इस घाटी के चारों ओर देवदार के लंबे पेड़ों का घना जंगल है। आसपास बहती नदियां हैं और दूर ऊंचाई पर बर्फ से ढकी चोटियां हैं जो इस घाटी को एक ऐसी नायाब जगह बनाती है कि टूरिस्ट खुद ब खुद इस ओर खींचे चले आते हैं। उस दिन भी सैकड़ों लोग कश्मीर की इन सुंदर वादियों में अपनों के साथ समय बिताने आए थे। कोई कई महीनों की सेविंग्स करके अपने परिवार के साथ यहां छुट्टियां मनाने पहुंचा था। कोई अपने बेटे के अच्छे नंबर लाने पर उसे यहां घुमाने लाया था तो कोई अपनी नई-नई शादी के बाद इन हसीन वादियों में हनीमून मनाने आया था। चारों तरफ बस खूबसूरती और खुशहाली थी।
बच्चों की हंसी, कैमरों की क्लिक और लोगों की बातचीत के बीच माहौल में एक सुकून भरी गूंज थी। कोई धरती के स्वर्ग को बस निहारे जा रहा था तो कोई अपनी पत्नी की बाहों में ऐसे खोया हुआ था जैसे वह कुछ पल के लिए अपने सारे गमों को भूलकर बस इस पल में समा जाना चाहता हो। किसी को जरा सा भी अंदाजा नहीं था कि अब से बस कुछ देर में यहां कुछ ऐसा होने वाला है जो इस जन्नत जैसे माहौल को कुछ ही पलों में नर्क बना देगा। जब सब लोग अपनों के साथ इस हसीन मंजर में डूबे हुए थे, तभी देवदार के पेड़ों से पांच से छह लोग निकल कर वहां आ पहुंचते हैं। उनमें से कईयों ने भारतीय सेना और पुलिस की वर्दी पहन रखी थी। लेकिन असल में वह बेरहम आतंकी थे।
हर एक के हाथ में M4 कारबाइंस और AK-47 जैसी खतरनाक राइफल्स थी और उनके पीठ पर लदे भारी बैग, गोलियों, ग्रेनेड और बारूद से भरे हुए थे। वो धीरे-धीरे शिकारियों की तरह इस घाटी में घुस चुके थे। इन टूरिस्ट की हंसी, उनकी मासूमियत, उन आतंकियों को इस कदर चुभ रही थी कि वह जल्दी से जल्दी उन्हें खामोश कर देना चाहते थे। आतंकी सबसे पहले शुभम नाम के आदमी के पास पहुंचते हैं जो अपने परिवार के साथ हंसी खुशी की बातों में डूबे हुए थे। एक आतंकी ने तुरंत लपक कर शुभम पर बंदूक तान दी और चीख कर बोला, बता तू हिंदू है या मुसलमान?
आतंकियों की बंदूक और सवाल से शुभम और उनकी पत्नी दोनों डर से कांपने लगे। जब आतंकी ने दोबारा चिल्लाकर पूछा तो शुभम के कांपते हुए होठों से बस एक शब्द निकला "हिंदू"। इतना सुनते ही आतंकी गुस्से से पागल हो गए और उनकी आंखों में नफरत उबाल मारने लगी। इसके बाद आतंकियों ने अपनी राइफल से अंधाधुन गई गोलियां शुभम पर दाग दी। शुभम के शरीर से खून का फवार छूट पड़ा और वह वही जमीन पर गिर पड़े। अपनी आंखों के सामने अपने पति को जान गवाते देख शुभम की पत्नी रोने चीखने लगी और मदद के लिए पुकार लगाने लगी।
इसके बाद आतंकी पूरी जगह में फैलकर हिंदुओं को निशाना बनाने में जुट गए। एक आतंकी की नजर इंडियन नेवी के लेफ्टिनेंट विनय नरवाल पर पड़ी जो अपनी नई नवेली दुल्हन हिमांशी के साथ थे। उनकी शादी को महज अभी छे दिन ही हुए थे और वह अपनी नई जिंदगी की शुरुआत कश्मीर की इन खूबसूरत फिजाओं में करने आए थे। लेकिन आतंकियों ने एकदम से उनकी खुशगवार जिंदगी को मौत के अंधेरे में धकेल दिया। आतंकी ने विनय के पास आकर उनका नाम और धर्म पूछा। जवाब में हिंदू सुनते ही आतंकी ने उन्हें भी गोली मार दी और आगे बढ़ गया। पीछे रह गई बस विनय की पत्नी हिमांशी जो रोती हुई आंखों से अपनी जीवन साथी की लाश के पास बैठी उन्हें देख रही थी जो अब कभी लौट कर नहीं आने वाले थे।
दो-4 मिनट की गोलियों की गड़गड़ाहट से ही पूरी घाटी कांप उठी थी। चारों दिशाओं में बारूदी गंध फैल चुकी थी। गोलियों की आवाज सुनकर बच्चे चीख रहे थे। औरतें बिलख रही थी और मर्द अपनी और अपनों की जान बचाने की कोशिश में लगे हुए थे। कुछ लोग जान बचाने के लिए पेड़ों के पीछे छिप गए तो कुछ लोग लगातार मदद के लिए चिल्ला रहे थे। लेकिन अफसोस उनकी जान बचाने वाला आज कोई नहीं था। अमेरिका में काम करने वाले कोलकाता के ब्रिटान अधिकारी कुछ दिनों की छुट्टी के लिए अपनी पत्नी सोहिनी अधिकारी और अपने 3 साल के बेटे के साथ कश्मीर घूमने आए थे। उनके बेटे को जब गोलियों की तड़तड़ाहट सुनाई दी तो वह मासूम बच्चा अचानक डर के मारे चिल्ला उठा। मम्मा साउंड फायर। उस मासूम की आंखों में ऐसा डर था कि वह समझ ही नहीं पा रहा था कि यह क्या और क्यों हो रहा है।
