरअसल इस ऑपरेशन को चार फेजेस में बांटा गया था जिसके तहत दो फेज में एक टीम को माले के साउथ वेस्ट में जाकर प्रेसिडेंट गयूम को सेव करना था जबकि थर्ड फेज में यह निश्चित किया गया था कि सभी टीम हुलहुले में इकट्ठा होंगे और इस मिशन का फोर्थ और आखिरी फेज था कि राष्ट्रपति की सेफ्टी को इंश्योर किया जाएगा और आगे हुआ भी ऐसा ही एयरपोर्ट को सुरक्षित करने के बाद ही दूसरी टीम को जिम्मेदारी दी गई कि वह माले को मिलिटेंट से आजाद करें और सबसे पहले प्रेसिडेंट गयूम की सुरक्षा सुनिश्चित करें फिर दूसरी इंडियन पैराट्रूपर्स की टीम बोट से पहले माले पहुंची और वहां टीम को फिर दो हिस्सों में डिवाइड किया गया। एक टीम प्रेसिडेंट की तलाश में निकल गई और दूसरी टीम को मिलिटेंट की तलाश में भेजा गया माले में घुसते ही इंडियन सोल्जर्स जगह की तलाशी लेते हुए आगे बढ़े 

कुछ जगहों पर पैराट्रूपर्स का सामना मिलिटेंट से हुआ और दोनों ही पक्षों में लड़ाई भी हुई लेकिन इसमें जीत इंडियन पैराट्रूपर्स की हुई जो माले के इलाकों को सिक्योर करते आगे बढ़े लेकिन सबसे बड़ी चुनौती प्रेसिडेंट गयूम को सेव करने की थी और इस काम के लिए भेजी गई टीम को जल्द ही कामयाबी हाथ लगी जो पहले डिफेंस मिनिस्टर के घर पहुंचे और वहां से वह रात के 2 बजे उस सेफ हाउस में भी पहुंच गए जहां प्रेसिडेंट गयूम को छिपाया हुआ था यहां से राष्ट्रपति गयूम को रेस्क्यू कर उन्हें इस मुश्किल घड़ी में भारत ले जाने की बात भी कही गई 

लेकिन राष्ट्रपति गयूम ऐसी स्थिति में अपने देश को छोड़कर नहीं जाना चाहते थे उन्होंने भारत जाने से मना कर दिया उनका कहना था कि उन्हें नेशनल सर्विस हेड क्वार्टर्स तक सेफली पहुंचा दिया जाए और भारतीय सैनिकों ने ऐसा ही किया सुबह 4:00 बजे के आसपास वह नेशनल सर्विस हेड क्वार्टर्स पहुंचे और वहां पहुंचकर उन्होंने ब्रिगेडियर फारूक बलसारा से पीएम राजीव गांधी को फोन लगाने को कहा फोन पर अब्दुल गयूम ने राजीव गांधी को इस मदद के लिए धन्य वाद देकर उनका आभार व्यक्त किया 


सिर्फ कुछ ही घंटों में इंडिया की जाबास सेना के नेतृत्व में इस तक्ता पलट की साजिश का पासा ही पलट गया था यह भारतीय सैनिकों के लिए एक बड़ी जीत थी लेकिन भारतीय सैनिकों के पास जीत का जश्न मनाने का समय नहीं था क्योंकि मिलिटेंट्स अभी भी माले में खुलेआम घूम रहे थे अब्दुल्ला लुतफी का कोई अता-पता नहीं था और मालदीव्स के एजुकेशन मिनिस्टर अभी भी मिलिटेंट्स के कब्जे में थे उन्हें सही सलामत बचाना था और माले को कंट्रोल में लेना इंडियन मिलिट्री के लिए अहम गोल था माले में इंडियन फोर्सेस जिस तेजी से अपनी पकड़ मजबूत कर रही थी उतनी ही तेजी से इंडियन ट्रूप्स की प्रेजेंस की खबर मिलिटेंट्स को भी लग गई थी 

दोनों पक्षों में जबरदस्त लड़ाई शुरू हो गई इसी बीच इंडियन फोर्सेस मिलिटेंट पर भारी पड़ने लगे तब कई मिलिटेंट मौके से भागकर अपनी जान बचाने की कोशिश करने लगे इनमें से कुछ मिलिटेंट्स को तो इंडियन फोर्सेस ने मौके पर ही बंदी बना लिया और उन्हें मालदीव सिक्योरिटी फोर्सेस को सौंप दिया लेकिन माले में कई मिलिटेंट्स अभी भी मौजूद थे जिन्हें तख्ता पलट के अपनी हर साजिश नाकामयाब होती दिख रही थी इसलिए इंडियन फोर्सेस से बचने का उनके पास एक ही उपाय था कि वह चोरी छिपे आइलैंड से बाहर निकल जाए 

और आगे इन मिलिटेंट्स ने ऐसा ही किया उन्होंने एक टूरिस्ट बोट को हाईजैक किया इस बोट में मिलिटेंट के साथ अब्दुल्ला लतफर्प बनाए गए मालदीव्स के एजुकेशन मिनिस्टर और छह हॉस्टेस को भी अपने साथ श्रीलंका ले जाने की तैयारी में थे इधर बीच पर मौजूद इंडियन फोर्स ने भी मिलिटेंट्स को आइलैंड से भागते हुए देख लिया था इसलिए ट्रूप्स ने बोट पर अंधाधुन फायरिंग शुरू कर दी थी 

