26/11 Mumbai Planning & Execution | Operation Black Tornado | How NSG Neutralise Terrorists

Vedic Now
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26 नवंबर 2008 की शाम हमेशा की तरह मुंबई की सड़कों पर जिंदगी अपनी रफ्तार से चल रही थी अपने कल से अनजान हर कोई अपने काम में बिजी था किसी ने बुरे सपने में भी नहीं सोचा था कि अब से बस कुछ ही घंटे बाद मुंबई में ऐसी तबाही होगी जिससे मुंबई शहर कभी नहीं भुला पाएगा

मुंबई को दहलाने के लिए कपड़ों में आम दिखने वाले आठ लड़के स्पीड बोट से बंदरगाह में उतरते हैं इतना नॉर्मल दिखने के बावजूद भी इन लड़कों को देखकर वहां के लोकल लोगों को थोड़ा अजीब महसूस होता है इन लोगों में मौजूद भरत तमोर नाम के एक आदमी को अजीब लगने के साथ-साथ कुछ मिस्टीरियस भी फील हुआ इसलिए उन्होंने फौरन सभी लड़कों को रोक कर उनसे पूछा कि वो यहां क्या कर रहे हैं और कहां जा रहे हैं इस सवाल पर पहले तो सभी हिचकिचाया, लेकिन फिर कोई खुद को स्टूडेंट तो कोई कुछ बताता है लेकिन इतने में उन लड़कों में से एक लड़का जोर से चिल्लाता हुआ बोलता है कि अपने काम से काम रखो 

रात का वक्त था और ऐसे में एक ही उम्र के आठ लड़के कंधों पर दो बड़े-बड़े बैग लेकर बिना कुछ बताए वहां से निकल लेते हैं भरत को इन लड़कों पर शक होता है जिस कारण वह आगे चलकर इस घटना की जानकारी मुंबई पुलिस को भी देते हैं लेकिन पुलिस बात को हल्के में लेते हुए कोई कारवाही नहीं करती बाद में कार्रवाई ना करना ही मुंबई पुलिस की सबसे बड़ी गलती साबित होती है अगर समय रहते मुंबई पुलिस कोई कार्रवाई करती तो शायद मुंबई में मौत का तांडव ना देखने को मिलता 

शायद उस दिन का इतिहास 166 लोगों के खून से सना नहीं होता वहां से निकलने के बाद सभी लड़के दो-दो के ग्रुप में डिवाइड होकर टारगेट की गई लोकेशंस की तरफ निकल पड़ते हैं इन लोकेशंस में सीएसटी रेलवे स्टेशन ताजमहल पैलेस होटल लियोपोल्ड कैफे और नरीमन हाउस शामिल थे सारी जगह वहां से बस कुछ ही दूरी पर थी हालांकि समुद्र के रास्ते से आई बोट में आठ नहीं बल्कि टोटल 10 लड़के थे जहां 10 में से आठ लड़के बोट से उतर कर सड़क के रास्ते अपनी-अपनी लोकेशन पर पहुंच रहे थे तो वही बाकी के दो लड़के अपनी टारगेट ओबरॉय होटल तक पहुंचने के लिए बोट का ही इस्तेमाल करते हैं

एक तरफ जहां यह लड़के अपने मंसूबों को पूरा करने के लिए तेजी से अपनी-अपनी लोकेशंस की ओर बढ़ रहे होते हैं तो वहीं दूसरी ओर मुंबई हमेशा की तरह अपनी धुन में बस चलती जा रही थी लोग रोज की तरह कामकाज में बिजी थे लेकिन अचानक मुंबई गोलियों की तड़पड़ा हट से थर्रा उठती है मुंबई के लिए यह आवाजें नयी नहीं थी अंडरवर्ल्ड के गुटों में अक्सर शूटआउट होता रहता था थोड़ी बहुत गोलीबारी तो मुंबई के लिए आम बात थी लेकिन आज कुछ बड़ा हुआ था इतना बड़ा कि जिसकी आवाज ने देश को सुन्न करके रख दिया था 

इस धमाके और अंधाधुन गोलीबारी की शुरुआत छत्रपति शिवाजी टर्मिनस से होती है छत्रपति शिवाजी टर्मिनस मुंबई के सबसे बिज एस्ट रेलवे स्टेशन में से एक है उस दिन पटना जाने वाली ट्रेन कुछ घंटों की देरी से चल रही थी यात्रियों को यह कहां पता था कि यह देरी उनके लिए जानलेवा साबित होने वाली है इस्माइल खान और अजमल कसाब नाम के दो लड़के एक साथ स्टेशन पर पहुंचते हैं और ऐसे खौफनाक मंजर को जन्म देते हैं जिसका अंदाजा कोई नहीं लगा सकता था यहां पहुंचकर जहां कसाव पागलों की तरह हंसते हुए ak47 से ताबड़ तोड़ गोलियां चलाने लगता है तो भाई इस्माइल चार चारों तरफ हैंड ग्रेनेड फेंकता है किसी को अंदाजा नहीं था कि क्यों और किस कारण उन पर ऐसा हमला किया जा रहा है 

चारों ओर बस गोलीबारी और चीखने चिल्लाने की आवाजें गूंज रही थी लगातार गोलियों की आवाज और बॉम धमाकों से लोग डर कर इधर-उधर भागने लगते हैं जिसको जहां जगह मिलती है वो वही छुप जाता है अफरा-तफरी और चीख पुकार के बीच दोनों इस तरह फायरिंग कर रहे थे जैसे मानो कोई वीडियो गेम खेल रहा हो इन दोनों आतंकियों का सिर्फ एक ही मकसद था और वो था मुंबई के सबसे बिजय रेलवे स्टेशन छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पर अधिक से अधिक लोगों की मौत स्टेशन पर काम करने वाले लोगों और रेलवे पुलिस को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि इस सिचुएशन को किस तरह हैंडल किया जाए फिर भी दोनों आतंकियों को रोकने के लिए रेलवे पुलिस हर एक कोशिश करती है लेकिन नाकाम रहती है 

दरअसल दोनों लड़के पहले से ही प्लान बनाकर आए थे और उनके पास हर तरह के हथियार मौजूद थे लेकिन रेलवे पुलिस के पास केवल उनकी ड्यूटी रिवॉल्वर ही मौजूद थी जिस कारण वो इनका सामना नहीं कर पाते और वही शहीद हो जाते हैं लेकिन इसी बीच रेलवे स्टेशन के ही एक कर्मचारी विष्णु दत्ताराम अपनी जान की परवाह ना करते हुए अनाउंसमेंट करके सभी पैसेंजर्स को आगाह करते हैं कि वह फॉरेन स्टेशन को छोड़कर अपनी जान बचाए अनाउंसमेंट सुनते ही कई लोग अपनी जान बचाकर भागने में कामयाब रहे 

लेकिन आतंकियों का हमला इतना भयानक था कि केवल एक घंटे में 58 लोग अपनी जिंदगी गवा देते हैं तो वही 104 लोग बुरी तरह घायल हो जाते हैं जब सीएसटी रेलवे स्टेशन पर गोलीबारी चल रही होती है तभी मुंबई पुलिस को इस घटना की इंफॉर्मेशन मिल जाती है लेकिन इससे पहले की पुलिस कोई एक्शन लेती एक और खूनी खेल खेला जाता है और इस बार लोकेशन अलग थी मुंबई के फेमस लियोपोल्ड कैफे में उ