बिटान ने बिना एक पल गवाए बेटे का हाथ कसकर पकड़ लिया और दौड़ने लगे। उनके साथ उनकी पत्नी सोहिनी भी थी जो अपने परिवार को किसी तरह मौत के मुंह से खींच ले जाना चाहती थी। लेकिन उसी पल आतंकियों ने उन्हें घेर लिया। जैसे ही आतंकियों को पता चला कि बिटान हिंदू है उन्हें उनकी पत्नी और बेटे के सामने ही गोलियों से भून दिया गया। चारों ओर भगदड़ मच चुकी थी। कुछ लोग गिरते पड़ते भागने की कोशिश कर रहे थे तो कुछ लोग डर के मारे जमीन पर ही लेट गए। जैसे मिट्टी से चिपक जाने से मौत टल जाएगी। तभी एक आतंकी खून से सना चेहरा और आंखों में वैशीपन लिए लोगों के सामने आया और जोर से चिल्लाया कि "सारे हिंदू एक तरफ हो जाओ और मुसलमान एक तरफ" सभी लोग सन्न रह गए।
कोई अपनी जगह से हिल भी नहीं पाया। इसके बाद उन आतंकियों ने एक-एक कर लोगों से उनका धर्म पूछना शुरू किया। क्या तुम हिंदू हो? जिसने भी हां कहा अगले ही पल आतंकियों ने उसे गोलियों से भून डाला। कुछ ही मिनटों में कई लोग मारे जा चुके थे। उन सभी की सिर्फ इतनी गलती थी कि वो हिंदू थे। मन ही मन वहां मौजूद सभी लोगों में खौफ था। किसी को नहीं पता था कि अगले पल कौन मौत के निशाने पर होगा। इसके बाद आतंकियों ने नाम पूछने के बजाय उनसे कलमा पढ़वाना शुरू कर दिया। जो लोग इसे पढ़ नहीं पाए, अगले ही पल उनकी जान ले ली। इन मासूम लोगों की भीड़ में सुशील नथानियल का परिवार भी मौजूद था।
एक आतंकी सुशील के पास आया और दहाड़ते हुए बोला, "चल, घुटनों पर बैठ और कलमा पढ़।" सुशील ने कांपते हुए जवाब दिया, "मैं ईसाई हूं। मुझे कलमा पढ़ना नहीं आता।" बस यह सुनना था कि आतंकी ने झट से अपनी बंदूक सुशील की ओर घुमा दी और उनकी जान ले ली। दूसरी ओर पल्लवी के पति मंजूनाथ को भी आतंकियों ने धर्म के नाम पर मौत दे दी। पल्लवी अपनी आंखों के सामने अपने पति को जान गवाते देख रो पड़ी और फफते हुए आतंकियों से कहा कि मुझे भी मार दो। मैं अब जीकर क्या करूंगी? इस पर एक बहशी आतंकी जोर से हंस पड़ा और बोला जा तुझे नहीं मारते मोदी को जाकर बता देना।
20 के करीब लोग मारे जा चुके थे। लेकिन आतंक का यह सिलसिला आज बैसरन घाटी में रुकने का नाम नहीं ले रहा था। इसके बाद आतंकियों ने सभी मर्दों को लाइन में खड़ा किया और एक-एक कर उनकी पेंट उतरवा कर उनका प्राइवेट पार्ट चेक करने लगे। यह बेरहम आतंकी इस तरह कंफर्म करना चाहते थे कि उनका खतना हुआ है या नहीं। जिस किसी का भी खतना नहीं दिखा आतंकियों ने तुरंत उन्हें गोली मारकर उनकी जान ले ली। उस वक्त घाटी में सिर्फ और सिर्फ खौफ और आतंक का मंजर था। बच्चों के रोने की आवाज थी। महिलाओं की चीखें थी। जमीन पर पड़ी लाशों से रिश्ता खून था और हवाओं में तैरता आतंकियों का धर्म से जुड़ा सवाल था। जो हर अगले पल किसी ना किसी को निगलने के लिए तैयार था।
इसी बीच आतंकियों की नजर घोड़ा लिए आदिल हुसैन पर पड़ी जो एक हिंदू टूरिस्ट को अपने घोड़े पर बिठाकर बैसरन घाटी की ओर आ रहा था। आतंकी सिर्फ गैर मुसलमानों का खून बहाना चाहते थे इसलिए उन्होंने आदिल को नजरअंदाज कर उसके घोड़े पर बैठे टूरिस्ट पर निशाना साध दिया। पर इससे पहले कि कोई गोली चलती आदिल अपनी जान की परवाह किए बिना टूरिस्ट को बचाने के लिए अकेले ही आतंकियों से भिड़ गया। उसने एक आतंकी से राइफल छीनने की कोशिश की। मगर अकेले आदिल की ताकत आतंकियों के सामने टिक नहीं पाई और कुछ ही पलों में गोलियों की बौछार ने उसे भी मौत की नींद सुला दिया। आदिल चाहता तो बीच में ना आकर अपनी जान बचा सकता था। लेकिन वो एक मिसाल बना कि धर्म के नाम पर हिंसा करने वालों की भीड़ में अगर एक इंसान भी ऐसा है जो धर्म से ऊपर इंसानियत को रखता है तो शायद यह दुनिया जीने लायक बची रहेगी। लेकिन उन हैवान आतंकियों के सर पर जैसे एक अजीब तरह की सनक सवार थी।
उन्होंने अपने शरीर पर कैमरे लगा रखे थे जिनसे वह इस पूरी घटना की रिकॉर्डिंग कर रहे थे ताकि हिंदुओं की चीख पुकार से भरी रिकॉर्डिंग दिखाकर वह अपने आकाओं से शाबाशियां बटोर सके। उन आतंकियों को जब वहां कोई और गैर मुस्लिम मर्द नहीं दिखा तो वह पहले से ही मर चुके लोगों पर फिर से गोलियों की बौछार करने लगे और मरे हुए लोगों के लहूलुहान जिस्मों के साथ बहशी दरिंदे की तरह हंसते हुए सेल्फियां लेने लगे। उन्होंने पूरे 300 राउंड फायरिंग की थी। हैरानी की बात यह थी कि उन आतंकियों ने एक भी महिला को नहीं मारा था क्योंकि उनके लिए यह औरतें उस घटना का सिर्फ गवाह नहीं थी बल्कि उनकी दरिंदगी का जीता जागता सबूत थी जिन्हें उन्होंने सिर्फ इसलिए छोड़ा था ताकि यह जिंदा लाशें जाकर उस नरसंहार की खबर देश और सरकार तक पहुंचा सके। इस आतंकी हमले में 26 निर्दोष लोगों की जान चली गई। जबकि करीब 20 लोग बुरी तरह से घायल हुए। यह जम्मू कश्मीर के इतिहास का वन ऑफ द डेडलीस्ट टेरर अटैक था। जिसमें धर्म पूछकर लोगों को यो खुलेआम मारा गया था। एक साथ 26 लोगों की हत्या करने के बाद आतंकी देवदार के पेड़ों से घिरे जंगल में घुस गए और बेफिक्र होकर वहां से तेजी से भाग निकले।