रॉकेट लॉन्चर्स एमएमजी स्मॉल आर्म्स फायर से बोट को एम किया गया और इस फायरिंग से बोट को नुकसान भी हुआ था बोट में हुए दो छेद की वजह से यह बाए तरफ झुकने लगी थी साथ ही साथ बोट की स्टेयरिंग व्हील भी जाम हो गई थी ऐसे में यह बोट मलाका की तरफ जा रहे जहाजों की तरफ बढ़ रहा था अगर ऐसा होता तो अब्दुल्ला लुतफी अपने मिलिटेंट्स के साथ भागने में कामयाब हो जाता और वह इंडियन फोर्सेस के हाथ से निकल जाता लेकिन भारतीय जवानों ने ऐसा होने नहीं दिया इसी मिशन के बीच अमेरिका की फटीला एयरक्राफ्ट कैरियर भी मालदीव्स की मदद के लिए पहुंच गया था 

फटीला एयरक्राफ्ट कैरियर के कमांडर ने भारत की मदद करने के अनुमति मांगी लेकिन भारतीय सेना को मदद की जरूरत नहीं थी हमारे सैनिक पहले ही मालदीव्स को सुरक्षित करने में कामयाब हो चुके थे इसीलिए अमेरिकन कमांडर को मालद्वीव अधिकारी ने हुलहुले आइलैंड पर आने की इजाजत नहीं दी और इसीलिए अमेरिका को वापस लौटना पड़ा इंडियन आर्मी ने अब्दुल्ला लतफाब बेस को दी जो पहले से ही सक्रिय थी इंडियन नेवी की आईएनएस गोदावरी और आईएनएस बेतवा पहले ही इस ऑपरेशन के लिए मालद्वीव निकल चुकी थी और इसीलिए आगे चलकर हाईजैक बोट का सामना भारत की आईएनएस गोदावरी और आईएनएस बेतवा फ्रीगेट से हुआ इस बोट के साथ दोनों इंडियन फ्रीगेट से काफी क्लैशेस हुए इंडियन नेवी ने बोट पर एक बड़ा हमला किया जिससे नाफ का एक हिस्सा टूट गया पकड़े जाने के डर से कई मिलिटेंट्स पानी में कूद कर जाने लगे 

वहीं इंडियन नेवी ने अब्दुल्ला लतफर्प को सरेंडर करने का मौका दिया लेकिन वह नाव का रास्ता बदलकर भागने की कोशिश करता रहा इस बार किस्मत ने लतीफी का साथ नहीं दिया इंडियन नेवी के सामने अब्दुल्ला लतफर्पबी इस लड़ाई में 19 मिलिटेंट्स मारे गए साथ ही दो हॉस्टेस की भी जान गई लेकिन इंडियन नेवी ने जल्द ही हॉस्टेस बना बनाए गए एजुकेशन मिनिस्टर को रेस्क्यू कर लिया 

इंडियन नेवी की जाबाजी से एक भी मिलिटेंट भागने में कामयाब नहीं हो पाया इसकू के मास्टरमाइंड अब्दुल्ला लतीफी को पकड़ लिया गया और उसकी तख्ता पलट की साजिश धरी की धरी रह गई इधर इंडियन एयर फोर्सेस ने अपना कमाल दिखाया और पूरे माले को काबू में ले लिया इस आखिरी जंग के साथ भारत ने मले को पूरी तरह से सेव कर लिया था इसी के साथ ऑपरेशन कैक्टस अधिकारिक तौर पर सफल हो गया ऑपरेशन कैक्टस के सफल होने के साथ ही अब्दुल्ला तूफी का मालदीव्स को कैप्चर करने का सपना चकनाचूर हो गया 

भारतीय सेना के इस अदम साहस को दुनिया भर ने देखा यह पहली बार था जब भारत ने फॉरेन लैंड पर ऐसे ऑपरेशन को अंजाम दिया जिसे करने से कई देशों ने अपने हाथ खड़े कर दिए थे लेकिन भारत पीछे नहीं हटा इस ऑपरेशन में इंडियन नेवी और एयरफोर्स ने मिलकर काम किया और केवल 18 घंटे में ही उन्हें बड़ी सफलता भी हाथ लगी यूनाइटेड स्टेट्स के प्रेसिडेंट रोनाल्ड रीगन ने रीजनल स्टेबिलिटी के लिए इंडिया के कंट्रीब्यूशन को काफी महत्त्वपूर्ण बताया वहीं ब्रिटिश प्राइम मिनिस्टर मार्गरेट थैचर ने थैंक गॉड फॉर इंडिया भी कहा था एक तरफ जहां इंटरनेशनल लेवल पर भारत और हमारी सेना को सराहा गया वहीं साउथ एशिया में श्रीलंका ने भारत के इस कदम को गलत कहते हुए इसे काफी क्रिटिसाइज भी किया था 


बहरहाल इसके मिलिट्री सपोर्ट के बाद मालदीव्स में राष्ट्रपति गयूम की सरकार बच गई और अब्दुल्ला लतफाब के लिए फांसी की सजा सुनाई गई लेकिन बाद में इस फांसी की सजा को बदलकर गयूम ने मृत्यु की सजा को उम्र कैद की सजा में बदल दिया ऑपरेशन कैरेक्टर्स भारत और मालदीव्स के रिश्तों के बीच एक ऐसा माइलस्टोन बन गया जिससे भारत और मालदीव्स के रिश्ते और मजबूत हो गए।

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