न्हीं 10 में से दो आतंकी शोएब और नाजिर एकदम सीएसटी रेलवे स्टेशन जैसी ही घटना को अंजाम देते हैं लियोपोल्ड कैफे में अपनी शाम को हसीन बनाने में डूबे हुए लोगों को आने वाले पल की कोई खबर नहीं थी पार्टियों में मशगूल लोगों में से किसी को भी अंदाजा नहीं था कि यह रात उनके लिए आखिरी रात साबित होगी वो खुशी और जश्न के माहौल में खोए हुए थे कि तभी दो जवान लड़के हाथों में हथियार लिए कैफे में बैठे हर एक शख्स के खून के प्यासे बन जाते हैं लियोपोल्ड कैफे मुंबई का एक बेहद जानामाना कैफे है जहां लोगों की हमेशा भीड़ रहती है इस कैफे पर फॉरेनर्स का भी हमेशा से आना जाना रहा है कैफे की पॉपुलर और फॉरेनर्स की प्रेजेंस के कारण ही इस कैफे को टारगेट किया जाता है 

दोनों आतंकी लियोपोल्ड कैफे में घुसते ही कई राउंड फायरिंग करते हैं अचानक से की गई अंधाधुन फायरिंग से कैफे में बैठे कई लोग चाहकर भी अपनी जान नहीं बचा पाते जिस कारण इस हमले में कई विदेशी और भारतीय लोग मारे जाते हैं मुंबई में लगातार दो अटैक्स होने के बाद भी बात यहां नहीं थमती बो रुख करते हैं जहां पहले से ही इनके दो गैंग मेंबर पहुंच चुके थे लगातार हो रहे अटैक से चैन की नींद सो रहे लोग जाग जाते हैं लोगों को उनके घर में ही रहने की सलाह दी जाती है सब कुछ इतना अजीब और तेजी से हो रहा था कि किसी को सोचने और संभलने तक का वक्त नहीं मिल पाता हर गुजरते मिनट के साथ मीडिया में अटैक की न्यूज हेडलाइन फ्लैश कर रही थी चंद घंटों पहले शुरू हुआ यह हमला ऐसा विकराल रूप ले लेता है कि हर तरफ से सिर्फ गोलीबारी और बॉम ब्लास्ट की खबरें ही सामने आ रही थी 

अपनी तेजी के लिए मशहूर मुंबई कुछ समय के लिए रुकसा जाता है शुरुआती दौर में मुंबई पुलिस को यह सब एक गैंग वॉर लगता है लेकिन कुछ ही समय में पुलिस को भी समझ आ जाता है कि यह कोई गैंग वॉर नहीं बल्कि एक फुल्ली प्लान टेररिस्ट अटैक है मुंबई में उस दिन एक ही समय पर कई जगह हमले हो रहे थे जब सीएसटी स्टेशन और लियोपोल्ड कैफे में हमला हो रहा था तभी आतंकियों का एक और ग्रुप ताज होटल को निशाना बना रहा था ताज होटल पर अटैक की इतनी जबरदस्त प्लानिंग की गई थी कि जिस समय ताज होटल पर हमला किया जाता है 

उस समय होटल के मैक्सिमम रूम्स बुक थे हमले के वक्त यूरोपियन पार्लियामेंट कमेटी के कई डेलिगेट्स भी होटल में मौजूद होते हैं इत्तेफाक से उस दिन गौतम अडानी भी ताज होटल में ही मीटिंग कर रहे होते हैं हालांकि अपनी मीटिंग खत्म करके जैसे ही अडानी बाहर की ओर जाने लगते हैं वैसे ही उनकी टीम उन्हें एक और मीटिंग के बारे में इफॉर्म करती है जिस कारण बाहर निकलने के बजाय वह वापस से मीटिंग रूम में चले जाते हैं एक तरफ अडानी मीटिंग के लिए जाते हैं तो दूसरी ओर अब तक आतंकियों का तीसरा ग्रुप हाफिज और जावेद ताज होटल के मेन एंट्रें से होटल में घुस जाते हैं उनके होटल में एंटर करते ही होटल ताज गोलियों की तड़ तड़ा हट और बम के धमाकों से गूंज उठता है 

जैसे ही अडानी की टीम को इस हमले के बारे में पता चलता है अडानी को तुरंत किचन के जरिए बेसमेंट में ले जा जाया जाता है जहां वह रात भर रहते हैं और सुबह उन्हें मार्कोस कमांडो सेफली रेस्क्यू कर लेते हैं अडानी तो सेफ हो चुके थे लेकिन अभी भी यहां हजारों लोगों की जान दाव पर लगी थी दोनों आतंकी लगातार फायरिंग कर रहे थे गोलीबारी की आवाज सुनकर हर तरफ डर का माहौल था सबसे पहले इन दोनों आतंकियों ने मेन गेट पर ड्यूटी कर रहे गार्ड की हत्या कर दी उसके बाद होटल के ग्राउंड फ्लोर पर जो भी लोग थे उनमें से कुछ को मार दिया और कुछ को हॉस्टेस बना लिया ग्राउंड फ्लोर के बाद आतंकी फायरिंग करते हुए सीढियों से ऊपर के फ्लोर्स को खंगालने लगते हैं हालांकि इस मौके का फायदा उठाकर मुंबई पुलिस अलग-अलग गेट से कई बड़े अधिकारियों को सेफली रेस्क्यू कर लेती है 

दों के करीब लोग खुद होटल की खिड़कियों को तोड़कर बेडशीट और पर्दों के सहारे अपनी जान बचाने में सफल होते हैं यहां पर आतंकियों का मोटिफ किसी बड़े बिजनेसमैन या फॉरेन डेलिगेट्स को हॉस्टेस बनाने का था ताकि इसके सहारे वो इंडियन गवर्नमेंट से नेगोशिएट कर सके दोनों आतंकी होटल में घुसने के साथ ही पहले फिफ्थ फ्लोर पर अटैक भी इसलिए ही करते हैं क्योंकि फिफ्थ फ्लोर पर बिजनेस सेंटर था उन्हें लगा था कि इस फ्लोर पर उन्हें कोई ना कोई बड़ा आदमी जरूर मिल जाएगा हालांकि अगर गौतम अडानी को रेस्क्यू नहीं किया जाता तो इनके मंसूबे पूरे हो भी सकते थे 

लेकिन फिफ्थ फ्लोर पर किसी बिग पर्सनालिटी के ना मिलने पर दोनों आतंकी फायरिंग करते हुए सिक्स्थ फ्लोर पर चढ़ जाते हैं और वहां अपना कंट्रोल सेंटर बनाने के लिए एक कमरा तलाशने लगते हैं उनकी नजर रूम नंबर 520 पर पड़ती है जो अंदर से बंद था बहुत खटखटाने के बाद भी गेट नहीं खुलता तो आतंकी हथियारों से मारकर गेट खोल देते हैं और अंदर घुस जाते हैं 

दरअसल उस कमरे में कॉरपोरेशन बैंक के फॉर्मर चेयरमैन के आर रामामूर्थी मौजूद थे होटल में गोलियों की बौछार और लोगों की चीख पुकार से उन्हें भी इस हमले के बारे में पता चल गया था इसलिए वह अपने रूम के गेट को बंद कर वॉशरूम में छुप जाते हैं लेकिन कमरे का गेट खुलते ही उनकी धड़कनों की रफ्तार एकदम से तेज हो जाती है और जिसका डर था वही होता है वॉशरूम में छुपे रामामूर्ति आतंकियों की नजर में आ जाते हैं लेकिन आतंकी उनको मारने के बजाय उन्हें वही बंधक बना लेते हैं 