मृतकों के परिवार फूट-फूट कर रो रहे थे और जो 20 लोग घायल थे वह भी काफी देर तक वही दर्द के मारे तड़पते रहे। सबसे हैरानी की बात यह थी कि वहां सुरक्षा बलों का कोई नामोनिशान नहीं था। कोई नहीं था जो उन लोगों को बचाता। उनकी आंखों में साफ दिख रही मौत के साए को दूर कर उन्हें जिंदगी की उम्मीद देता। ना कोई सुरक्षाकर्मी था और ना ही कोई मेडिकल हेल्प। बेसरन घाटी काफी ऊंचाई पर है इसलिए यहां तक वाहन नहीं लाए जा सकते। यहां पैदल या फिर घोड़े और खच्चर पर सवार होकर आया जा सकता है। ऐसे में दर्द से चीखते लोगों को देख जहां कई लोकल लोग हाथ पर हाथ रखे सब कुछ चुपचाप देखते रहे तो वहीं कुछ लोकल कश्मीरी लोग हिम्मत करके मदद के लिए आगे आए। किसी ने किसी बच्चे को पीठ पर बिठाकर नीचे पहुंचाया तो किसी ने अपने घोड़े पर बिठाकर घायलों की मदद करनी शुरू की। इतना बड़ा हमला हो जाने के काफी देर बाद भी सीआरपीएफ, जम्मू एंड कश्मीर पुलिस और आर्मी तक इसकी इंफॉर्मेशन नहीं पहुंच पाई थी। सहयोग से उस समय सीआरपीएफ बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर राजेश कुमार किसी काम से बेसरन घाटी से गुजर रहे थे। तभी उन्हें घाटी से उतरते लोगों की हड़बड़ाहट और रोने की पुकार सुनाई दी।
उन्होंने एक घोड़े वाले को रोक कर पूछा कि यहां कुछ हुआ है क्या? उस घोड़े वाले ने बताया कि साहब बेसरन में गोलियां चली है और काफी लोगों की जान चली गई है और कई लोग घायल पड़े हुए हैं। इतना सुनते ही राजेश कुमार सारा मामला समझ गए और बिना कोई देरी किए पास के सीआरपीएफ कैंप को इन्फॉर्म करके जल्द से जल्द क्विक एक्शन टीम को बैसरन घाटी पहुंचने को कहा और खुद घटना स्थल की ओर निकल पड़े। आतंकी हमले की सूचना मिलते ही सीआरपीएफ तुरंत एक्शन में आ गई। 25 कमांडो की एक क्विक एक्शन टीम को तैयार करके बैसरन घाटी रवाना कर दिया गया। सीआरपीएफ का यह कैंप बैसरन घाटी से करीब 7 कि.मी. की दूरी पर था और रास्ता भी काफी पहाड़ी था। इसलिए क्विक एक्शन टीम को घटना स्थल तक पहुंचने में 40 मिनट लग गए। क्विक एक्शन टीम ने वहां पहुंचते ही सबसे पहले यह अश्योर किया कि वहां पर कोई आतंकी तो नहीं छिपा हुआ है।
वहां उन्हें आतंकी तो नहीं पर डर के मारे छिपे हुए लोग जरूर दिखाई दिए। जिनकी आंखों में अब भी मौत का खौफ था। इन्हीं में से तीन लोगों का गोली लगने से काफी खून बह चुका था और उन्हें जल्द से जल्द मेडिकल एड की नीड थी। उन तीनों को हेलीकॉप्टर से अनंतनाग के डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के लिए रवाना किया गया लेकिन दुर्भाग्य से ज्यादा खून बहने की वजह से उन तीन में से एक घायल आदमी ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया। बाकी के उन दो घायलों को सुरक्षित हॉस्पिटल पहुंचा दिया गया। उनके अलावा और भी जो लोग घायल हुए थे उन्हें भी नियर बाय मेडिकल सेंटर्स पहुंचाया गया। कुछ ही देर में आर्मी और जम्मू एंड कश्मीर पुलिस की टीम घटना स्थल पर पहुंच गई और उन्होंने मिलकर एक बड़ा रेस्क्यू मिशन चलाया। हालांकि अब तक टूरिस्ट में इस कदर खौफ बैठ चुका था कि जब सीआरपीएफ के जवान उनकी मदद के लिए वहां पहुंचे तो कई लोगों ने उन्हें आतंकवादी समझा क्योंकि आतंकी भी सेना और पुलिस की वर्दी पहन कर आए थे।
एक महिला तो रोकर सीआरपीएफ के जवानों के आगे गिड़गिड़ाने लगी। प्लीज मेरे बच्चे को मत मारना। मैंने पहले ही अपने पति को खो दिया है। उस महिला का यह खौफ देखते ही सीआरपीएफ के जवानों के रोंगटे खड़े हो गए। उन्होंने तुरंत सभी को शांत किया और बताया कि वह भारत के जवान हैं और उनकी रक्षा के लिए आए हैं। भले ही इंडियन फोर्सेस बाद में घटना स्थल पर पहुंची और घायलों को रेस्क्यू किया लेकिन इस हमले में हुई 26 निर्दोष लोगों की मौत ने भारत की सुरक्षा व्यवस्था पर गहरे प्रश्न चिन्ह खड़े कर दिए थे। वहां सुरक्षा बल का ना होना अथॉरिटीज की लापरवाही को दर्शाता है। सबसे हैरानी की बात यह है कि पहलगांव में हुए आतंकी हमले से पहले इंटेलिजेंस ब्यूरो को 4 अप्रैल 2025 को एक इंटेल मिला था कि पाकिस्तान के एक आतंकी संगठन ने अपने लोकल गुर्गों को हमले के लिए पहलगाम के होटलों की रेकी करने का निर्देश दिया था।