ताज होटल पर अटैक के पीछ ही विले पार्ले और वाड़ी बंदर में चलती टैक्सी में तेज आवाज के साथ बॉम ब्लास्ट होता है और आसमान धुए से भर जाता है टैक्सी में ट्रेवल कर रहे सभी लोग मारे जाते हैं बॉम ब्लास्ट इतना जोरदार होता है कि आसपास की कई बिल्डिंग्स में आग लग जाती है और उससे भी कई लोगों की मौत हो जाती है टैक्सी में बॉम लगाने का काम भी उन 10 लोगों में से ही कुछ टेररिस्ट का होता है दरअसल आतंकी फेमस और क्राउडेड जगहों को टारगेट तो कर ही रहे थे इसके अलावा उनका टारगेट वो टैक्सी भी होती है जिनसे वो एक जगह से दूसरी जगह तक जा रहे थे 

आतंकी टैक्सी में ट्रेवल करते समय ड्राइवर को बातों में उलझा कर उनमें बॉम लगा देते और फिर खुद टैक्सी से उतर जाते टैक्सी ब्लास के जरिए भी व मुंबई को दहला रहे थे ताज होटल में जब दोनों आतंकी सिक्सथ फ्लोर पर अपना कंट्रोल रूम बना रहे थे तभी उनके दो और साथी नाजिर और शोएब भी ताज होटल पहुंच जाते हैं होटल पहुंचते ही ये दोनों आतंकी पागलों की तरह अंधाधुन फायरिंग करते हुए कई लोगों को मार देते हैं 

और चार लोगों को हॉस्टेस बनाकर रूम नंबर 520 में ले जाते ते हैं अब इस रूम में चार आतंकी और पांच हॉस्टेस होते हैं इस वक्त कोई आतंकी लगातार किसी से फोन पर आगे के हमले को लेकर बात कर रहा होता है तो कोई आतंकी पांचों बंधकों की आईडी को देखते हें ताकि कोई वड़ा आदमी निकल सके 

ओर उन्हे वन्धक बनाकर नेगोशिएशन किया जा सके लेकिन पकड़े हुए लोगों में कोई भी बड़ा नाम नहीं मिलने पर आतंकी कमरे की चादरों और पर्दों में आग लगा देते हैं और रूम को लॉक करके खुद बाहर आ जाते हैं आग के धुए से हॉस्टेस का दम घुट रहा होता है लेकिन किसी भी तरह वह एक दूसरे को आजाद करके बेडशीट्स के सहारे कमरे की खिड़कियों से नीचे उतर करर अपनी जान बचाने में कामयाब हो जाते हैं यह पांचों हॉस्टेस तो बच जाते हैं लेकिन ताज होटल में अब तक 31 लोग अपनी जान गवा चुके थे 

एक तरफ ताज होटल में आतंक मचा हुआ था तो वहीं दूसरी तरफ आतंकियों की चौथी टीम के नाजिर और बाबर इमरान, नरीमन हाउस में घुसकर वहां मौजूद लोगों को हॉस्टेस बना लेते हैं दरअसल नरीमन हाउस पर इन आतंक का अटैक करने का एक अलग मोटिव होता है पांच फ्लोर की ये बिल्डिंग जुश ऑर्गेनाइजेशन के द्वारा 2 साल पहले ही खरीदी गई थी जिस वजह से रेमन हाउस एक यहूदी सेंटर होता है यहां कई यहूदी आकर रुकते और प्रेयर करते 

इस जगह पर इजराइली प्रीस्ट राबी गैब्रियल होल्स बर्ग और उनकी पत्नी रिफ का अपने बेटे मोशे के साथ रहते थे जूस सेंटर होने की वजह से आतंकियों का प्लान यहां पर किसी को मारने की बजाय उन्हें बंक बनाने का होता है उनका मोटिव था कि वह सभी इजराइली सिटीजंस को हॉस्टेस बनाकर इजराइली गवर्नमेंट से नेगोशिएट करते जिसके चलते इजराइल भारत पर अपने सिटीजंस को बचाने के लिए दबाव बनाता इस तरह आतंकियों का मकसद इजराइल और इंडिया के रिलेशन में फूट डालने का भी था 

इसलिए दोनों आतंकी यहां रह रहे गैब्रियल और उनकी पत्नी रिवका पर इजराइल की एंबेसी से बात करवाने के लिए प्रेशर बनाते हैं लेकिन जब कोई बात नहीं बनती तो आतंकी फ्रस्ट्रेट होकर नरीमन हाउस को भी खून से रंग देते हैं इस हमले में गैब्रियल और उनकी प्रेग्नेंट वाइफ समेत नौ लोग अपनी जान गवा देते हैं सीएसटी स्टेशन लियोपोल्ड कैफे ताज होटल नरीमन हाउस और टैक्सी बॉम ब्लास्ट्स जहां इतना सब हो रहा था तो वहीं आतंकियों का पांचवां ग्रुप अब्दुल रहमान और फहद उल्ला ओबराय होटल के पास बोट को समुंद्र के किनारे लगाते हैं और होटल की लॉबी में अंधाधुन फायरिंग करना शुरू कर देते हैं यहां पर भी आतंकियों का अटैक का तरीका सेम होता है 

ये दोनों आतंकी भी बाकी आतंकियों की तरह ओय होटल में गोलीबारी करते हैं गोलियों की आवाज से कई लोग जैसे-तैसे बचकर वहां से निकल जाते हैं लेकिन इस दौरान आतंकी होटल के दो स्टाफ मेंबर जॉर्डन और प्रदीप को बंदी बना लेते हैं आतंकी पहले जॉर्डन को पकड़कर उसे फोर्स करते हैं कि वह फर्नीचर और पर्दों पर अल्कोहल डालकर उनमें आग लगाए लेकिन ऐसा करते हुए जॉर्डन के हाथ कांपने लगते हैं जिसे देखकर एक आतंकी गुस्से में आ जाता है और जॉर्डन को गोली मार देता है 

जॉर्डन के मरते ही आग लगाने का काम प्रदीप को सौंपा जाता है प्रदीप मौत के डर से जैसे-तैसे वहां मौजूद पर्दों और फर्नीचर में आग लगा देता है इसके बाद प्रदीप से वीआईपी लोगों के बारे में आतंकी पूछताछ कर करते हैं यहां प्रदीप चालाकी दिखाते हुए बताता है कि वीआईपी ऊपर वाले फ्लोर पर होंगे इसलिए लिफ्ट से जाना पड़ेगा प्रदीप और दोनों आतंकी लिफ्ट की तरफ बढ़ते हैं लिफ्ट के खुलते ही प्रदीप आतंकियों को चकमा देकर अकेला लिफ्ट में घुस जाता है और नीचे जाने का बटन दबाकर लिफ्ट को बंद कर देता है 

यह सब इतना अचानक से हुआ था कि आतंकियों को कुछ समझ नहीं आया लेकिन इस चकमे से आतंकी बहुत गुस्से में आ जाते हैं और पहले लिफ्ट और फिर चारों तरफ पागलों की तरह फायरिंग करने लगते हैं इस हमले में 30 से ज्यादा लोग अपनी जान गवा देते हैं एक ही दिन एक ही वक्त पर अलग-अलग जगह से अटैक्स की खबर सुनकर महाराष्ट्र पुलिस क्लूलेस हो जाती है कुछ देर के लिए उन्हें समझ ही नहीं आता कि उन्हें क्या करना चाहिए हालांकि गोलीबारी की सूचना पाते ही मुंबई एटीएस के हेड हेमंत करकरे जल्द ही अपनी टीम तैयार कर आतंकियों का पीछा करते हैं 

वो पहले सीएसटी रेलवे स्टेशन पहुंचते हैं पर वहां तब तक खून का खेल खेला जा चुका था तभी उन्हें फोन पर पता चलता है कि दो आतंकी बंदूकें लेकर कामा हॉस्पिटल के पास वाली में देखे हैं यह क्लू मिलते ही हेमंत करकरे अपनी गाड़ी को कामा हॉस्पिटल की तरफ मोड़ देते हैं इस गाड़ी में हेमंत करकरे के साथ एसीपी अशोक कामटे विजय सालसकर हेड कांस्टेबल अरुण जादव और तीन सिपाही भी मौजूद थे गाड़ी जैसे ही कामा हॉस्पिटल की गली के पास पहुंचती है सीएसटी पर हमला करने वाले कसाब और स्माइल एकदम से गाड़ी के सामने आ जाते हैं और गाड़ी पर अंधाधुन फायरिंग करते हुए वो कुछ ही मिनट्स में ak47 की दो मैगजीन पुलिस की गाड़ी पर खाली कर देते हैं 

इस दौरान पुलिस की तरफ से भी गोलीबारी होती है जिसके चलते कसाब के हाथों में गोली लग जाती है लेकिन आतंकियों के ताबड़तोड़ हमले ने पुलिस की गाड़ी को छल्ली कर दिया था पुलिस की तरफ से फायरिंग रुकते ही कसाब और स्माइल गाड़ी की तरफ बढ़ते हैं और कंफर्म करते हैं कि कोई पुलिस वाला जिंदा तो नहीं बचा इस गोलीबारी में हेमंत करकरे सहित कई पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे 

दोनों आतंकियों ने जब गाड़ी में आगे पीछे देखकर पक्का कर लिया कि कोई भी जिंदा नहीं है तो वो विजय सालसकर हेमंत कर करे और अशोक कामटे की बॉडीज को नीचे उतारते हैं और ड्राइवर वाली सीट को खाली कर देते हैं आतंकी पीछे की सीट पर बैठे पुलिस कर्मियों की डेड बॉडीज को भी गाड़ी से उतारना चाहते थे लेकिन पीछे का डोर ना खुलने की वजह से टाइम ना वेस्ट करते हुए वो आगे वाली सीट पर बैठकर गाड़ी को लेकर वहां से मालाबार हिल की तरफ निकल जाते हैं हालांकि गोलीबारी के कारण गाड़ी की हालत काफी खराब हो जाती है गाड़ी के टायर्स में गोली लगने की वजह से कुछ दूर चलते ही गाड़ी पंचर हो जाती है दोनों आतंकी गाड़ी को चेंज करने का सोचते हैं कि तभी उन्हें सामने से एक स्बामाइल हिल की तरफ बढ़ जाते हैं 

इस वक्त दो चीजें अच्छी हुई एक तो आतंकी कार चलको को मारना भूल जाते हैं और दूसरा यह कि आतंकियों का ध्यान नहीं जाता कि जिस पुलिस कार में बैठकर वो यहां तक आए थे इसके पीछे की सीट पर हेड कांस्टेबल अरुण जादव अभी भी जिंदा थे उनके बस कंधे पर गोली लगी थी और वह मरने का नाटक करते हुए पूरे रास्ते स्माइल और कसाब की बातें सुनते हुए आए थे 

इसलिए आतंकियों ने जैसे ही पुलिस की गाड़ी को खाली किया अरुण जाधव ने फौरन पुलिस कंट्रोल रूम को फोन करके आतंकियों की डायरेक्शन और डेस्टिनेशन के बारे में इंफॉर्मेशन लगा दिए जाते हैं और इन बैरिकेडिंग के साथ पुलिस फोर्स भी जगह-जगह पर तैनात हो जाती है पुलिस की हरकत में आने के कारण अब चारों तरफ से दोनों आतंकी पुलिस वालों से घिर जाते हैं भागने का एक भी मौका ना देख वो बैरिकेड तोड़ने की कोशिश करते हैं एकदम से दोनों तरफ से ताबड़तोड़ फायरिंग होने लगती है 

लेकिन पुलिस के आगे दोनों आतंकी कहीं नहीं टिक पाते जब आतंकियों की तरफ से गोली चलना बंद हो जाती है तो पुलिस को उनके मर जाने का आभास होता है लेकिन किसी की हिम्मत नहीं होती कि कोई आगे बढ़कर आतंकियों की मौत की पुष्टि कर सके ऐसे में पुलिस कर्मियों की भीड़ को चीरते हुए असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर तुकाराम ओंबले आगे आते हैं और सबसे बहादुरी का काम करते हैं वो अनाम होते हुए भी आतंकियों की ओर बढ़ते हैं लेकिन उनके पास पहुंचते ही एक आतंकी उठ खड़ा होता है और जैसे ही वह गोली चलाने के लिए बंदूक आगे करता है तुकाराम बंदूक को कस कर पकड़ लेते हैं और इंश्योर करते हैं कि आतंकी भाग ना पाए उनके इस एक्शन से आतंकी गुस्से में 23 गोलियां उनके शरीर में दाग देता है जिस कारण तुकाराम ओंबले वहीं पर शहीद हो जाते हैं 

हालांकि शहीद तुकाराम ओंबले का बलिदान व्यर्थ नहीं जाता जहां एक आतंकी पहले ही मारा जा चुका था तो वही उनकी बहादुरी के कारण दूसरे आतंकी को जिंदा पकड़ लिया जाता है पकड़े गए आतंकी का नाम कसाब था जो बाद में इन्वेस्टिगेशन के लिए बहुत काम आता है लेकिन अभी भी आठ आतंकी बाकी थे जो मुंबई में आतंक मचा रहे होते हैं 

इनके अगले एक्शंस के बारे में जानने से पहले यह जानते हैं कि आखिर ये अटैक्स हुए ही क्यों ये अटैक्स किसने करवाए और कौन इन सभी हमलों का मास्टरमाइंड था 

दरअसल 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद डेमलिन के बाद भारत दंगों की आग में चल रहा था ऐसे में कई इस्लामिक टेररिस्ट ग्रुप भारत पर अटैक करने की फिराक में थे इन अटैक्स का पहला एग्जांपल 12th मार्च 1993 को देखने को मिलता है जब मुंबई में एक के बाद एक पूरे 12 बॉम ब्लास्ट होते हैं जिनमें 257 लोगों की जान चली जाती है और 1000 से ज्यादा लोग घायल हो जाते हैं 

इन अटैक्स की छानबीन के समय पता चलता है कि धमाकों में यूज किया गया आरडी एक मुंबई में समुद्री रास्तों से लाया गया था इस कारण समुद्र की सिक्योरिटी टाइट कर दी जाती है और कोस्टगार्ड के द्वारा मुंबई के कोस्टल एरियाज की लगातार हेलीकॉप्टर और शिप्स के जरिए पेट्रोलिंग की जाती है लेकिन अचानक से 2006 में इस पेट्रोलिंग को नेवी की तरफ से रोक दिया जाता है 

नेवी के इस फैसले के कारण भारत के खिलाफ साजिश कर रहे टेररिस्ट ग्रुप्स को भारत पर अटैक करने का एक अच्छा मौका मिल जाता है भारत को इस बात की भनक भी नहीं थी कि पाकिस्तान में बैठा लश्करए तयबा का लीडर हफीज साहिद भारत पर एक ऐसा अटैग प्लान कर रहा है जो पूरी दुनिया का ध्यान खींच ले इससे पहले भी कई बार हाफिज सईद भारत में कई अटैक्स करवा चुका था लेकिन इस बार बड़े धमाके के लिए उसे कुछ ऐसे लोगों की तलाश थी जो इस काम में उसका साथ दे सके 