यह जानकारी सब्सिडरी मल्टी एजेंसी सेंटर एसएमएस सीए के जरिए साझा भी की गई थी। लेकिन इसके बावजूद मौके पर एक भी सुरक्षाकर्मी मौजूद नहीं था। हालांकि बाद में भारत सरकार ने इस पर सफाई देते हुए कहा कि लोकल अथॉरिटीज ने सिक्योरिटी एजेंसीज को इनफॉर्म किए बिना समय से पहले ही बेसरन वैली को खोल दिया था। जबकि हर साल इस घाटी को जून में अमरनाथ यात्रा के वक्त खोला जाता था। सरकार की सफाई पर भी गहरा सवाल था कि जब बेसरन वैली के खुलने के बारे में मैगी और चाय बेचने वालों को पता था। उन हजारों टूरिस्ट को मालूम था जो यहां घूमने आए थे। तो सरकार, सिक्योरिटी फोर्सेस और इंटेलिजेंस एजेंसी से आखिर यह जानकारी कैसे छुपी रह गई? इसके अलावा यह कितनी विडंबना की बात है कि कैसे आतंकी इतनी ज्यादा वेपनरी के साथ बड़ी आसानी से कश्मीर में घुसकर अटैक करते हैं और बिना पकड़ाए भाग भी जाते हैं। आतंकियों ने इस पहलगाम हमले को अंजाम देने से पहले कई दिनों तक रेकी की थी। लेकिन फिर भी सिक्योरिटी फोर्सेस को इस प्लानिंग की कानों कान खबर तक नहीं लगी और उनके सूत्रों का नेटवर्क धाराशाही हो गया।
जम्मू कश्मीर में यह कोई पहला आतंकी हमला नहीं है। इससे पहले चाहे 2016 का उरी अटैक हो या बारामुल्ला अटैक। 2019 का पुलवामा अटैक हो या फिर 2024 का रियासी अटैक। हमारी सिक्योरिटी फोर्सेस को घटना होने के बाद अपनी चूक का पता चल पाता है। आखिर बार-बार ऐसी लापरवाही कैसे हो जाती है? क्यों हमारी इंटेलिजेंस एजेंसीज और सिक्योरिटी फोर्सेस एक दूसरे से कोऑर्डिनेट करके किसी भी आतंकी हमले को होने से पहले ही नहीं रोक पाती है? देश में चाहे किसी भी पार्टी की सरकार हो आतंकी हर बार अपने मंसूबों में कामयाब रहे हैं। 2001 का पार्लियामेंट अटैक हो या 2002 का अक्षरधाम हमला, 2005 का दिल्ली सीरियल ब्लास्ट हो या 2006 का मुंबई ट्रेन ब्लास्ट, 26-11 मुंबई अटैक हो या फिर 2016 का पठानकोट एयरबेस अटैक। आतंकियों ने हर बार देश को नुकसान पहुंचाया है और हमारी सिक्योरिटी फोर्सेस और इंटेलिजेंस एजेंसीज इन्हें रोकने में नाकाम रही है।
जैसे ही पहलगाम में हुए इस आतंकी हमले की खबर मीडिया में आई पूरा देश सन्न्य रह गया। इस हमले में जिन पत्नियों ने अपने पति और जिन बच्चों ने अपने पिता को अपनी आंखों के सामने आतंकियों के हाथों मरते देखा था जब उनके मुंह से देश के लोगों ने उस भयानक हमले के बारे में सुना तो सभी के रोंगटे खड़े हो गए। सभी भारतीयों की आंखों में आंसू थे और दिल में गुस्सा। हर कोई इसका बदला चाहता था। भारत सरकार भी हमले के बाद एक्शन में आ गई। होम मिनिस्टर अमित शाह ने खबर मिलते ही पहलगाम का दौरा किया। जब उन्होंने वहां मृतकों के परिवार वालों की रोती हुई आंखें और चीखती हुई न्याय की पुकार सुनी तो उन्होंने उन्हें भरोसा दिलाया कि इस हमले के जिम्मेदार लोग जल्द ही अपनी कब्र में होंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो पहलगांव में हुए हमले के वक्त सऊदी अरेबिया में थे, वह फ़ौरन अपने दौरे को बीच में ही रद्द करके भारत लौटे, और अगले दिन 23 अप्रैल को कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी सीसीएस की इमरजेंसी मीटिंग बुलाई। सीसीएस की यह बैठक 2 घंटे से भी ज्यादा चली और इसमें पाकिस्तान को करारा जवाब देने के लिए गंभीर चर्चा हुई। इस आतंकी हमले की जिम्मेदारी द रेजिस्टेंस फ्रंट यानी टीआरएफ ने ली थी। जो पाकिस्तान के आतंकी संगठन लश्कर ए ताइबा का ही एक शैडो ग्रुप है। लेकिन असल में टीआरएफ या लश्कर ए ताइवा तो बस मोहरा थे। इस आतंकी हमले की जड़े इतनी गहरी है कि यह जड़े पाकिस्तान की इंटेलिजेंस एजेंसी आईएसआई पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल असीम मुनीर और पाकिस्तान की शहबाज शरीफ की सरकार तक पहुंचती है। दरअसल पाकिस्तान अभी एक बहुत बुरे दौर से गुजर रहा है। वहां की सरकार पहले से ही लड़खड़ा कर चल रही है।
वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान के अलग-अलग राज्यों में भयंकर अस्थिरता का माहौल है। पता नहीं आने वाले वक्त में पाकिस्तान का कौन सा हिस्सा अलग होकर नया देश बन जाए। सबसे बुरा हाल बलूचिस्तान का है जिसे पाकिस्तान से आजाद करने के लिए बलोचिस्तान लिबरेशन आर्मी यानी बीएलए ने पाकिस्तान सरकार की नाक में दम कर रखा है। इसके अलावा पाकिस्तान की इकॉनमी चरमराने की कगार पर खड़ी है और उसे विदेशी कर्जे पर गुजारा करना पड़ रहा है। ऐसे में पाकिस्तान ने अपनी समस्याओं को हल करने के बजाय भारत में अशांति फैलाने पर ज्यादा ध्यान दिया ताकि इससे ना केवल पाकिस्तान की जनता का ध्यान जरूरी मुद्दों से हटाया जा सके बल्कि जम्मू कश्मीर में आतंकवादी हमला करके भारत की एकता खुशहाली और तरक्की पर भी चोट की जा सके। आर्टिकल 370 के हटने के बाद पिछले दो-तीन सालों में जम्मू और कश्मीर में टूरिज्म बढ़ने लगा था।
जिससे वहां के लोगों को रोजगार मिल रहा था। यही सुख शांति पाकिस्तान से देखी नहीं जा रही थी। वो जिन कश्मीरी नौजवानों को बहला फुसलाकर भारत के खिलाफ करता था, भारतीय सेना पर पथराव करवाता था, उसे वहां के नौजवानों के रोजगार मिलते ही चिंता सताने लगी। उसे लगने लगा कि अब उसके आतंकी मंसूबों का क्या होगा? पाकिस्तान फिर से जम्मू कश्मीर में नफरत और हिंसा चाहता था। लोगों को मजहब के नाम पर भड़काना चाहता था। इसलिए उसने टीआरएफ और लश्कर ताइवा के जरिए पहलगाम टेरर अटैक की घिनौनी साजिश को अंजाम दिया। लोगों को उनका धर्म पूछकर मारा गया ताकि दोनों धर्मों के लोग भारत में एक दूसरे के खिलाफ हो जाए। हिंदू मुस्लिमों को सवालों के कटघरे में खड़ा कर दे और मुस्लिमों के अंदर हिंदुओं के लिए नफरत का जहर घुल जाए। पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल असीम मुनीर ने हमले से कुछ दिन पहले ही पाकिस्तान के उच्च अधिकारियों और सरकार के लोगों के सामने अपनी स्पीच में ऐसा ही एक कम्युनल बयान भी दिया था। जिसमें उसने बड़ी शान से कहा था कि पाकिस्तान की कहानी अपने बच्चों को जरूर सुनाएं। हम हिंदुओं से अलग हैं। हम एक नहीं है।
इसी बुनियाद पर ही पाकिस्तान का निर्माण हुआ था। और पाकिस्तान की आने वाली सभी पीढ़ियों को यह बात सिखाई जानी चाहिए। जिस देश का आर्मी चीफ ऐसी नफरती सोच रखता हो वह देश आतंक के अलावा दुनिया को और क्या ही दे सकता है? इसी वजह से भारत सरकार इस बार पाकिस्तान पर ऐसा शिकंजा कसने का मन बनाती है जो उसकी कमर तोड़ कर रख दे। सीसीएस की बैठक में भारत सरकार द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ ऐसे सख्त फैसले लिए गए जो इससे पहले कभी नहीं लिए गए थे। भारत ने सबसे पहले पाकिस्तान पर वाटर स्ट्राइक करते हुए 1960 की इंडस वाटर ट्रीटी को सस्पेंड कर दिया। यह कितना बड़ा फैसला है? इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि इससे पहले पाकिस्तान की तरफ से कई आतंकी हमले किए जा चुके हैं और दोनों देशों के बीच 1965, 1971 और 1999 जैसे युद्ध हो चुके हैं। लेकिन फिर भी भारत ने कभी इंडस वाटर ट्रीटी को सस्पेंड नहीं किया था। ये पहली बार है जब ऐसा हुआ है।
इसका पाकिस्तान पर कितना बुरा असर पड़ेगा इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान की 80% खेती के योग्य जमीन सिंधु और उसकी सहायक नदियों के पानी पर निर्भर है। इस पानी का 90% से ज्यादा हिस्सा सिंचाई में इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे में पाकिस्तान में लाइफलाइन कही जाने वाली सिंधु और सहायक नदियों के पानी को भारत द्वारा रोकने से पाकिस्तान और उसकी इकॉनोमी पर इसका सीधा असर पड़ेगा जो पहले से ही रेंग रही है। इंडस वाटर ट्रीटी के तहत पहले भारत पाकिस्तान को नदियों के पानी के बहाव और उससे जुड़ी अन्य जानकारियां शेयर करता था। लेकिन अब भारत ना केवल नदियों का पानी रोक सकता है बल्कि बिना कोई अलर्ट दिए सभी नदियों का पानी एक साथ छोड़ भी सकता है। इस तरह पाकिस्तान को कभी सूखे का सामना करना पड़ सकता है तो कभी वहां बाढ़ जैसी सिचुएशन बन सकती है। इसके बाद भारत सरकार ने अटारी चेक पोस्ट को बंद करने का दूसरा बड़ा फैसला लिया।