इत्तेफाक से ऐसे समय में उसकी मुलाकात दाऊद सायद गिलानी से होती है जो अमेरिका में रहकर ड्रग्स के बिजनेस का काम करता था और इस काम के चलते कई बार जेल भी जा चुका था दाऊद गिलानी के पिता सैद सलीम गिलानी एक पाकिस्तानी डिप्लोमेट थे और मां एलिस सेरिल हेडले अमेरिकन थी इस वजह से अपीयरेंस में दाऊद बिल्कुल किसी फॉरेनर की तरह दिखता था इस खास अपीयरेंस की वजह से ही हाफिज सईद दाऊद का इस्तेमाल किसी खास मकसद के लिए करना चाहता था 

2001 से ही हाफिज सईद लगातार दाऊद गिलानी के टच में रहा और अपना मंसूबा पूरा करने के लिए 2002 में हाफिज सईद दाऊद को दावत के बहाने पाकिस्तान बुलाता है दोनों जब मिलते हैं तो हाफिज दाऊद को अपना प्लान बताता है हालांकि अभी वो क्लियर अपना पूरा प्लान दाऊद के सामने अनफोल्ड नहीं करता पर वो इतना बता देता है कि उसे यह लड़ाई कश्मीर के लिए लड़नी है दाऊद हाफिज सईद से काफी इन्फ्लुएंस होता है और प्लान के लिए राजी हो जाता है दाऊद को ट्रेनिंग के लिए कई बार पाकिस्तान बुलाया जाता है और मल्टीपल मीटिंग्स के बाद उसे लश्करए तयबा के फॉरेन रिक्रूटमेंट विंग में ट्रांसफर कर दिया जाता है 

पूरी ट्रेनिंग के बाद लश्कर तयबा दाऊद को रिवील करता है कि अभी उसकी जरूरत कश्मीर के लिए नहीं बल्कि मुंबई के लिए है लेकिन इसकी तैयारी के लिए सईद दाऊद को पहले यूएस लौटकर अपनी आइडेंटिटी को बदलने के लिए कहता है दाऊद यूएस लौटकर अपनी मदर की आइडेंटिटी को यूज कर दाऊद सायद गिलानी से डेविड कोलमन हेडली बन जाता है यह सब करने में पाकिस्तान की आईएसआई दाऊद की हेल्प करती है अटैक करने से पहले भारत आकर मुंबई की उन सभी लोकेशंस की डिटेल में जानकारी लेना जरूरी था जिसके लिए डेविड हेडली को मुंबई कई बार आना पड़ता इसलिए डेविड हेडली बन चुका दाऊद गिलानी अपने स्कूल फ्रेंड तहर हुसैन राना से कोऑर्डिनेट करता है 

दरअसल तहब राना पहले पाकिस्तान आर्मी में डॉक्टर था लेकिन बाद में एक कैनेडियन लेडी से शादी करके 1997 में कनेडा चला जाता है और वहां काफी लंबे समय से अपनी वीजा कंसल्टेंसी कंपनी चला रहा होता है दाऊद गिलानी तहव्वुर के साथ एक प्लान बनाता है और उसकी वीजा कंसल्टेंसी कंपनी की एक ब्रांच मुंबई में ओपन कर देता है ताकि उसे बार-बार मुंबई आने जाने में कोई परेशानी ना हो प्लान के मुताबिक इस पूरे काम को अंजाम देता है और उसके फॉरेनर लुक और यूएस पासपोर्ट होने की वजह से मुंबई में कोई उस पर शक भी नहीं करता इस तरह वो कई बार मुंबई आता है और समुद्र के रास्ते किन-किन फेमस जगहों पर आकर अटैक किया जा सकता था ऐसी हर एक जगह की जानकारी लश्कर ताबा को देता है 

दूसरी तरफ पाकिस्तान में बैठा हाफिज सईद मिल रही हर इंफॉर्मेशन की मदद से मुंबई पर अटैक करने की प्लानिंग करता रहता है अटैक की प्लानिंग हो जाने के बाद उसे एग्जीक्यूट करने के लिए कुछ लड़कों की जरूरत थी जो मुंबई जाकर इस प्लान को सफल बनाते इसलिए देर ना करते हुए आफिस सईद लड़कों के सिलेक्शन और ट्रेनिंग का काम जकी और रहमान लखवी को सौंप है लखवी इस काम में अपने साथ जरार शाह अबू काफाम आजा को भी शामिल करता है यह लोग ऐसे नौजवान लड़कों की तलाश करते हैं जो घर से भागे हुए हो या जिनकी शादी ना हुई हो ताकि उन लोगों के आगे पीछे कोई ना हो 

और आसानी से मजहब और जिहाद की आड़ में इनका ब्रेन वॉश किया जा सके काफी खोजबीन के बाद 32 लड़कों को सिलेक्ट किया जाता है शुरुआत में सेलेक्ट किए गए सभी लड़कों को बताया जाता है कि उन्हें कश्मीर को आजाद कराने के लिए चुना गया है मजहब के नाम पर उनको भटका जाता है उन्हें कहा जाता है कि अल्लाह ने उन्हें इस पाक काम के लिए खुद चुना है कट्टरता से प्रभावित सभी लड़के प्लान को अंजाम देने के लिए ट्रेनिंग में जी-जान लगा देते हैं

ट्रेनिंग थ्री राउंड्स में डिवाइडेड होती है पहले राउंड की ट्रेनिंग दौरा ए अम्मा दूसरी राउंड की ट्रेनिंग दौरा ए सफा और थर्ड राउंड की ट्रेनिंग दौरा ए खासा के नाम से होती है पूरी ट्रेनिंग के दौरान इनके सामने भारत के मुस्लिम्स की कंडीशन को बहुत बुरी तरह से पेश किया जाता है इनके दिमाग में भारत को लेकर इतना जहर घोला जाता है कि ये चाहकर भी कुछ और सोच ही नहीं पाते और हर हाल में अपने मकसद को अंजाम देने के लिए तैयार हो जाते हैं 

ट्रेनिंग के दौरान सभी लड़कों को कई घंटों तक हथियार चलाना सिखाया जाता है हैंड ग्रेनेड फेंकने और रॉकेट लांचर दागने की भी ट्रेनिंग दी जाती है दो राउंड की ट्रेनिंग तो सभी लड़के जैसे-तैसे कर लेते हैं जिसमें खाने और नमाज पढ़ने के अलावा किसी और काम की छूट नहीं होती लेकिन दौरा एक खासा की ट्रेनिंग के दौरान सभी लड़कों को 60 घंटों तक भूखा रहकर पहाड़ों पर चढ़ने की ट्रेनिंग दी जाती है यह ट्रेनिंग इस कदर सख्त होती है कि कई लड़के इसे बीच में ही छोड़कर भाग जाते हैं तीसरे फेज की ट्रेनिंग के बाद केवल 15 लड़के बचते हैं जिन्हें फिर दौरा ए रिबात नाम की इंटेलिजेंस ट्रेनिंग भी दी जाती है 

इस तरह अगस्त 2008 आते-आते पूरी ट्रेनिंग खत्म होती है इसके बाद मुंबई पर अटैक करने के लिए 10 लड़कों को चुन लिया जाता है सिलेक्शन के बाद इन्हें दो-दो के पांच ग्रुप्स में बांट दिया जाता है सभी को भारत में इस्तेमाल करने के लिए एम्युनेशन सैटेलाइट फोन मैप और कुछ पैसे भी दिए जाते हैं 

27 सितंबर 2008 को मुंबई पर अटैक करने की प्लानिंग फिक्स होती है जिसके लिए ट्रेन किए गए सभी लड़कों को कराची बुलाया जाता है लेकिन लास्ट मोमेंट पर इसे रोक दिया जाता है उसी महीने दिल्ली में लगातार पांच बॉम ब्लास्ट हुए थे जिस वजह से दिल्ली और मुंबई जैसी जगहों पर रेड अलर्ट था और जगह-जगह छापे मार हो रही थी इन सभी खबरों को देखते हुए लश्कर की लीडरशिप इस हमले को कुछ दिन के लिए डिले कर देती है इसके बाद अक्टूबर में एक बार फिर सभी 10 लड़कों को बुलाया जाता है और फिर से ट्रेनिंग के कुछ रिमेनिंग पार्ट्स को पूरा किया जाता है 

इस बार सभी लड़कों को स्विमिंग करने और बोट चलाने की ट्रेनिंग दी जाती है सभी को वीडियो के जरिए टारगेट करने वाली जगहों को बड़ी स्क्रीन पर दिखाया जाता है इसमें टारगेट तक पहुंचने के लिए कौन सी रोड का इस्तेमाल करना है और कैसे इन जगहों पर अटैक करना है ए टू जेड सब बताया जाता है अटैक मुंबई में किया जाना था इसलिए सभी लड़कों को मराठी की भी ट्रेनिंग दी जाती है उन्हें ऐसे कपड़े पहनने को दिए जाते हैं जो उस समय मुंबई के यूथ के बीच ट्रेंड में थे सभी के हाथों में कलावा भी बांध जाता है ताकि ये दिखने में हिंदू लगे इसके बाद फाइनली अटैक करने के लिए सभी लड़कों को 22 नवंबर की सुबह एक छोटे से जहाज में बैठाकर रवाना कर दिया जाता है 

कई घंटों तक समुंदर में चलने के बाद सभी को दूसरी बोट अल हुसैनी में शिफ्ट कर दिया जाता है अल हुसैनी में पहले से ही सभी के लिए दो-दो बैग रखे थे जिनमें अटैक करने के लिए हर तरह के हथियार मौजूद थे अगली सुबह उन्हें एक कुबेर नाम का इंडियन शिप दिखाई देता है

जिसको अमर सिंह सोलंकी चला रहे थे उस शिप में उनके साथ तीन और लोग मौजूद थे यहां पर आतंकी अपना जहाज खराब होने का बहाना बनाकर कुबैर में बैठे लोगों से मदद की गुहार लगाते हैं लेकिन जैसे ही जहाज पास आता है वैसे ही सभी लड़के कुबेर पर मौजूद तीनों लोगों को मारकर कैप्टन अमर सिंह को मुंबई की तरफ जहाज को चलाने के लिए फोर्स करते हैं जैसे ही जहाज मुंबई के नजदीक आता है आतंकी अमर सिंह को भी मार देते हैं और शिप को लेकर 

26 नवंबर की शाम तक मुंबई के किनारे तक पहुंच जाते हैं इसके बाद यह दसों आतंकी मुंबई में किस तरह आतंक मचाते हैं यह तो हम जान ही चुके हैं 

लेकिन इन टेररिस्ट अटैक को रोकने और हॉस्टेस को रेस्क्यू करने के लिए भारत सरकार क्या एक्शन लेती है यह जानने से पहले यह बताते चले कि 26/11 के अटैक से कुछ दिन पहले ही यूएस ने लश्करए तयबा के अल हुसैनी शिप के कोऑर्डिनेट्स भारत सरकार को प्रोवाइड किए थे इसके बावजूद इंडियन अथॉरिटीज ने ना तो कोऑर्डिनेट्स की हेल्प से अल हुसैनी शिप को ट्रैक किया और ना ही कोई एक्शन लिया यहां तक कि नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर एमके नारायणन ने नेवी और कोस्टगार्ड के साथ कार्रवाई के योग्य खुफिया जानक भी साझा की थी 

लेकिन फिर भी समुद्र में ना तो अल हुसैनी शिप को पकड़ा गया और ना ही इन खौफनाक हमलों को अंजाम देने वाले हथियारों से लेस आतंकियों को रोका जा सका जिसका परिणाम आज मुंबई को झेलना पड़ रहा था 

अटैक से पहले इंडियन अथॉरिटीज द्वारा कोई भी एक्शन ना लेने की वजह से मुंबई में पहले से ही काफी तबाही हो चुकी थी इसके अलावा अभी तक मुंबई पुलिस सिर्फ दो आतंकियों को कंट्रोल कर पाई थी अभी भी आठ टेररिस्ट तीन जगहों पर अपना कब्जा जमाए हुए थे दो आतंकी ओ ब्रॉय होटल में तो चार आतंकी ताज होटल में मौजूद थे वही दो आतंकी नरीमन हाउस को अपने कंट्रोल में किए हुए थे कसाब के पकड़े जाने और ताज होटल नरीमन हाउस और ओबराय होटल में हो रहे लगातार धमाकों के बाद आखिरकार महाराष्ट्र गवर्नमेंट फुल्ली एक्टिव होती है 

सबसे पहले महाराष्ट्र गवर्नमेंट सेंट्रल गवर्नमेंट से हेल्प मांगती है न्यू दिल्ली से एनएसजी कमांडोज को तैयार किया जाता है लेकिन एनएसजी को टाइम से एयरक्राफ्ट नहीं मिल पाने की वजह से उन्हें मुंबई आने में समय लगने वाला था इसलिए काउंटर अटैक करने और सिचुएशन को संभालने का जिम्मा मार्कोस को दिया जाता है मार्कोस यानी मरीन कमांडोज को अनजान जगहों पर शानदार ऑपरेशंस के लिए जाना जाता है यह कमांडोज हर तरह के हथियारों को चलाने में फुली ट्रेंड होते हैं इसलिए इस टेरर अटैक को हैंडल करने के लिए मार्कोस को बुलाया जाता है लेकिन काफी लेट इंफॉर्मेशन मिलने की वजह से मार्कोस को अटैक वाली जगहों पर पहुंचने में कई घंटों की देरी हो जाती है मार्कोस 27 नवंबर की रात करीब 2 बजे मुंबई के आईएनएस अभिमन्यु पहुंचते हैं

और वहां से दो टुकड़ियों में बढकर ताज और ओबराय होटल की कमान संभालते हैं मार्कोस का सबसे पहला टास्क होस्टेजेस को सेफली वहां से रेस्क्यू करने का था मार्कोस की एक टीम जो ताज होटल पहुंचती है उन्हें वहां होटल के मैनेजर द्वारा होटल का नक्शा दिया जाता है लेकिन नक्शे से उन्हें कोई खास मदद नहीं मिलती इसके अलावा ना तो उन्हें ताज होटल में मौजूद चार आतंकियों के लोकेशन के बारे में कुछ पता था ना ही होटल में छुपे लोगों के बारे में कोई जानकारी थी 

मार्कोस की दूसरी टीम भी ओय होटल में इन्हीं मुश्किलों से जूझ रही होती है इस सिचुएशन में मार्कोस की दोनों टीम्स के लिए यह काम अंधेरे में तीर चलाने जैसा था हालांकि अपनी जान की बाजी लगाकर मार्कोस ताज और ओबराय होटल में घुसकर आतंकियों की छानबीन करने लगते हैं मार्कोस को तो आतंकियों के लोकेशन का कोई पता नहीं था लेकिन आतंकियों को उनके हर एक कदम की खबर होती है वो 

ऐसे कि मीडिया मार्कोस के हर एक एक्शन को लाइव टेलीकास्ट कर रहा होता है जिस पर पाकिस्तान में बैठे इनके हैंडलर की भी नजर थी जो हर एक खबर फोन के जरिए आतंकियों तक पहुंचा रहा था आतंकियों को मार्कोस की लोकेशन मिलते ही वो उनकी तरफ फायरिंग करना और ग्रेनेड्स फेंकना शुरू कर देते हैं जिसके काउंटर में मार्कोस ने भी ताब तोड़ फायरिंग की आतंकी इस काउंटर अटैक से सरप्राइज थे