पाकिस्तान में इसी पोस्ट से सोयाबीन, मुर्गे का दाना, सब्जियां, प्लास्टिक दाने और लाल मिर्च समेत अन्य सामान भेजा जाता है। इसके बंद होने से पाकिस्तान को हजारों करोड़ का नुकसान हो सकता है। तीसरा फैसला सार्क वीजा एक्सेंपशन स्कीम, एसवीईएस वीजास को रद्द करने का लिया गया। चौथे फैसले के तहत भारत में मौजूद हर पाकिस्तानी नागरिक को अगले 48 घंटे के भीतर देश छोड़कर वापस जाने का आदेश दिया गया और पाकिस्तानी नागरिक अब भारत का दौरा नहीं कर पाएंगे। इसका सबसे बड़ा झटका उन पाकिस्तानी मरीजों को लगा जो अच्छे और सस्ते इलाज के लिए इंडिया के हॉस्पिटल में इलाज करवा रहे थे। इन फैसलों से उन महिलाओं को भी झटका लगा जिन्होंने शादी पाकिस्तान में की थी। लेकिन वो अपने बच्चों के साथ भारत में रह रही थी। इसके बाद पांचवें फैसले के तहत नई दिल्ली स्थित पाकिस्तान हाई कमीशन में तैनात पाकिस्तान डिफेंस एडवाइज़र्स को एक हफ्ते के अंदर भारत छोड़ने के निर्देश दे दिए गए।
हाई कमीशन में पाकिस्तानी स्टाफ की संख्या भी घटाकर 55 से 30 कर दी गई। इसके अलावा सरकार ने बाद में पाकिस्तान के न्यूज़ चैनल्स, क्रिकेटर्स और इन्फ्लुएंसर्स के YouTube और X अकाउंट्स भी इंडिया में बैन किए, जो इंडियन ऑडियंसेस से व्यूज बटोर कर पैसे कमाते थे। भारत सरकार के इन सभी कड़े फैसलों से साफ झलकता है कि भारत इस बार पाकिस्तान के आतंकवाद पर जरा भी ढील नहीं बरतने वाला है। सीसीएस की बैठक में सख्त फैसले लेने के बाद अगले दिन पीएम नरेंद्र मोदी ने बिहार में एक जनसभा को संबोधित करते हुए पाकिस्तान को कड़ा संदेश देते हुए कहा,
उन आतंकियों को और इस हमले की साजिश रचने वालों को उनकी कल्पना से भी बड़ी सजा मिलेगी। सजा मिलकर के रहेगी। अब आतंकियों की बची खुची जमीन को भी मिट्टी में मिलाने का समय आ गया है। इसके बाद एनआईए ने इस हमले की जांच शुरू कर दी जो अभी तक जारी है। साथ ही इस हमले को अंजाम देने वाले आतंकियों को ढूंढने के लिए इंडियन डिफेंस फोर्सेस ने सर्च ऑपरेशन शुरू कर दिया। तीन आतंकियों के पोस्टर भी जारी कर दिए गए और जिन लोकल लोगों ने उन आतंकियों को पनाह दी थी उन पर भी शिकंजा कसा जाने लगा। लश्कर ताइबा के कई ओवर ग्राउंड वर्कर्स को गिरफ्तार किया गया। सैकड़ों लोकल लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ की जाने लगी और ऑपरेशन के दौरान आसिफ शेख और आदिल ठोकेर जैसे कई आतंकियों के घरों को एक्सप्लोसिव से तबाह कर दिया गया।
सुरक्षा बलों और आतंकियों के बीच मुठभेड़ भी हुई जिसमें सिक्स पैराएसएफ के हवलदार झंटू अली शेख शहीद हो गए। इस बीच जम्मू कश्मीर में सक्रिय 14 लोकल आतंकियों की सूची जारी की गई जिन्होंने पाकिस्तानी दहशतगर्दों को लॉजिस्टिक्स और जमीनी सहायता के अलावा सुरक्षित पनाह भी मुहैया कराई थी।
इनमें "तीन हिजबुल मुजाहिद्दीन, आठ लश्कर और तीन जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े हैं"। भारत की इस कड़ी प्रतिक्रिया को देख पाकिस्तान और उसके आतंकियों पर ऐसा असर हुआ कि जिस आतंकी संगठन टीआरएफ ने पहले इस हमले की जिम्मेदारी ली थी, वह भी भारत की कार्यवाही से घबराकर अपने बयान से पलट गया। TRF ने अपनी बात से पलटते हुए कहा कि उसका अकाउंट हैक हो गया था और उसका इस हमले से कोई लेना देना नहीं है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भारत की सख्ती से घबराकर भारत सरकार से अपील की कि पाकिस्तान की सरकार न्यूट्रल रहकर इस हमले की जांच में भारत की मदद करने के लिए तैयार है।
लेकिन भारत ने 2016 जैसी गलती इस बार नहीं की। 2016 में जब पठानकोट एयरबेस अटैक हुआ था, तब दोनों देशों के बीच यह तय हुआ था कि दोनों देशों की इन्वेस्टिगेशन टीम एक दूसरे के देशों में आकर इस हमले की जांच करेंगी। भारत सरकार ने पाकिस्तान की इन्वेस्टिगेशन टीम को जांच के लिए भारत आने दिया था। लेकिन पाकिस्तान ने भारत की इन्वेस्टिगेशन टीम को पाकिस्तान आने की इजाजत नहीं दी थी और पठानकोट अटैक को फॉल्स फ्लैग बताकर हमले के लिए भारत को ही जिम्मेदार ठहरा दिया था।
उन आतंकियों को और इस हमले की साजिश रचने वालों को उनकी कल्पना से भी बड़ी सजा मिलेगी। सजा मिलकर के रहेगी। अब आतंकियों की बची खुची जमीन को भी मिट्टी में मिलाने का समय आ गया है। इसके बाद एनआईए ने इस हमले की जांच शुरू कर दी। साथ ही इस हमले को अंजाम देने वाले आतंकियों को ढूंढने के लिए इंडियन डिफेंस फोर्सेस ने सर्च ऑपरेशन शुरू कर दिया। तीन आतंकियों के पोस्टर भी जारी कर दिए गए और जिन लोकल लोगों ने उन आतंकियों को पनाह दी थी उन पर भी शिकंजा कसा जाने लगा।