क्योंकि अभी तक उनका सामना केवल मुंबई पुलिस से हुआ था जिनके पास साधारण बंदूक थी जिस कारण वह आतंकियों के मॉडर्न वेपंस के आगे कहीं भी टिक नहीं पा रहे थे लेकिन यहां मार्कोस का अटैक इतना जोरदार था कि आतंकी चार कदम पीछे हटने को मजबूर हो गए इसी मौके का फायदा उठाकर मार्कोस ने ताज होटल से 150 और ओबरॉय डेंट होटल से 200 लोगों को सुरक्षित निकाल लिया 

हालांकि दोनों ही जगहों पर अभी भी कई लोग फंसे हुए थे जो किसी भी पल आतंकियों के हमले का शिकार हो सकते थे लेकिन इस दौरान राहत की बात यह होती है कि सुबह के करीब 5:00 बजे आ 76 एयरक्राफ्ट में सवार 200 एनएसजी कमांडोज की एक टीम मुंबई पहुंच चुकी होती है एनएसजी कमांडोज मुंबई पहुंचकर सबसे पहले मुंबई पुलिस और मार्कोस से अटैक रिलेटेड सारी इंफॉर्मेशन गैदर करते हैं और तीन टुकड़ियों में बढकर ताज होटल ओब रॉय होटल और नरीमन हाउस की तरफ रवाना हो जाते हैं 

इस तरह एनएसजी का ऑपरेशन ब्लैक टॉरनेडो शुरू हो जाता है 27 नवंबर की सुबह 6:00 बजे कमांडोज की पहली टीम ओबराय ट्राइडेंट पहुंचती है जिसकी कमान कर्नल बीएस राठी संभाले होते हैं कर्नल राठी के नेतृत्व में लूटने कर्नल आर के शर्मा और मेजर बी भारत अपनी टीम को लेकर ओब्राय होटल में दाखिल होते हैं

लेकिन मार्कोस की तरह एनएसजी कमांडोज को भी आतंकियों और बचे हुए बंधकों की लोकेशन के बारे में कोई जानकारी नहीं थी लेकिन वोह अपने ट्रेनिंग और एक्सपीरियंस का इस्तेमाल करते हुए फ्लोर बाय फ्लोर चढ़ने लगते हैं 19th फ्लोर पर पहुंचते ही आतंकियों की तरफ से फायरिंग शुरू हो जाती है साथ ही ग्रेनेड्स फेंककर आतंकी पूरे फ्लोर पर धुआ धुआ कर देते हैं 

इसी बीच एनएसजी की दूसरी टीम ताज होटल की सिचुएशन को हैंडल कर रही होती है जिसका नेतृत्व कर्नल सुनील शेरन कर रहे होते हैं जिनकी कमांड में मेजर संजय खंडवाल और मेजर संदीप उन्नी कृष्णन भी होते हैं ताज होटल के हालात ओबरॉय होटल से भी ज्यादा भयानक थे यहां चार आतंकी थे जिन्होंने ताज होटल के कई कमरों को आग के हवाले कर दिया था ताज होटल आग की लपटों में जल रहा था और इसी आग और धुए की वजह से कई फ्लोर्स पर कमांडोज का सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है ऐसे में आतंकियों को ढूंढ खत्म करने और होटल में फंसे हुए लोगों को बचाने के लिए एनएसजी को रिग्रुप होना पड़ा 51 स्पेशल एक्शन ग्रुप के 10 कमांडोज की टीम को लीड कर रहे मेजर संदीप उन्नी कृष्णन ने होटल की सेंट्रल स्टेयरकेस के जरिए चढ़कर टेररिस्ट पर अटैक करने का प्लान बनाया

प्लान के मुताबिक जब कमांडो सेंट्रल स्टेयर केस से ऊपर चढ़ने लगे तभी घात लगाए बैठे आतंकियों ने अंधाधुन फायरिंग करना शुरू कर दिया जिससे सात गोलियां कमांडो सुनील कुमार को लगी और वह बुरी तरह घायल हो गए आतंकी उन पर और हमला कर करते इससे पहले ही सुनील को कवर देते हुए संदीप उन्नी कृष्णन और उनकी टीम ने आतंकियों पर काउंटर अटैक कर दिया जब आतंकी थोड़ा पीछे हटे तो संदीप ने टीम से सुनील को जल्द से जल्द फर्स्ट एड देने के लिए कहा 

और अकेले ही सीढ़ियों पर चढ़ गए संदीप ने जाते हुए पीछे मुड़कर अपनी टीम से कहा मेरे पीछे मत आना मैं संभाल लूंगा इतना कहकर वो ऊपर चढ़ गए संदीप और चारों आतंकियों के बीच ताबड़ तोड़ गोलीबारी शुरू हो गई अकेले संदीप उन्नी कृष्णन आतंकियों से ऐसा भिड़े कि चारों आतंकी होटल के नदन एंड के कॉर्नर में छिपने को मजबूर हो गए लेकिन इस मुठभेड़ में संदीप पर भी गोलियों की बौछार हुई थी जिस कारण दुश्मनों को मार गिराने की कोशिश में उन्हें अपने प्राण न्योछावर करने पड़े इसी दौरान 20 एनएसजी कमांडोज की तीसरी टीम 27 नवंबर की शाम करीब 5:30 बजे नरीमन हाउस की लोकेशन पर पहुंच चुकी होती है कमांडोज बिल्डिंग में ग्राउंड फ्लोर में घुसने की बहुत कोशिश करते हैं 

लेकिन वहां मौजूद दोनों आतंकी नीचे से ऊपर जाने के सारे एंट्री पॉइंट्स को हथ गोलों से तबाह कर चुके थे ऐसे में एनएसजी बिल्डिंग में छत के ऊपर से घुसने का प्लान बनाते हैं अगले दिन 28 नवंबर की सुबह 7:30 बजे नरीमन हाउस की छत पर हेलीकॉप्टर से कमांडोज को एयर ड्रॉप किया जाता है इसी बीच मीडिया कमांडोज के हर एक्शन की एक-एक फोटो और वीडियो को लाइव टेलीकास्ट कर रहा था जिससे कमांडोज की हर एक्टिविटी का पाकिस्तान में बैठे हैंडलर्स को टीवी के जरिए पता चल रहा होता है 

हैंडलर्स कमांडोज की हर एक एक्टिविटी की खबर फोन से आतंकियों तक पहुंचा रहे थे नरीमन हाउस में छुपकर बैठे दोनों आतंकियों ने कमांडोज की लाइव अपडेट मिलते ही उन पर ग्रेनेड्स फेंकना और फायरिंग करना शुरू कर दिया जिसका निशाना कमांडो गजेंद्र सिंह बिष्ट बने और वह वही शहीद हो गए ओ ब्रॉय ट्राइडेंट होटल ताज होटल और नरीमन हाउस तीनों ही लोकेशंस पर कमांडोज काफी मुश्किलों का सामना कर रहे होते हैं 

आतंकी चूहे की तरह बिलों में छिपकर बैठे थे और लगातार छिपकर हमला कर रहे थे इसलिए कमांडोज को दुश्मनों से लड़ने के लिए बहादुरी के साथ-साथ समझदारी और चालाकी से भी काम लेना जरूरी था कमांडोज ने समझदारी दिखाते हुए ओब्रॉय होटल में आतंकियों को खत्म करने के लिए कोऑर्डिनेट अटैक करने का प्लान बनाया जिसके चलते 19th फ्लोर के एक कमरे में छिपकर बैठे दोनों आतंकियों पर कमांडोज अंदर से अटैक करते हैं तो वही होटल के सामने एयर इंडिया की बिल्डिंग के 11थ फ्लोर पर स्नाइपर्स को तैनात कर दिया जाता है 

इस तरह आतंकी दोहरे हमले के बीच फंस गए जिस कमरे में आतंकी मौजूद थे उसकी खिड़की पर स्नाइपर्स की तरफ से कई राउंड्स फायर किए जाते हैं जिसमें एक आतंकी फौरन ढेर हो जाता है तो वही कुछ ही देर बाद बचे हुए दूसरे आतंकी को होटल में मौजूद कमांडोज मौत के घाट उतार देते हैं इस तरह 28 नवंबर की दोपहर 3 बजे तक एनएसजी ने ओबरॉय ट्राइडेंट को आतंकियों की गिरफ्त से आजाद करवा लिया लेकिन इसी बीच नरीमन हाउस में गजेंद्र बिष्ट के शहीद होने से कमांडोज बेहद गुस्से में होते हैं अपने साथी की जान का बदला लेने और बिल्डिंग के अंदर फंसे लोगों को बचाने के लिए कमांडोज दोनों आतंकियों को ढूंढकर उन पर हमला करना शुरू कर देते हैं 

मेजर संदीप सेन को एक क्लू मिलता है और व एक कमरे में दो हथ गोले फेंक देते हैं जिसमें मौजूद एक आतंकवादी आग की लपटों में जलकर राख हो जाता है अब दूसरा आतंकी बचा होता है पर उसके पास भी बचने का कोई मौका नहीं होता सभी बचे हुए हॉस्टेस को बाहर निकालकर रेमन हाउस के अंदर कई हथ गोले फेंके जाते हैं जिनकी चपेट में आकर दूसरा आतंकी भी वही मरकर ढेर हो जाता है 

ओब्राय रेडेंट होटल और नरीमन हाउस अब सेफ थे लेकिन ताज होटल में अभी भी कोहराम मचा होता है मेजर संदीप के शहीद होने से निराश कमांडोज को अपने कर्तव्य का पालन करने और मेजर संदीप के हथियारों से बदला लेने के लिए एनएसजी चीफ जे के दत्त कमांडोज में फिर से जोश भर देते हैं 

मेजर खंडवाल और उनके कमांडोज आतंकियों की खोज में होटल के चप्पे-चप्पे को छानने लगते हैं तभी उन्हें ताज होटल के वसाबी रेस्टोरेंट से गोलियों की आवाजें सुनाई देती है कमांडोज ने बिना देर किए कई हथ गोले वसाबी की तरफ फेंक दिए जिससे वसाबी रेस्टोरेंट आग की लपटों में होता है और जान बचाने के लिए आतंकी जैसे ही सीढ़ियों की तरफ भागते हैं तभी कमांडोज चारों आतंकियों को गोलियों से छल्ली कर डालते हैं इस तरह 29 नवंबर की सुबह 8 बजे तक ताज होटल भी स हो जाता है 10 में से नौ आतंकी मारे जा चुके थे और एक आतंकी अजमल कसाब को जिंदा पकड़ा जा चुका था 

26 नवंबर की शाम को शुरू हुआ यह मौत का खेल 29 नवंबर की सुबह खत्म हुआ इस अटैक में 166 बेकसूर लोग मारे गए जबकि 300 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हुए 60 घंटों तक सांस रोक कर बैठी मुंबई आखिरकार राहत की सांस लेती है लेकिन 10 लड़कों का मुंबई में घुसकर ऐसी खौफनाक घटना को अंजाम देना भारत के लिए एक बड़ा इंटेलिजेंस फेलियर था इस घटना ने भारत सरकार को अपनी सुरक्षा को लेकर सोचने के लिए फिर से मजबूर कर दिया 

इस पूरी घटना के बाद भारत समेत पूरी दुनिया में काफी वक्त तक हलचल रही जहां वर्ल्ड मीडिया में इस आतंकी हमले की निंदा हो रही थी तो वहीं महाराष्ट्र में मंत्रियों के इस्तीफे का दौर जारी था महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री विलस राव देशमुख उपमुख्यमंत्री आर पाटिल और देश के गृहमंत्री शिवराज पाटिल अपने पदों से इस्तीफा दे देते हैं इंडियन शेयर मार्केट क्रैश कर चुका होता है मुंबई में फिल्मों की शूटिंग रोक दी जाती है और इंग्लैंड क्रिकेट टीम भारत से ऑन गोइंग टेस्ट मैच छोड़कर वापस इंग्लैंड लौट जाती है 

वहीं भारत की जनता इस हमले के लिए पाकिस्तान से बदला लेने के लिए भारत सरकार से अपील करती है प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पाकिस्तान के खिलाफ एक्शन लेने के लिए भारतीय सेनाओं के अध्यक्षों के साथ लगातार मीटिंग्स करते हैं पहले गुप्त तरीके से पाकिस्तान में घुसकर लश्करए तयबा के सेंटर को तबाह करने का विचार बनाया जाता है 

फिर एयरफोर्स के जरिए हवाई हमलों से पाकिस्तान के आतंकी संगठनों को उड़ाने के बारे में सोचा जाता है लेकिन अंत में कोई भी ऑपरेशन ना करने का फैसला लिया जाता है इस दौरान पाकिस्तान पहले इस अटैक में अपनी इवॉल्वमेंट को लेकर साफ इंकार करता है लेकिन बाद में कई फोन रिकॉर्डिंग्स और पकड़े गए आतंकी अजमल कसाब के बयान से जब साफ होता है कि दसों आतंकवादी लश्करए तयबा के थे 

और हमले के दौरान उन्हें पाकिस्तान में बैठे उनके हैंडलर्स से इंस्ट्रक्शंस मिल रहा था तो भारत सरकार और यूएन के दबाव में पाकिस्तान की तरफ से लश्करए तयबा और जमात उदावा के कुछ लोगों को गिरफ्तार किया जाता है साथ ही अमेरिका भी दाऊद सईद गिलानी और तह हुसैन राना को इस हमले का दोषी मानते हुए अरेस्ट कर जेल में डाल देता है भारत इस आतंकी हमले का बदला तो नहीं लेता लेकिन आतंकवाद पर लगाम कसने के लिए भारत सरकार द्वारा 31 दिसंबर 2008 को नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी को एस्टेब्लिश किया जाता है 

एनआईए को भारत में टेररिस्ट एक्टिविटीज को इन्वेस्टिगेट करने का काम सौंपा जाता है इसके अलावा एनएसजी के सेंटर्स को बढ़ाने का काम भी किया जाता है मुंबई चेन्नई और कोलकाता के साथ-साथ कई जगहों पर एनएसजी के सेंटर्स खोले जाते हैं जिससे कमांडोज बिना किसी देरी के हमले वाली लोकेशन पर पहुंचकर सिचुएशन को संभाल सके इसके अलावा आतंकवादी अजमल कसाब पर कई सालों तक ट्रायल चलता है जिसके चलते पाकिस्तान के लश्करए तयबा और इस अटैक्स को लेकर कई राजों का खुलासा होता है 

ट्रायल के दौरान सैकड़ों बेकसूर की जान लेने वाला आतंकी कसाब अपनी जान की भीख मांगता रहा लेकिन इस अटैक के सरवाइवर हेड कांस्टेबल अरुण जादव की गवाही की बदौलत 2010 में कसाब को फांसी की सजा देने का फैसला होता है और फाइनली 21 नवंबर 2012 को पुणे की जेल में कसाब को फांसी दे दी जाती है उसकी मौत के साथ ही इस हमले के आखिरी आतंकवादी को भी मिट्टी में मिला दिया जाता है

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