लश्कर ताइबा के कई ओवर ग्राउंड वर्कर्स को गिरफ्तार किया गया। सैकड़ों लोकल लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ की जाने लगी और ऑपरेशन के दौरान आसिफ शेख और आदिल ठोकेर जैसे कई आतंकियों के घरों को एक्सप्लोसिव से तबाह कर दिया गया। सुरक्षा बलों और आतंकियों के बीच मुठभेड़ भी हुई जिसमें सिक्स पैराएसएफ के हवलदार झंटू अली शेख शहीद हो गए।
इस बीच जम्मू कश्मीर में सक्रिय 14 लोकल आतंकियों की सूची जारी की गई जिन्होंने पाकिस्तानी दहशतगर्दों को लॉजिस्टिक्स और जमीनी सहायता के अलावा सुरक्षित पनाह भी मुहैया कराई थी। इनमें तीन हिजबुल मुजाहिद्दीन, आठ लश्कर और तीन जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े हैं। भारत की इस कड़ी प्रतिक्रिया को देख पाकिस्तान और उसके आतंकियों पर ऐसा असर हुआ कि जिस आतंकी संगठन टीआरएफ ने पहले इस हमले की जिम्मेदारी ली थी, वह भी भारत की कार्यवाही से घबराकर अपने बयान से पलट गया।
जब पाकिस्तान ने देखा कि भारत अब अपनी कार्रवाही से पीछे नहीं हटेगा तो उसने भी बौखला कर शिमला एग्रीमेंट रद्द कर दिया और अपना एयर स्पेस इंडियन प्लेेंस के लिए बंद कर दिया। भारत की तरफ से की गई 2016 की उरी सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 की बालाकोट एयर स्ट्राइक का पाकिस्तान की सेना में ऐसा डर है कि पहलगाम हमले के बाद से पाकिस्तान की सेना लगातार एलओसी पर फायरिंग कर सीज फायर का वायलेशन कर रही है। उसे डर है कि कहीं इंडियन कमांडोस पिछली बार की तरह इस बार भी उसकी पनाह में बैठे आतंकियों और उनके कैंपों को ढेर ना कर दे।
पाकिस्तान का यह खौफ तब और बढ़ गया जब पीएम नरेंद्र मोदी ने 29 अप्रैल को देश के हायर डिफेंस ऑफिसर्स के साथ एक बैठक की जिसमें उन्होंने साफ कहा कि देश से आतंक को खत्म करने के लिए हमारी सेना कोई भी एक्शन लेने के लिए पूरी स्वतंत्र है। जवाब कब और कैसे देना है यह तय करने के लिए सेना को खुली छूट है। जहां अमेरिका, ब्रिटेन, इटली, फ्रांस और सऊदी अरब जैसे दर्जनों देशों ने पाकिस्तान के आतंकवाद की निंदा करते हुए खुद को भारत के साथ बताया तो वहीं चाइना पाकिस्तान को अपना समर्थन दे चुका है।
पाकिस्तान के अलावा अगर कोई ऐसा देश है जो भारत को हमेशा नुकसान पहुंचाना चाहता है तो वो चाइना है। जब से अमेरिका और चीन के बीच टेरिफ वॉर शुरू हुई है तब से अनुमान लगाया जा रहा है कि इसका सबसे ज्यादा फायदा भारत को हो सकता है। चाइना के इन्वेस्टमेंट्स भारत में आएंगे जिससे चीन की इकॉनमी को झटका लगेगा और भारत की इकॉनमी की रफ्तार और भी बढ़ जाएगी। आज इंडिया वर्ल्ड की फिफ्थ लार्जेस्ट इकॉनमी है और एक्सपर्ट्स के हिसाब से 2028 तक भारत दुनिया की थर्ड लार्जेस्ट इकॉनमी बन जाएगा। ऐसे में चीन के लिए भारत का इतना कामयाब होना उसे अपने लिए और भी बड़ा खतरा लग रहा है।
जिस वजह से वह भारत के खिलाफ जाने के लिए पाकिस्तान और उसके आतंकवाद का समर्थन करने को भी तैयार है। ऐसे में भारत के लिए जम्मू कश्मीर में बार-बार होते आतंकी हमलों पर फुल स्टॉप लगाना बेहद जरूरी है। सोचने वाली बात है कि आखिर जम्मू कश्मीर में पाकिस्तान बार-बार कैसे आतंकी हमले करवाने में सफल हो जाता है। 1980 के दशक में पंजाब में भी पाकिस्तान ने भारत को तोड़ने की कई साजिशें की थी।
पाकिस्तान ने मिलिटेंट्स को हथियार और पैसे देकर पंजाब को भारत से अलग करने की कोशिश की थी। लेकिन भारत सरकार ने कई बार के प्रयास के बाद पाकिस्तान की साजिश को नाकाम करके पंजाब को मिलिटेंसी के मुंह से बाहर निकाल लिया था। लेकिन जम्मू कश्मीर में ऐसा क्यों नहीं हो पाता? कई दशकों की उथल-पुथल के बाद भी आखिर क्यों पाकिस्तान की साजिशों को हमेशा हमेशा के लिए खत्म नहीं किया जा सका है। दरअसल पंजाब की स्थिति को भारत सरकार इसलिए काबू कर सकी क्योंकि इंडियन गवर्नमेंट का पंजाब पर पूरा कंट्रोल था। इसके अलावा पंजाब में सेपरेटिस को लोकल लोगों का सपोर्ट नहीं था।
इसलिए पाकिस्तान के मंसूबे कामयाब नहीं हो सके। लेकिन जम्मू एंड कश्मीर की स्थिति पंजाब से बिल्कुल अलग है। 1947-48 के फर्स्ट कश्मीर वॉर के बाद से जम्मू एंड कश्मीर का करीब 35% हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में है जिसे पाकिस्तान ऑक्यूपाइड कश्मीर यानी पीओके के नाम से जाना जाता है। पीओके को ही पाकिस्तान ने आतंक का अड्डा बनाया हुआ है। पीओके की ज्योग्राफिकल कंडीशंस आतंकियों को भारत में घुसपैठ का एक आसान रास्ता प्रदान करती है।
घाटियों, पहाड़ों, घने जंगलों और कमजोर फेंसिंग वाली एलओसी से होकर आतंकी आराम से भारत में दाखिल हो जाते हैं। कई जगहों पर तो एलओसी की सुरक्षा सिर्फ कंटीली तारों तक सीमित है। पाकिस्तान और उसके आतंकी गुट भारत के कश्मीरी मुस्लिमों को भी जिहाद और जन्नत के नाम पर भड़का कर अपने साथ शामिल कर लेते हैं। अभी तक जम्मू कश्मीर में जितने भी हमले हुए हैं, वह सब लोकल लोगों की मदद से ही पॉसिबल हुए हैं। कुछ कश्मीरियों की मदद से ही आतंकियों ने पीओके के अंदर कई जगहों पर लंबे-लंबे टनल बना रखे हैं जो सीधा भारत में खुलते हैं। कई जगहों पर भारतीय सेना की चौकियों से महज 3-4 कि.मी. की दूरी पर ही पीओके में आतंकी लॉन्च पैड्स मौजूद है जिन्हें पाकिस्तानी सेना और आईएसआई की मदद से लश्कर ताइबा, जैश-ए-मोहम्मद और हिजबुल मुजाहिद्दीन जैसे आतंकी गुटों द्वारा ऑपरेट किया जाता है।
पाकिस्तान लंबे समय से बहावलपुर जैसे अपने इलाकों के साथ-साथ पीओके के मुजफराबाद, कोटली, मीरपुर और बाग जैसे एरियाज में भी आतंकवादियों की एक बड़ी कैप तैयार कर चुका है। आतंकियों को पाकिस्तान और पीओके दोनों जगह ट्रेनिंग दी जाती है। पीओके में पाकिस्तान ने बड़ी संख्या में मदरसे खोले हैं। जहां युवाओं के दिमाग में बचपन से ही भारत के खिलाफ नफरत भरकर उन्हें आतंकी बनने को मजबूर किया जाता है।
इन्हीं कैंप्स में आतंकियों को हथियार चलाने, विस्फोटक बनाने और उसके बाद इंडिया में घुसपैठ करना सिखाया जाता है। पठानकोट एयरबेस अटैक, उरी अटैक, पुलवामा अटैक और अभी हुए पहलगाम अटैक में आतंकियों को पीओके में ही ट्रेन किया गया था। पीओके में मौजूद आतंकी कैंपों को डिस्ट्रॉय करने के लिए भारत 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 में बालाकोट एयर स्ट्राइक भी कर चुका है। लेकिन इसके बाद भी पीओके में आतंक की फसल तैयार की जाती रही है। इसलिए पाकिस्तान के आतंक को खत्म करने के लिए पीओके पर भारत का कंट्रोल होना बेहद जरूरी है।
जब तक जम्मू कश्मीर का वह हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में रहेगा पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आएगा। भारत सरकार भी इस बात को अच्छे से समझती है। इसलिए कई मौकों पर नेशनल एंड इंटरनेशनल प्लेटफार्म से भारत सरकार पाकिस्तान ऑक्यूपाइड कश्मीर को बहुत जल्द फिर से भारत में मिलाने की बात कह चुकी है। भारत ने जिस तरह अभी पाकिस्तान के खिलाफ सख्त फैसले लिए हैं। उससे लगता है कि आने वाले वक्त में जरूर इस तरफ कदम उठाए जा सकते हैं। पीओके को अगर फिर से भारत से जोड़ दिया जाता है तो वहां की सिचुएशन फिर इंडियन अथॉरिटीज के अंडर होगी। वहां आतंकी कैंपों का खात्मा हो जाएगा और पाकिस्तानी आतंकियों पर शिकंजा कसा जा सकेगा।
लेकिन पीओके को भारत में शामिल करना अगर इतना ही आसान होता तो सालों पहले ही यह काम हो गया होता। इस काम में कई जरूरी पेंच हैं जो भारत के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर सकते हैं। 1948 में भारत ने कश्मीर इशू को यूनाइटेड नेशन में ले जाने की एक ऐतिहासिक भूल की थी। जिसका खामियाजा भारत को आज तक सहना पड़ रहा है। अगर भारत पीओके को वापस लेने की कोशिश करता है तो यूएन का इंटरफेरेंस तय है। हालांकि अब भारत के यूएस, फ्रांस, यूके और रशिया जैसे वीटो होल्डिंग देशों से अच्छे संबंध हैं। लेकिन चाइना पाकिस्तान के पक्ष में वीटो लगाकर एक बड़ी रुकावट बन सकता है। और अगर कूटनीति से बात नहीं बनी तो भारत को शायद पाकिस्तान से खुली जंग लड़नी पड़े। यह युद्ध लंबा चल सकता है जिसमें देश की इकॉनमी पर बुरा असर पड़ेगा।
दोनों देश के पास न्यूक्लियर वेपन है। इसलिए युद्ध की स्थिति में दोनों ही ओर से न्यूक्लियर वेपन के इस्तेमाल का खतरा है। इसके अलावा अगर युद्ध होता है तो चीन अपने फायदे के लिए पाकिस्तान के साथ खड़ा होकर भारत के खिलाफ युद्ध में शामिल हो सकता है। ऐसे में भारत के सामने दो मोर्चों पर युद्ध लड़ने की एक बड़ी चुनौती होगी। इसलिए भारत को हर पहलू को ध्यान में रखते हुए एक ऐसा रास्ता खोजना होगा जिससे पीओके को मजबूती से भारत में मिलाया जा सके। क्योंकि जब तक पीओके भारत का हिस्सा नहीं बनता शायद पुलवामा और पहलगाम जैसे हमलों को कभी जड़ से नहीं रोका जा सकेगा। आतंक को जड़ से मिटाना ही उन 26 निर्दोष लोगों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी जिन्होंने पाकिस्तान के आतंकियों के हाथों पहलगाम में अपनी जान गवा दी।